मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में महिला अधिकारों के हनन पर राज्यों से बात करे केंद्र, सुप्रीम कोर्ट ने दिए निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रही महिलाओं के सिर का मुंडन करने, निजता का ख्याल नहीं रखे जाने जैसे मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर बुधवार को गंभीर चिंता व्यक्त की और ऐसी समस्याओं के समाधान के लिए केंद्र से राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के समक्ष इन मुद्दों को तुरंत उठाने के लिए कहा। शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्वास्थ्य देखभाल कíमयों और अन्य लोगों के साथ मानसिक स्वास्थ्य संस्थानों में रह रहे सभी व्यक्तियों का समयबद्ध तरीके से कोरोना टीकाकरण सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु विज्ञान संस्थान (निमहंस) द्वारा 2016 में और राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा 2020 में किए गए कुछ अध्ययनों के आधार पर यह उल्लेख किया गया है कि देशभर में सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में महिलाओं को कई अपमानजनक स्थितियों और मानवाधिकारों के उल्लंघन का सामना करना पड़ता है।
पीठ ने कहा कि याचिका में जिन मुद्दों को उठाया गया है, वे गंभीर चिंता का विषय हैं। निर्देश दिया जाता है कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय अध्ययनों में व्यक्त की गई उन सभी चिंताओं को समाधान के लिए राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के समक्ष उठाए और राज्य व केंद्रशासित प्रदेश उन्हें दूर करें।
पीठ ने अधिवक्ता गौरव बंसल के निवेदन पर गौर किया, जिन्होंने एक अर्जी में कहा कि तीन अध्ययनों में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि सरकार द्वारा संचालित मानसिक स्वास्थ्य प्रतिष्ठानों में रह रहीं महिलाओं को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2014 में गैरसरकारी संगठन ह्यूमन राइट्स वाच, 2016 में निमहंस और 2020 में राष्ट्रीय महिला आयोग ने यह अध्ययन किया था।
बंसल ने कहा कि इन महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन की कमी, निजता की कमी, सिर का मुंडन, पहचान पत्र जारी करने की कमी (जैसे यूआइडीएआइ, आधार कार्ड), विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करने की कमी और विकलांगता पेंशन जारी करने की कमी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने राज्यों द्वारा वृद्धाश्रमों और अन्य आश्रय संस्थानों को मानसिक बीमारी से ठीक हुए लोगों के लिए पुनर्वास गृह के रूप में नामित करने की परंपरा को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह पुनर्वास के उद्देश्य को पूरा नहीं करेगा।
पीठ ने कहा कि राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा ठीक हो चुके लोगों के पुनर्वास के लिए सक्रियता से आश्रय स्थल तैयार करने चाहिए। केवल मौजूदा आश्रय स्थलों को इसके लिए निर्धारित करने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा। शीर्ष अदालत ने उल्लेख किया कि महाराष्ट्र ने मानसिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में अधिक समय तक रहने वाले 186 व्यक्तियों को भिखारियों के घरों या अन्य आश्रय स्थानों में भेजने का फैसला किया है।
पीठ ने कहा कि महाराष्ट्र ने कहा है कि पुनर्वास गृह बनाने की कवायद छह महीने में पूरी कर ली जाएगी। पीठ ने निर्देश दिया कि महाराष्ट्र सरकार को छह महीने की अवधि के भीतर पुनर्वास गृहों की स्थापना के निर्देश का पालन करने के लिए कदम उठाने चाहिए। उत्तर प्रदेश के मामले में पीठ ने कहा कि केंद्र द्वारा दायर की गई स्थिति रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि राज्य सरकार ने 75 जिलों में से प्रत्येक में वृद्धाश्रम को पुनर्वास गृह के रूप में फिर से नामित करने के एक पैटर्न का पालन किया है।
पीठ ने कहा कि सभी 75 जिलों में इन आश्रय स्थलों का महज नाम बदलने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा। अदालत ने कहा कि यह उचित होगा कि केंद्र प्रगति की निगरानी करे और समय-समय पर अदालत को इससे अवगत कराए, ताकि प्रगति का आकलन करने के लिए प्रत्येक राज्य के मामले को अलग से देखने की आवश्यकता न हो। पीठ ने कहा कि समाज कल्याण और अधिकारिता मंत्रालय को अदालत के पिछले और वर्तमान आदेशों के अनुसार पुनर्वास गृह की स्थापना और मानसिक बीमारी से ठीक हुए व्यक्तियों के पुनर्वास की प्रगति की निगरानी के लिए हर महीने बैठकें करनी चाहिए।