सरकारी जमीन को संरक्षित वन घोषित कर सकती है राज्य सरकार: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि राज्य सरकार को किसी भी भूमि को संरक्षित वन घोषित करने का अधिकार है, यदि उसके पास ऐसी भूमि का मालिकाना हक है।जस्टिस हेमंत गुप्ता और वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कहा कि वन कानून की धारा चार के तहत राज्य सरकार किसी भी भूमि को संरक्षित वन के संबंध में घोषणा कर सकती है। पीठ ने एक पट्टेदार को जमीन का मालिकाना हक दिए जाने के आदेश को रद करते हुए कहा, राज्य सरकार को संरक्षित वन घोषित करने का अधिकार है, यदि भूमि सरकारी संपत्ति है।
शीर्ष अदालत उत्तर प्रदेश वन विभाग द्वारा दायर एक अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को चुनौती दी गई है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उप निदेशक चकबंदी, लखनऊ द्वारा पारित एक आदेश को खारिज कर दिया था।
वहीं, भूमि से जुड़े इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के कुछ अहम फैसले और भी हैं। कोर्ट ने पिछले महीने सितंबर में अपने एक अहम फैसले में कहा था कि मंदिर के पुजारी को भूस्वामी नहीं माना जा सकता और देवी-देवता ही मंदिर से जुड़ी भूमि के मालिक हैं। जस्टिस हेमंत गुप्ता और एएस बोपन्ना की पीठ ने कहा था कि पुजारी केवल मंदिर की संपत्ति के प्रबंधन के उद्देश्य से भूमि से जुड़े काम कर सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा, स्वामित्व स्तंभ में केवल देवता का नाम ही लिखा जाए, चूंकि देवता एक न्यायिक व्यक्ति होने के कारण भूमि का स्वामी होता है। भूमि पर देवता का ही कब्जा होता है, जिसके काम देवता की ओर से सेवक या प्रबंधकों द्वारा किए जाते हैं। इसलिए प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है।
इससे पहले 2019 अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भूमि से जुड़े एक और केस में अहम बात कही थी। कहा था कि कब्जाधारी व्यक्ति (एडवर्स पजेसर) उस जमीन या संपत्ति का अधिकार लेने का दावा कर सकता है जो 12 वर्ष या उससे अधिक समय से बिना किसी व्यवधान के उसके कब्जे में है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि इतना ही नहीं अगर ऐसे व्यक्ति को इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है तो वह उसकी ऐसे रक्षा कर सकता है जैसे वह उसका मूल स्वामी हो।