सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से मांगे अंडरट्रायल कैदियों के आंकड़े, जमानत के बाद भी जेल में क्यों?
देश में कई ऐसे विचाराधीन कैदी हैं, जो जमानत के बाद भी जेल के अंदर हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए नाराजगी जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से ऐसे सभी कैदियों की जानकारी जुटाने को कहा है, जो जमानत के बाद भी जेल में बंद हैं. इसके पीछे कारण उनके आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से जुर्माना नहीं भर पाना है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मामले पर निर्देश जारी किए हैं. इस पीठ में जस्टिस एएस ओका भी थे.
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जेल प्रशासनों से जमानत के बाद भी जेल में बंद कैदियों की सूची 15 दिन में तैयार करके उसे नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को देने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट की ओर से यह भी कहा गया है कि ऐसे कैदियों की रिहाई के लिए प्रयास किए जाएं. सुप्रीम कोर्ट की ओर से दिया गया ये आदेश देश का पहला ऐसा आदेश है, जिसके तहत देशभर की जेलों में कैद उन विचाराधीन कैदियों की संख्या का आकलन किया जाएगा, जो जमानत के बाद भी जेल में जमानती शर्तों को पूरा ना कर पाने के कारण बंद हैं.
जमानत पा चुके कैदियों की मांगी डिटेल जानकारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि असल आंकड़ों का पता करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की हर जेल को ऐसे विचाराधीन कैदियों का आंकड़ा नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को भेजना होगा. ताकि कोई नीति तैयार की जा सके. सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को जेल प्रशासन से यह डाटा देने को कहा गया है कि वे ऐसे विचाराधीन कैदियों के नाम, उनको मिली जमानत की तारीख, उनके अपराध, जमानत की शर्तें पूरा ना होने का कारण और जमानत के बाद से जेल में कैद होने तक का समय से संबंधित डाटा उपलब्ध कराएं.
15 दिनों का दिया गया समय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश यह तय करें कि यह डाटा 15 दिनों के अंदर ही तैयार कर लिया जाए. इसके हफ्ते भर के बाद ही यह जानकारी नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को उपलब्ध कराई जाए. इसके बाद नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी इन मामलों पर गौर करे और ऐसे कैदियों को जरूरत के हिसाब से मदद मुहैया कराए. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी इस काम के लिए टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की मदद ले सकता है. टीआईएसएस के पास महाराष्ट्र में ऐसे काम का अनुभव है. आदेश में कहा गया है कि ये देखना को कि नेशनल लीगल सर्विसेज अथॉरिटी किस तरह से इस तरह का मैकेनिज्म तैयार करती है.