01 November, 2024 (Friday)

पश्चिम बंगाल में ममता से होगी भाजपा की कड़ी टक्‍कर, जेएनयू से हुई लेफ्ट को किनारे करने की शुरुआत

बिहार में एनडीए को मिली सफलता से भारतीय जनता पार्टी को पड़ोसी राज्‍य पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत की आस बढ़ गई है। पार्टी के लिए अब अगले निशाने पर यही राज्‍य है। यहां की चुनावी जंग जीतना पार्टी के कुछ मुश्किल जरूर लगता है। यहां पर 2011 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस ने राज्‍य से 34 वर्ष पुराने सीपीआई (एम) के शासन को उखाड़ फैंका था और पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्‍यमंत्री बनीं थीं।2016 के चुनाव उन्‍होंने यहां से दोबारा जीत दर्ज की। ममता ने राज्‍य से वामपंथी विचारधारा की जड़ों को उखाड़ने का काम बखूबी अंजाम दिया है। यही वजह है कि 2021 के चुनाव में भाजपा की सीधी टक्‍कर भी ममता बनर्जी के साथ ही होने वाली है।

भाजपा ने इसकी तैयारी काफी समय पहले से ही शुरू भी कर दी है। हालांकि जानकार मानते हैं कि इस राज्‍य में भाजपा की राह बिहार की तरह आसान नहीं है। राजनीतिक विश्‍लेषक शिवाजी सरकार का कहना है कि यहां की सत्‍ता तक पहुंचने के लिए भाजपा को कुछ ज्‍यादा मेहनत करनी होगी। हालांकि उनका ये भी मानना है कि राज्‍य स्‍तर पर पार्टी में जो मतभेद हैं उससे पार्टी की राह मुश्किल हो सकती है। उन्‍होंने इस बात की भी आशंका जताई है कि पश्चिम बंगाल में होने वाले चुनाव बिहार की तुलना में अधिक हिंसा भरे होंगे। उनके मुताबिक पश्चिम बंगाल में यदि लेफ्ट, कांग्रेस और ममता मिलकर एक साथ चुनाव लड़ते हैं तो भाजपा की राह मुश्किल कर सकते हैं। हालांकि ये समीकरण कुछ मुश्किल जरूर है। वहीं भाजपा लेफ्ट के साथ मुश्किल ही जाएगी। उन्‍होंने बताया कि आने वाले चुनाव काफी खास होंगे। इस चुनाव में ममता की सीटें बढ़ने के आसार काफी कम हैं।

शिवाजी का मानना है कि पश्चिम बंगाल में लेफ्ट कमजोर जरूर हुआ है लेकिन खत्‍म नहीं हुआ है। यही वजह है कि इसको साधने के लिए भाजपा ने जेएनयू, जो कि लेफ्ट का गढ़ है, का सहारा लिया है। यहां पर दो वर्षों से पर्दे में ढकी स्‍वामी विवेकानंद की मूर्ति का अनावरण करके भाजपा ने लेफ्ट को ही साधने की कोशिश की है। विवेकानंद की मूर्ति के जरिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल के चुनाव को ही निशाना बनाया है। इस मूर्ति का लेफ्ट हमेशा से ही विरोध करता रहा है। पिछले वर्ष इस मूर्ति के साथ तोड़फोड़ तक की गई थी। 2016 में जब प्रोफेसर एम जगदीश कुमार जवाहरलाल नेहरू के वाइस चांसलर बने तब उन्‍होंने इस मूर्ति को यहां पर लगाने की राह आसान की थी। हालांकि लेफ्ट समर्थित स्‍टूडेंट्स यूनियन बार-बार इस बात का आरोप लगाती रही हैं कि प्रशासन ने इसमें लाइब्रेरी के फंड को खपा दिया है। जहां तक इस मूर्ति से भाजपा का ताल्‍लुक है तो उसने ये कदम बंगाल में सहानुभूति की लहर पाने की कोशिशों के तहत उठाया है।

आपको यहां पर बता दें कि स्‍वामी विवेकानंद का ताल्‍लुक सीधेतौर पर पश्चिम बंगाल से है। उनका असल में नाम नरेंद्र नाथ दत्‍त था। 1913 में शिकागो में आयोजित विश्‍व धर्म महासभा में उन्‍होंने भारत का प्रतिनिधित्‍व किया था। यहां पर दिए गए उनके भाषण को आज भी याद किया जाता है। उन्होंने रामकृष्ण परमहंस के शिष्‍य थे और उन्‍होंने ही रामकृष्‍ण मिशन की स्थापना की थी। प्रधानमंत्री मोदी अपने भाषणों में कई बार उनकी कही गई बातों को याद करते हुए दिखाई देते हैं।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *