सुप्रीम कोर्ट ने कहा, अग्रिम जमानत देने से पहले अदालत को देखनी चाहिए अपराध की गंभीरता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अदालत को आरोपित को अग्रिम जमानत देते समय अपराध की गंभीरता और विशिष्ट आरोप जैसे मानदंडों पर विचार करना चाहिए। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने यह टिप्पणी हत्या के दो आरोपितों को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत के आदेश को रद करते हुए की।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उसे तय करना है कि इस स्तर पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देने के लिए सही सिद्धांतों का अनुपालन किया है या नहीं।
पीठ ने कहा, ‘अदालतों को अग्रिम जमानत अर्जी को स्वीकार करने या उसे खारिज करते वक्त आम तौर पर अपराध की प्रकृति और गंभीरता, आवेदक की भूमिका और मामले के तथ्यों के आधार पर निर्देशित होना चाहिए।’
शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी हत्या के दो आरोपितों को दी गई अग्रिम जमानत के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए की। कहा कि अपराध गंभीर प्रकृति की है, जिसमें एक व्यक्ति की हत्या की गई। प्राथमिकी और बयान संकेत देते हैं कि आरोपित की अपराध में विशेष भूमिका है।
पीठ ने कहा, ‘अग्रिम जमानत देने का आदेश देते वक्त अपराध की प्रकृति और गंभीरता और आरोपित के खिलाफ विशेष आरोप सहित ठोस तथ्यों को नजरअंदाज किया गया। इसलिए, हाई कोर्ट द्वारा मंजूर अग्रिम जमानत को रद करने के लिए उचित मामला बनाया गया है।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा चरण में तथ्यों का विस्तार से परीक्षण करने की जरूरत नहीं है। वह केवल यह परीक्षण करेगी कि हाई कोर्ट ने अग्रिम जमानत देते वक्त सही सिद्धांतों का अनुपालन किया या नहीं।
सेना में 72 महिलाओं के स्थायी कमीशन का मामला सुलझाए सरकार
वहीं, दूसरे मामले में पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सेना में 72 महिला शार्ट सर्विस कमीशन आफिसर (डब्ल्यूएसएससीओ) को स्थायी कमीशन देने के मामले को सुलझाने के लिए आखिरी मौका दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थायी कमीशन को मंजूरी इस साल 25 मार्च को दिए उसके फैसले के मुताबिक दी जानी चाहिए और उसके बाद वह महिला अधिकारियों की तरफ से दायर अवमानना मामला बंद कर देगा।