वीरेंद्र सहवाग ने किया खुलासा, बताया फिटनेस के लिए विराट कोहली में इतना जुनून कहां से और कैसे आया
औसत क्षेत्ररक्षण और कैच छोड़ना भारतीय क्रिकेट में कोई नई बात नहीं है, लेकिन जब यह मौजूदा भारतीय टीम द्वारा निर्धारित हाई फील्डिंग और फिटनेस मानकों के बावजूद होता है, तो यह आश्चर्यचकित करने वाला है। भारतीय खिलाड़ी मौजूदा समय में शारीरिक रूप से कितने अच्छे हैं, ये हर कोई जानता है, लेकिन इसके बावजूद क्षेत्ररक्षण का मानक इसके साथ न्याय नहीं करता है। इसी को लेकर वीरेंद्र सहवाग ने खुलासा किया है कि कप्तान विराट कोहली फिटनेस को लेकर इतने जुनूनी क्यों और कैसे बने हैं।
भारतीय क्रिकेट टीम के मौजूदा कप्तान विराट कोहली ने खुद स्वीकार किया कि वह इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टी20 इंटरनेशनल मैच के दूसरे भाग में टीम की शारीरिक भाषा से बहुत खुश नहीं थे। यहां तक कि जब राहुल तेवतिया और वरुण चक्रवर्ती टी20 सीरीज से पहले अपने फिटनेस टेस्ट में विफल रहे, तो कोहली ने इस बात पर जोर दिया कि वे मैदान पर कोई समझौता नहीं कर सकता है। ऐसे में यह कहना सुरक्षित होगा कि भारतीय कप्तान अपनी इस भारतीय टीम में फिटनेस को लेकर कोई भी समझौता नहीं कर सकते।
कप्तान कोहली इतने फिटनेस फ्रीक कैसे बने इस पर सहवाग ने 2011-12 के इंग्लैंड दौरे का जिक्र किया, जहां युवा विराट कोहली भी टेस्ट और सीमित ओवरों की टीम का हिस्सा थे। सहवाग ने क्रिकबज से बात करते हुए कहा, “मैंने आखिरी बार 2011/12 में इंग्लैंड में दो टेस्ट मैच खेले थे। मैंने एक मैच द ओवल में खेला और एक बर्मिंघम में। सभी काउंटी टीमें जो वहां हैं, उनके ड्रेसिंग रूम में एक चार्ट है, जो फिटनेस के मानकों को प्रदर्शित करता है। मुझे लगता है कि इस वर्तमान भारतीय टीम के फिटनेस मानकों को वहां से उठाया गया है।”
उन्होंने आगे बताया कि कैसे खिलाड़ी खुद इसे आजमाने की कोशिश से उत्साहित थे, लेकिन इसे आजमाने में बुरी तरह असफल रहे, लेकिन कहीं न कहीं कोहली के दिल ने इसे स्वीकार नहीं किया। सहवाग ने कहा, “मैं इसे इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि तब भी हम इससे प्रभावित थे। यह वजन, गतिशीलता, लचीलापन और कुछ इसी तरह के टेस्ट के बारे में था। जब हमने इसे करने की कोशिश की, 2011/12 में हमारी आधी से ज्यादा टीम उन टेस्ट में विफल रही।”
उन्होंने आगे कहा, “इसलिए मुझे लगता है कि विराट कोहली ने यही चुना है। अगर इंग्लैंड में फिटनेस में वह मानक था, तो हमें भी होना चाहिए। और जब से उन्होंने कप्तान के रूप में पदभार संभाला है, उन्होंने फिटनेस पर पर्याप्त जोर दिया है कि कुछ टेस्ट को पास करने होंगे और उसके बाद ही हम सर्वश्रेष्ठ प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।” भारतीय टीम ने पहले यो-यो टेस्ट को अपनाया था, लेकिन बाद में इसे बंद कर दिया और अब एक खास तरह की रेस को अपनाया जा रहा है।