23 November, 2024 (Saturday)

वित्त वर्ष 2021-22 में सामाजिक सेवाओं पर खर्च 9.8% बढ़कर 71.61 लाख करोड़ रुपए हुआ

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान सामाजिक सेवा क्षेत्र पर केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त खर्च बढ़कर 71.61 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो वित्तीय वर्ष 2020-21 में हुए 65.24 लाख करोड़ रुपये (संशोधित अनुमान) खर्च से 9.8 प्रतिशत अधिक है। 31 मार्च 2022 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए सर्वेक्षण में कहा गया, “सामाजिक सेवाओं में शिक्षा, खेल, कला और संस्कृति, चिकित्सा और सार्वजनिक स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, जल आपूर्ति और स्वच्छता, आवास, शहरी विकास, एससी, एसटी और ओबीसी का कल्याण, लेबर और लेबर कल्याण, सामाजिक सुरक्षा और कल्याण, पोषण, प्राकृतिक आपदाओं आदि से राहत शामिल हैं।”

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया, जो 1 अप्रैल 2022 से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष के लिए सरकार के बजट से पहले अर्थव्यवस्था की स्थिति का विवरण देता है। सर्वेक्षण के अनुसार, सामान्य सरकार (केंद्र और राज्यों को मिलाकर) द्वारा वर्ष 2021-22 में सामाजिक सेवाओं पर बजट अनुमान (बीई) 71.61 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें 6.97 लाख करोड़ रुपये शिक्षा, 4.72 लाख करोड़ रुपये स्वास्थ्य और 7.37 लाख करोड़ रुपये क्षेत्र के अन्य हिस्सों के लिए थे।

सर्वेक्षण के अनुसार, 2020-21 के वित्तीय वर्ष में सामाजिक सेवा क्षेत्र पर खर्च 65.24 लाख करोड़ रुपये था, जिसमें 6.21 लाख करोड़ रुपये शिक्षा, 3.50 लाख करोड़ रुपये स्वास्थ्य पर और 6.63 करोड़ रुपये अन्य के लिए थे। सर्वेक्षण में कहा गया, “महामारी ने लगभग सभी सामाजिक सेवाओं को प्रभावित किया है। स्वास्थ्य क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। स्वास्थ्य क्षेत्र पर खर्च 2019-20 (पूर्व-कोविड-19) के 2.73 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 (बीई) में 4.72 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो लगभग 73 प्रतिशत की वृद्धि है।”

इसमें कहा गया, “शिक्षा क्षेत्र के लिए इसी अवधि के दौरान वृद्धि 20 प्रतिशत थी।” शिक्षा पर सर्वेक्षण में कहा गया है कि शिक्षा क्षेत्र पर बार-बार लगने वाले लॉकडाउन के वास्तविक समय के प्रभाव का आकलन करना मुश्किल है क्योंकि नवीनतम उपलब्ध व्यापक आधिकारिक डेटा 2019-20 से पहले का है।

प्रारंभिक COVID-19 प्रतिबंधों के दौरान छात्रों को COVID-19 से बचाने के लिए एहतियाती उपाय के रूप में पूरे भारत में स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए थे। इसने कहा कि शिक्षा की निरंतरता के मामले में यह सरकार के लिए एक नई चुनौती है।

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