क्या PM इमरान खान को भी सता रहा है तख्तापलट का भय, ISI प्रमुख के गतिरोध पर ही नवाज की गई थी कुर्सी
पाकिस्तान की मीडिया में इन दिनो सेना और इमरान सरकार के बीच चल रहा गतिरोध सुर्खियों में है। पाकिस्तान खुफिया एजेंसी के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर सेना प्रमुख बाजवा और पीएम इमरान खान के बीच लंबे समय से रस्साकसी चल रही है। इमरान का यह दर्द उनके एक टीवी चैनल में दिए गए साक्षात्कार में भी दिखा। उन्होंने यह शंका प्रकट की है कि विपक्ष उनको सत्ता से हटाने के लिए सारे उपक्रम कर रहा है। इस क्रम में उन्होंने आगे कहा कि विपक्ष इस काम के लिए सेना को भी ब्लैकमेल कर रहा है। इमरान का यह बयान यूं ही नहीं है। आइए जानते हैं कि इमरान के शक के पीछे बड़ी वजह क्या है।
- पाकिस्तान में निर्वाचित सरकार और सेना के बीच रस्साकसी कोई नई बात नहीं है। गौर करने की बात यह है कि इस रस्साकसी में हर बार सेना का ही पलड़ा भारी रहा है। 22 वर्ष पूर्व सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने तत्तकालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तख्तापलट किया था। खास बात यह है कि उस वक्त भी दोनों के बीच आइएसआइ प्रमुख को लेकर विवाद चल रहा था। उस वक्त लेफ्टिनेंट जनरल जियाउद्दीन बट आइएसआइ के डीजी थे। वह नवाज के काफी नजदीक थे। सैन्य तख्तापलट के पूर्व लेफ्टिनेंट बट ने एक साल तक डीजी आइएसआइ का पदभार संभाला था।
- मुशर्रफ और नवाज के बीच मतभेद आइएसआइ के प्रमुख की नियुक्ति की वजह से शुरू हुए थे। नवाज ने लेफ्टिनेंट जनरल जियाउद्दीन बट को डीजी आइएसआइ बनाया था, जिसके नतीजे में मुशर्रफ को अपने पूर्व आइएसआइ के करीबी सहयोगी लेफ्टिनेंट जनरल अजीज खान को मजबूरन चीफ आफ जनरल स्टाफ नियुक्त करना पड़ा था। बट पीएम नवाज के बहुत करीब आ गए थे और न केवल देश में बल्कि विदेशी दौरों पर भी उनके साथ रहते थे। इस घटना में आइएसआइ प्रमुख को गिरफ्तार किया गया था।
अली ने फौजी बगावत की शुरुआत की
इस गतिरोध के बाद 1999 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ और बट दोनों को कर्नल शहीद ने गिरफ्तार कर लिया। पाकिस्तान के इतिहास में यह पहली बार हुआ था, जब किसी सेवारत आइएसआइ प्रमुख को गिरफ्तार किया गया था। पाकिस्तान की सेना मे अली वह सैन्य अफसर थे, जिन्होंने फौजी बगावत की शुरुआत की थी। उस वक्त वह पाक फौज में एक ब्रिगेड की बटालियन के कमांडर थे। तख्तापलट के वक्त अली ने अपने सैनिकों के साथ प्रधानमंत्री हाउस का कंट्रोल संभाला था। पाकिस्तान की सैन्य हुकूमत में अली को इसका पुरस्कार भी मिला।
पाक में डीजी ISI की नियुक्ति विवाद की वजह
1999 के तख्तापलट के तुरंत बाद मुशर्रफ ने मुख्य कार्यकारी के रूप में सत्ता संभाल ली थी। उन्होंने तख्तापलट के पूर्व सेना प्रमुख और प्रधानमंत्री के बीच बिगड़ते संबंधों में इंटेलिजेंस प्रमुखों की भूमिका की जांच का आदेश दिया। इस जांच रिपोर्ट से यह बात सामने आई कि डीजी आइएसआइ पीएम और सेना प्रमुख के बीच बिगड़ते संबंधों के लिए जिम्मेदार थे। जिस दिन नवाज ने बट को आइएसआइ का प्रमुख बनाया उसी दिन मुशर्रफ को शक हो गया था। बता दें कि पूर्व राष्ट्रपति जनरल जिया के बाद के दौर में डीजी आइएसआइ की नियुक्ति सेना प्रमुखों और तत्कालीन प्रधानमंत्रियों के बीच विवाद की वजह बनती रही हैं।
आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति प्रक्रिया पर मौन पाक संविधान
दरअसल, इस फसाद की जड़ पाकिस्तान के संविधान में है। पाकिस्तान के कानून में इस बात का जिक्र नहीं है कि आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति कौन करेगा। इसके क्या नियम होंगे। इसकी क्या प्रक्रिया होगी। इसको लेकर कोई कानून नहीं है, जो यह सुनिश्चित करे कि यह नियुक्ति कौन करेगा। एक सामान्य प्रक्रिया के तहत प्रधानमंत्री डीजी आइएसआइ के पद पर नियुक्ति करते आ रहे हैं। हालांकि, डीजी आइएसआइ के चयन में सेनाध्यक्ष की भूमिका महत्वहीन नहीं है, क्योंकि सेना के अधिकारी अंततः सेना प्रमुख के साथ ही काम करते हैं। यह चकित करने वाली बात हो सकती है कि आइएसआइ प्रमुख की नियुक्ति का मसला अभी तक नहीं सुलझा है।
इमरान खान के बयान में दिखा भय
प्रो. हर्ष वी पंत का कहना है कि भले ही मुशर्रफ और नवाज की यह घटना दो दशक पुरानी हो, लेकिन प्रधानमंत्री इमरान खान के मन में कहीं न कहीं इस बात का भय जरूर होगा। उन्होंने कहा कि यही वजह है कि इमरान खान लगातार सेना प्रमुख बाजवा की तारीफ कर रहे हैं। इमरान ने कई दफा कहा है कि बाजवा काफी धैर्यवान और सुलझे हुए इंसान हैं। वह लोकतंत्र का सम्मान करते हैं। इमरान के इस बयान में उनकी बाजवा के साथ हमदर्दी कम और भय ज्यादा दिखता है। वह जानते हैं कि आइएसआइ प्रमुख की रस्साकसी उनके लिए कतई शुभ नहीं है। इमरान यह भी जानते हैं कि यह विवाद पाकिस्तान के लोकतंत्र के लिए कतई ठीक नहीं है।