क्या सातवें चरण में योगी और अखिलेश की नैया पार लगा पाएंगे उनकी टीम के उप कप्तान
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव का सातवां और आखिरी चरण 7 मार्च को होने वाला है। इस चरण में 9 जिलों की 54 सीटों के प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला ईवीएम में कैद होगा। इस चरण में आजमगढ़, मउ, गाजीपुर, जौनपुर, चंदौली, वाराणसी, भदोही, मीरजापुर और सोनभद्र जिले की विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होगा।
इस बार के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी सीधे सीधे मुकाबला कर रही है। वहीं बहनजी की बहुजन समाज पार्टी ने भी देर से ही सही पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा क्षेत्र वाराणसी भी अंतिम चरण के विधानसभा चुनाव में शामिल है। खुद पीएम यहां रुककर रोड शो और रैलियां करते हुए पार्टी की चुनावी तैयारियों पर नजर रख रहे हैं। अखिलेश यादव ने ममता बनर्जी के साथ मिलकर यहां चुनाव प्रचार किया है। प्रियंका और राहुल गांधी ने भी काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन करके अपनी रैलियां की हैं।
यह सवाल तो आपके मन में जरूर उठ रहा होगा कि आखिर क्यों सभी दिग्गज नेता वाराणसी में डेरा जमाए हुए हैं। दरअसल कोई भी इस सीट यहां से पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज करने की भूल नहीं करना चाहता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए यह इलाका कमजोर कड़ी साबित हुआ था। पार्टी को यहां की 54 में से 33 विधानसभा सीटों से ही संतोष करना पड़ा था। 2017 के इसी चरण में भाजपा का strike rate केवल 61 फीसदी रह गया था, जो मुस्लिम बाहुल्य वाले दूसरे चरण से भी कम था।
वहीं समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी पारंपरिक रूप से इस क्षेत्र में मजबूत ही रही हैं। 2012 के विधानसभा चुनाव में सपा को यहां से 34 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं औसत से अधिक अनुसूचित जाति बाहुल्य वाले इस इलाके से बसपा को सामान्य लाभ ही हुआ था।
औसत के आधार पर 54 सीटों वाले इस इलाके में 12 फीसदी मुस्लिम और 24 फीसदी अनुसूचित जाति की आबादी है। ब्राह्मण और ठाकुरों की आबादी 20 प्रतिशत है। 20 फीसदी आबादी कुर्मी, पटेल, निषाद, राजभर और बनिया है। यादवों की तादाद भी अच्छी खासी है। सबसे ज्यादा अल्पसंख्यक आबादी मउ (19%), आजमगढ़ (16%) और वाराणसी (15%) में है। अनुसूचित जाति की सर्वाधिक आबादी सोनभद्र (42%), मीरजापुर (27%) और आजमगढ़ (26%) में है।
2017 में भाजपा ने अपना दल के साथ मिलकर 33 सीटों पर विजय हासिल की थी। सपा ने 11, बसपा ने 6 और ओपी राजभर की एसबीएसपी को 4 सीटों पर जीत मिली थी। उस समय एसबीएसपी एनडीए का हिस्सा थी लेकिन इस बार के चुनाव में यह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में है। वोट शेयर की बात करें तो भाजपा गठबंधन को 38%, बसपा को 26%, सपा को 22%, कांग्रेस 6% और अन्य को 8% वोट प्रतिशत मिला था।
इस बार भाजपा और उसके सहयोगियों तथा सपा गठबंधन इस चरण में महत्वपूर्ण किरदार निभा सकता है। अपना दल इस बार दो हिस्सों में चुनाव लड़ रहा है और इस पार्टी की कुर्मियों के बीच काफी अच्छी पैठ है। अनुप्रिया पटेल की मां समाजवादी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही हैं और वहीं वो खुद भाजपा के साथ हैं।ओपी राजभर की पार्टी एसबीएसपी इस बार भाजपा का साथ छोड़कर समाजवादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ रही है। वहीं संजय निषाद की निषाद पार्टी भाजपा के खेमे में है।
भाजपा 46 सीटों पर चुनाव लड़ रही है वहीं निषाद 5 और अपना दल (एस) ने 3 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। समाजवादी पार्टी 45 सीटों पर चुनाव लड़ रही है। उसके सहयोगी एसबीएसपी 6 और अपना दल (के) 3 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
सातवें चरण के इस क्षेत्र में 30% सीटें ऐसी हैं जहां गठबंधन के सहयोगियों का सीधा प्रभाव है। वहीं इस चरण की 70% सीटें ऐसी हैं जहां सीधे सपा और भाजपा भिड़ रही हैं।
अब यह देखना रोचक होगा कि क्या अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद, उन सीटों पर जहां उनके नहीं बल्कि भाजपा के उम्मीदवार हैं को भाजपा के पक्ष में मतदान करवा सकेंगे। वहीं क्या राजभर और अनुप्रिया की मां कुर्मी और राजभर मतदाताओं को सपा के पक्ष में मतदान के लिए तैयार कर सकेंगे।
गैर यादव ओबीसी मतदाता यानी (एनवाई ओबीसी) मतदाता भी यहां महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 57% कुर्मी और 61% एनवाईओबीसी वोट मिले थे। समाजवादी पार्टी अपने गठबंधन के जरिये भाजपा के इसी वोटबैंक में सेंध लगाना चाहती है। SP ने ओबीसी जनगणना का पासा फेंका है। साथ ही यह भी आरोप लगाए हैं कि भाजपा आरक्षण को खत्म करने की कोशिशों में जुटी हुई है।
सपा की रणनीति है कि भाजपा के 30-35% फीसदी एनवाईओबीसी मतदाताओं को वो अपनी ओर खींच ले।
यदि ऐसा हो जाता है तो भाजपा को 6-7 फीसदी वोट शेयर का नुकसान होगा और इसका सीधा फायदा सपा को होगा। 12-14 प्रतिशत का यह झुकाव पूर्वांचल का सारा समीकरण बदल सकता है।
यदि इलाके के चुनाव को क्रिकेट के नजरिये से देखें तो यह कहा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव अपनी अपनी टीम के कप्तान हैं। जबकि राजभर और अनुप्रिया की मां अखिलेश/समाजवादी पार्टी की उपकप्तान हैं। वहीं अनुप्रिया और संजय टीम योगी/भाजपा की उपकप्तान हैं।
इस चुनाव में इनका प्रदर्शन बहुत ज्यादा मायने रखता है। ये सभी इस चरण के किंगमेकर हैं। क्या ये अपनी अपनी जाति के निर्विवाद नेता हैं और इनका कद इतना बड़ा है कि ये भाजपा या सपा की नांव को पार लगा सकें।
भाजपा मोदी के जरिये अखिलेश के ओबीसी मुद्दे की हवा निकालना चाहती है। वहीं यह भी बता रही है कि उनकी पार्टी इस वर्ग को सत्ता के शीर्ष पदों पर बिठाने से पीछे नहीं हटती है। अब यह तो 10 मार्च को ही पता चलेगा कि मोदी फैक्टर से भाजपा को जीत मिलेगी या अखिलेश लखनऊ में वापसी करेंगे?