19 May, 2024 (Sunday)

सहारनपुर मंडल की चार चीनी मिलें गन्ना भुगतान में अव्वल

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर मंडल में गन्ना मूल्य भुगतान के मामले में जहां त्रिवेणी ग्रुप की देवबंद और खतौली यूनिट अव्वल हैं वहीं सहकारी चीनी मिलें मोरना, सरसावा और नानौता पिछड़ी हुई हैं। इनसे भी ज्यादा बुरी हालत बजाज ग्रुप की गांगनौली, बुढ़ाना एवं थानाभवन की है।
मंडल के उप गन्ना आयुक्त डा. दिनेश्वर मिश्र ने सोमवार को यूनीवार्ता से बातचीत में कहा कि मंडल में कुल 17 चीनी मिलें हैं जिन्होंने अभी तक 3250 करोड़ रूपए गन्ना मूल्य का भुगतान किया है। सभी चीनी मिलें चालू हैं और गन्ना पेराई कर रही हैं।

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने गन्ना किसानों को खास तवज्जो दी है। हैरत की बात यह है कि राज्य सरकार और गन्ना विभाग की सजगता के बावजूद बजाज ग्रुप गन्ना मूल्य भुगतान के मामले में फिसड्डी बना हुआ है।
डा. मिश्र का कहना है कि इस ग्रुप की हालत खस्ता लगती है। जबकि त्रिवेणी ग्रुप का प्रबंधन और सोच दोनों बेहतर है और इन चीनी मिलों को गन्ना आपूर्ति करने वाला किसान खुश भी है और खुशहाल भी है। यदि दूसरी चीनी मिलें भी इस ग्रुप का अनुसरण करती तो प्रदेश में सहारनपुर मंडल गन्ना मूल्य भुगतान में आदर्श स्थिति में रह सकता था।

उन्होने बताया कि त्रिवेणी ग्रुप की देवबंद यूनिट ने तीन अप्रैल तक 403-12 करोड़ का भुगतान किया है। इसी ग्रुप की खतौली चीनी मिल ने भी तीन अप्रैल तक का भुगतान कर दिया है। खतौली ने 588 करोड़ का भुगतान किया है। डा. मिश्र ने बताया कि त्रिवेणी की देवबंद इकाई पिछले कुछ सालों से 90 से 95 क्विंटल प्रतिदिन की क्षमता से गन्ना पेराई कर रही है। इसकी 40 क्विंटल प्रतिदिन की एक यूनिट 12-13 सालों से बंद है। इस यूनिट के भी अगले पेराई सत्र से शुरू हो जाने की उम्मीद है। उससे देवबंद यूनिट 140 क्विंटल प्रतिदिन पेराई कर सकेगी।

डा. मिश्र के अनुसार सहारनपुर मंडल गन्ने की पैदावार में महत्वपूर्ण स्थान रखता हैं। जिन इलाकों की चीनी मिलें 14 दिन की समयावधि के अनुसार भुगतान कर रही हैं वहां किसानों की सभी जरूरतें पूरी हो रही हैं। गन्ना विभाग उन्नत प्रजातियों के गन्ने की बुआई को लेकर अग्रसर है।
उन्होने कहा कि मंसूरपुर चीनी मिल ने चार अप्रैल तक 399॰62 करोड़ का भुगतान किया है। टिकौला चीनी मिल ने आठ अप्रैल तक का 454॰88 करोड़ का भुगतान किया है। इन चीनी मिलों के अलावा बाकी चीनी मिलों का भुगतान तसल्ली बख्स नहीं है।

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