किसान संघों को विश्वसनीयता के संकट का करना पड़ सकता है सामना, हिंसा ने की देश की छवि धूमिल
कृषि विशेषज्ञों ने बुधवार को कहा कि गणतंत्र दिवस पर किसानों की ‘ट्रैक्टर परेड’ के दौरान हिंसा होने के बाद प्रदर्शनकारी किसान संघों का पक्ष कमजोर हो गया है और उन्हें ‘विश्वसनीयता के संकट’ का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, कृषि विशेषज्ञों ने कहा कि (प्रदर्शनकारी किसान संघों के साथ) समझौता करने के लिए सरकार के पास यह एक सबसे अच्छा समय है और दो महीने से जारी किसानों के आंदोलन को समाप्त किया जाए। केंद्र के तीन नये कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर दो महीने से हजारों की संख्या में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।
प्रदर्शनकारी किसानों ने लाल किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा लगाया
नये कृषि कानूनों के विरोध में और किसान संगठनों की मांग को लेकर मंगलवार को निकाली गई ट्रैक्टर परेड ने दिल्ली की सड़कों पर हिंसक रूप धारण कर लिया। हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी अवरोधकों को तोड़ कर आगे बढ़ गये और लाल किले की प्राचीर पर एक धार्मिक झंडा लगा दिया।
राष्ट्रीय दिवस पर हुई हिंसा ने दुनिया भर में देश की छवि धूमिल की
भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद के अध्यक्ष एमजे खान ने कहा, ‘एक राष्ट्रीय दिवस पर हुई हिंसा ने दुनिया भर में देश की छवि धूमिल की है। आज, किसान विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहे हैं। इसलिए, समझौता करने के लिए यह एक सबसे अच्छा समय है।’ उन्होंने कहा कि अब तक करीब 40 प्रदर्शनकारी किसान संघ अपने मजबूत पक्ष के साथ सरकार से बातचीत कर रहे थे और सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से ले रही थी। उन्होंने इस बात का जिक्र किया, ‘लेकिन आज, सरकार कहीं कम मांगे पूरी करते हुए एक समाधान निकाल सकती है। यह समाधान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की उनकी मांग को स्वीकार करना और कृषि कानूनों को रद नहीं करने का हो सकता है।’
खान ने कहा- एमएसपी लागू करने का सरकारी खजाने पर कोई भार नहीं पड़ेगा
खान ने कहा कि 23 फसलों के लिए एमएसपी लागू करने का सरकारी खजाने पर कोई भार नहीं पड़ेगा। व्यापार पर 80,000 से 90,000 करोड़ रुपये का थोड़ा सा प्रभाव पड़ेगा, जिसे उपभोक्ताओं से वसूला जा सकता है।
कृषि विशेषज्ञ सरदाना ने कहा- किसान संघों का सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने में हित छिपा है
कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना ने दावा किया कि प्रदर्शनकारी किसान संघों का सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन करने में हित छिपा हुआ है।
कृषि विशेषज्ञ सेन ने कहा- किसान संगठनों को मिलने वाली सहानभूति घटी
कृषि विशेषज्ञ एवं पूर्ववर्ती योजना आयोग के सदस्य रह चुके अभिजीत सेन ने कहा कि अब तक प्रदर्शनकारी किसान संघ एकजुट थे, लेकिन मंगलवार की घटना के बाद, किसान संगठनों को मिलने वाली सहानभूति अत्यधिक घट गई है। उन्होंने कहा, ‘दोनों ही पक्ष एक दूसरे के पाले में गेंद डाल रहे हैं। वे सचमुच में गंभीर वार्ता नहीं कर रहे हैं।’
11वें दौर की वार्ता: सरकार ने किसान संघों को प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने को कहा था
केंद्र ने प्रदर्शनकारी किसान संघों के साथ अब तक 11 दौर की वार्ता की है। दसवें दौर की वार्ता में, सरकार ने किसान संघों को नये कृषि कानून एक से डेढ़ साल तक के लिए स्थगित रखे जाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे प्रदर्शनकारी किसान संघों ने सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि, 11वें दौर की वार्ता गणतंत्र दिवस से ठीक पहले हुई। इसमें, सरकार ने किसान संघों को प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने और अपने अंतिम फैसले से अवगत कराने को कहा था।