जब बैलगाड़ी से निकली अनोखी बरात, बुजुर्गों को याद आया अपना जमाना, दुल्हन ने बताई ये खास बात
छत्तीसगढ़: आज के समय में शादियों के दौरान आपने कई तस्वीरें देखी होंगी जिसमें दूल्हा महंगी कार और हेलीकॉप्टर से बारात लेकर शादी करने पहुंचता है लेकिन इस समय में उत्तराखंड के सलाम बड़गांव से एक ऐसी बारात निकाली, जिसने देखा वह बस देखता ही रह गया। पूरी बारात बैलडगाड़ी से निकाली गई, यहां तक कि दूल्हा भी बैलगाड़ी पर सवार होकर अपनी दुल्हनिया लेने निकला। पारंपरिक वेश भूषा में चांदी के आभूषण के साथ धोती-कमीज पहनकर दूल्हा बैलगाड़ी से निकला।
शादी करने निकले दूल्हे शंभू नाथ ने कहा कि उसे अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और अपनी ग्रामीण परंपरा से प्यार है और उसने अपनी परंपरा निभाई है। ठेठ देसी अंदाज में निकली इस बारात की लोगों ने जमकर सराहना की।
गुरुवार को दोपहर लगभग एक बजे पिपली से करकापाल के लिए निकली बारात शाम चार बजे दुल्हन के घर पर पहुंची और रीति रिवाजों के साथ वैवाहिक कार्यक्रम शुरू हुआ। इस दौरान जिस रास्ते से यह बरात गुजरी वहां पर लोगों ने अपने दरवाजे, खिड़की, छतों पर खड़े होकर इस नजारा को बखूबी देखा और तस्वीरें लीं। साथ ही वीडियो भी बनाया और दूल्हे के साथ सेल्फी भी ली।
इस मॉर्डन जमाने में देसी अंदाज में पहुंची इस बारात को देखकर बुजुर्गों को पुराने समय की याद ताजा हो गई। इस प्राचीन परंपरा को देख कर लोग बहुत खुश नजर आ रहे थे। महंगी मोटर गाड़ियों और हेलीकॉप्टर के इस युग में बैल गाड़ियों से बारात ले जाना, इससे एक परंपरा का पुनर्जीवन होता दिखाई दिया। बेहद सादगीभरी इस परंपरा और जड़ों की ओर लौटने की यह पहल आदिवासियों को निश्चित ही अपनी परंपरा की ओर लौटने के लिये प्रेरित करेगी। इतना ही नहीं, यह बारात आज की खर्चीली शादियों से बचने के लिए एक मिसाल के तौर पर जानी जाएगी और लोग इसे अपनाएंगे भी।
परम्पराओं का संरक्षित रखना ही उद्देश्य
छत्तीसगढ़ी संस्कृति को संरक्षित रखने के इस प्रयास का एक ही उद्देश्य है कि आज की युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और परम्पराओं को ना भूलते हुए उन्हें संरक्षित रखने के साथ आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरित करे। दूल्हा शम्भू नाथ सलाम ने कहा कि बैलगाड़ी पर बारात की हमारी पुरानी परम्परा है। इसमें फिजूल खर्च नहीं होता है। परंपरा और संस्कृति को आगे बढ़ाना ही हमारा उद्देश्य है। इसलिए विवाह की हर रस्म को छत्तीसगढ़िया संस्कृति के नाम कर दिया।
दूल्हा शम्भू नाथ ने बताया कि आधुनिक के इस युग में प्राचीन और छत्तीसगढ़ी हमारी परम्परा विलुप्त होती जा रही है, जिसे संजो कर और संरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है ताकि आने वाली पीढ़ी भी आधुनिकीकरण से हटकर अपनी परम्पराओं और रीति-रिवाजों का अनुसरण करें और अपनी परम्पराओं को ना भूले। अपनी परंपराओ के अनुसार वैवाहिक कार्यक्रम करने से विलुप्त हो रही परम्पराओं का पुनर्जन्म होगा साथ ही हर वर्ग के लोग सादगीपूर्ण विवाह सम्पन्न करा पाएंगे।
वहीं, दुल्हन सरिता ने कहा कि शंभु नाथ ने बैलगाड़ी से बरात लाकर और विवाह में छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देकर एक बेहतर सामाजिक कार्य का परिचय दिया है, जिससे मुझे और मेरे परिवार के साथ ही पूरे गांव के लोगों को काफी खुशी मिली।
आज के जमाने मे एकसाथ दर्जनों बैलगाड़ियों का व्यवस्था करना किसी चुनौती से कम नहीं होता लेकिन बड़ेझाड़कट्टा के किसानों ने दर्जनों बैलगाडियां उपलब्ध कराकर शम्भूनाथ की शादी को यादगार बना दिया।
बैलगाड़ी देने वाले किसानों ने बताया कि उन्हें भी बेहद खुशी हुई कि उनकी बैलगाड़ी खेती किसानी कार्य के साथ छत्तीसगढ़ी संस्कृति को पुनर्जन्म दिलाने के एक प्रयास में कामगार साबित हुई। बेहद सादगीभरी इस परंपरा और जड़ों की ओर लौटने की यह पहल आदिवासियों को निश्चित ही अपनी परंपरा की ओर लौटने के लिये प्रेरित करेगी।