02 November, 2024 (Saturday)

तीरंदाज दीपिका कुमारी ओलंपिक पदक के लिए लड़ रही दबाव की जंग

जमशेदपुर। तीरंदाजी भारत के लिए उन खेलों में से एक है जिससे वैश्विक खेल मंच पर लोगों को काफी उम्मीदें होती है। लेकिन हर बार सबसे बड़े मंच पर तीरंदाज वह प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं, जिसके वह हकदार हैं।

दीपिका कुमारी 2012 में ओलंपिक में अपनी पहली बार भाग ली थी। तब से लेकर आजतक वह भारतीय तीरंदाजी की ध्वजवाहक रही हैं। इस अवधि के दौरान, वह विश्व तीरंदाजी सर्किट में इतनी प्रभावशाली प्रदर्शन करती रही हैं कि हर ओलंपिक में उनसे उम्मीदें आसमान छूती हैं। अगर ये उम्मीदें जायज हैं, तो सवाल उठता है कि पिछले दो ओलंपिक और टोक्यो में अब तक के आयोजनों में वह प्रदर्शन देखने को क्यों नहीं मिलता है। क्या यह खेलों के सबसे बड़े मंच ओलिपिंक के दबाव को नहीं संभाल पाने का मामला है।

रियो व लंदन ओलंपिक में भाग ले चुकी हैं दीपिका

दीपिका ने लंदन में उन्होंने क्वालिफिकेशन राउंड में शानदार आठवां स्थान हासिल किया। लेकिन मेडल राउंड में जो कुछ हुआ वह चौंकाने वाला था। वह पहले राउंड में अपने से कम रैंकिंग वाली तीरंदाज से हार गई। वह मैच को खत्म होने तक संघर्ष करती दिखी। सौभाग्य से उस समय उम्र उनके पक्ष में थी। इसे शुरुआती झटका मानते हुए उन्हें रियो 2016 से पहले अगले चार वर्षों तक अपनी उम्र उनके साथ थी, जिसका मतलब था कि रियो की निराशा उसकी ऊबड़-खाबड़ सफर का अंत नहीं थी।

वह पिछले हफ्ते टोक्यो में पहले की तरह ही उम्मीदों के बोझ के साथ पहुंची। मीडिया के द्वारा अनावश्यक प्रचार किया गया कि वह विश्व की नंबर वन खिलाड़ी है। वास्तव में वह विश्व नंबर वन का खिताब के योग्य है। लेकिन हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि पेरिस व ग्वाटेमाला में खेले गए तीरंदाजी विश्वकप द. कोरिया की टीम ने भाग नहीं लिया था। रियो के बाद टोक्यो उसके लिए यह साबित करने का दूसरा मौका था कि उसने दबाव की स्थितियों को बेहतर ढंग से संभालने में अपनी अक्षमता पर काम किया है। शनिवार को दक्षिण कोरिया के खिलाफ मिश्रित टीम क्वार्टर फाइनल में उनके प्रदर्शन ने एक बार फिर निराश किया।

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