MSME को औद्योगिक कच्चे माल की किल्लत, दाम बढ़ने से उत्पादन प्रभावित, पुराना ऑर्डर पूरा कर पाने में कारोबारी असमर्थ
औद्योगिक कच्चे माल की लगातार बढ़ती कीमतों से एमएसएमई अपने उत्पादन में कटौती करने लगे हैं। कच्चा माल महंगा होने से एमएसएमई पुरानी दर पर लिए गए ऑर्डर को पूरा करने में खुद को असमर्थ बता रहे हैं। वहीं, कई प्रकार के कच्चे माल के निर्यात में भारी बढ़ोतरी से उन्हें आसानी से कच्चे माल भी उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। एमएसएमई को मुख्य रूप से स्टील, मो¨ल्डग में इस्तेमाल होने वाले ग्रेन्यूल्स, क्राफ्ट पेपर्स, केमिकल्स, प्लास्टिक व कॉटन जैसे कच्चे माल की कमी हो रही है। एमएसएमई से जुड़ी कई एसोसिएशन ने सरकार से कच्चे माल की उपलब्धता को लेकर गुहार भी लगाई है।
एमएसएमई उद्यमियों के मुताबिक पिछले तीन-चार महीनों में एल्यूमिनियम की कीमत 78 रुपये से बढ़कर 136 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई। इस दौरान 370 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाला पीतल 450 रुपये, तांबा 470 रुपये से बढ़कर 570 रुपये और ¨जक 190 रुपये से बढ़कर 230 रुपये प्रति किलोग्राम के स्तर पर पहुंच गया। विभिन्न प्रकार के स्टील के दाम में भी 40-60 फीसद तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। कच्चे तेल के जुड़े होने की वजह से प्लास्टिक के दाम में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन स्मॉल मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के महासचिव अनिल भारद्वाज का कहना है कि कच्चे माल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी से उद्यमी पुरानी दर पर लिए गए अपने ऑर्डर को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। इससे उनका उत्पादन प्रभावित हो रहा है और पूंजी की भी कमी हो रही है।’ इंजीनिय¨रग उत्पाद से जुड़े निर्यातक एससी रल्हन ने बताया कि कच्चे माल के निर्यात में भारी बढ़ोतरी से घरेलू उत्पादन के लिए इनकी किल्लत हो रही है।
कंटेनर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन ने इस्पात मंत्री धर्मेद्र प्रधान को लिखे पत्र में कहा है कि मेटल कंटेनर मैन्यूफैक्चरर्स को टिन प्लेट और टिन फ्री स्टील की सालाना जरूरत 6.5 लाख टन की है जबकि घरेलू स्तर पर यह चार लाख टन ही उपलब्ध है। आयात के सख्त नियमों की वजह से कच्चा माल नहीं मिल पा रहा है। नोएडा एमएसएमई इंडस्टि्रयल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष सुरेंद्र नाहटा ने बताया कि उत्पादन प्रभावित होने से नोएडा के 5,000 एमएसएमई डिफॉल्टर हो सकते हैं। इस संबंध में उन्होंने प्रधानमंत्री को भी पत्र लिखा है।