23 November, 2024 (Saturday)

खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए जिम्मेदार खेल संघ को भी प्रतिभाओं को संवारने की अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए

टोक्यो ओलिंपिक के दौरान भारतीयों के चेहरे उस समय खुशी से खिल उठे जब नीरज चोपड़ा ने अपनी साधना, प्रतिभा और प्रतिबद्धता के दम पर भाला फेंक प्रतियोगिता का स्वर्ण पदक भारत की झोली में डाल दिया। ओलिंपिक मुकाबले आसान नहीं होते। उनमें विजेता होना किसी भी देश के लिए उत्सव की बात होती है। पदक से चूक गई मेरी काम और महिला हाकी टीम के खिलाड़ियों के प्रदर्शन को भी उत्सवी माहौल में सराहा गया है। हर उपलब्धि और हर बेहतर प्रदर्शन को सराहा ही जाना चाहिए।

भारत इस बात पर संतोष व्यक्त कर सकता है कि टोक्यो ओलिंपिक से हमारी झोली में अब तक के सबसे ज्यादा पदक आए हैं। एक स्वर्ण और दो रजत सहित भारतीय खिलाड़ियों ने कुल सात पदक जीते हैं और पदक तालिका में इस बार भारत का स्थान 48वां रहा है। पहली बार भारत टाप 50 देशों की सूची में शामिल हुआ है। अदिति अशोक, भारतीय महिला हाकी टीम, विनेश फोगाट हालांकि पदक नहीं जीत सकीं, लेकिन इनके प्रदर्शन ने खेल प्रेमियों का दिल जीत लिया। मनु भाकर की पिस्टल का लीवर खराब हो जाने के कारण उनका फाइनल का सफर अधूरा रह गया। यानी टोक्यो ओलिंपिक में यह तो साबित हो ही गया है कि हमारे खिलाड़ी अपनी प्रतिभा की चमक दुनिया को दिखाने की प्रतिबद्धता की राह पर हैं और यही प्रतिबद्धता प्रदर्शन को पदक में परिवर्तित करती है।

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लेकिन बिना किसी पूर्वाग्रह के सोचें तो यह सवाल असहज प्रतीत नहीं होता कि आखिर 135 करोड़ की आबादी वाला देश ओलिंपिक के प्रदर्शन में छोटे छोटे देशों से भी पीछे क्यों रह जाता है। यह कहानी आज की नहीं है। इस बार तो हमने अपने ओलिंपिक इतिहास के सबसे ज्यादा पदक जीते हैं, वरना कई ओलिंपिक मुकाबले तो ऐसे भी हुए हैं, जब हमारे खिलाड़ी और उनके साथ गए हुए अधिकारी खाली हाथ लौटे हैं। हालांकि हाकी में ओलिंपिक में हमारा प्रदर्शन पिछली सदी के आठवें दशक तक बेहतर रहा है।

वर्ष 1920 से 1980 के बीच हुए 12 ओलिंपिक में भारत ने 11 बार कोई न कोई पदक अपने नाम किया था। इसके बाद भारतीय हाकी टीम की ओलिंपिक उपलब्धियों में जो सन्नाटा पसरा, वह टोक्यो में टूटा है। यह 41 साल का सन्नाटा भी बहुत कुछ कहता है। हम सफलता पर खिलाड़ियों के यशगान में कमी नहीं रखते, लेकिन कठिन क्षणों में उनकी मदद के लिए भी तैयार नहीं रहते। खेल छात्रवासों में कुछ लोगों की मनमानी और बेहद दयनीय दशा में रह रहे खिलाड़ियों की तस्वीरें जब-तब समाचार-पत्रों में छपती रहती हैं। बाजार ने सफलता के ग्लैमर को इस तरह थाम लिया है कि कुछ बड़े नामों को छोड़कर शेष सब अपनी आजीविका के लिए या तो संघर्ष करने पर विवश हैं या फिर खेल को छोड़कर किसी और क्षेत्र में अपने करियर को तलाशते हैं।

निश्चित रूप से इस बार हमारे खिलाड़ियों ने ओलिंपिक के हमारे इतिहास का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है और भविष्य के लिए उम्मीदें भी जगाई हैं। लेकिन खेलों के संवर्धन और खिलाड़ियों के प्रोत्साहन के लिए जिम्मेदार खेल संघों, अधिकारियों, सरकारों और कारपोरेट घरानों को भी प्रतिभाओं को संवारने की अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।

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