भारत की आपत्ति के बाद विभिन्न देशों में मिले कोरोना वैरिएंट को WHO ने दिया नया नाम, जानें- कैसे पहचाने जाएंगे
जिनेवा यूं तो साइंस की पढ़ाई के दौराना आपने एल्फा, डेल्टा, बीटा गामा के बारे में जरूर पढ़ा है। लेकिन, यहां पर हम जिस एल्फा, डेल्टा, बीटा और गामा की बात कर रहे हैं ये उनसे काफी अलग हैं। अलग इसलिए हैं क्योंकि ये कोरोना वायरस के ऐसे म्यूटेंट्स या प्रकार और उप-प्रकार हैं जिनसे दुनिया के कई देश परेशान हैं। ये म्यूटेंट्स कई इंसानों की मौत की वजह भी बन चुके हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हाल ही में कोरोना वायरस के दूसरे प्रकारों का नामकरण किया है।
वायरस के ये म्यूटेंट अलग-अलग देशों में पाए गए थे। जैसे भारत में पहली बार कोरोना के जिस प्रकार का पता चला था वो बी.1.167.2 था। ये भारत में सबसे पहले पाए गए तीन में से एक उप-प्रकार है। ये भारत में अक्टूबर 2020 में पाया गया था। ये स्ट्रेन अब तक दुनिया के करीब 53 देशों में मिल चुका है। इसको विश्व स्वास्थ्य ने बेहद घातक बताया है। इसी तरह से बी. 1.617.1 को अब कप्पा के नाम से जाना जाएगा। इसी तरह से ब्रिटेन में मिले कोरोना के वैरिएंट बी.1.1.7 को संगठन ने एल्फा का नाम दिया है। दक्षिण अफ्रीका में पहली बार मिले वैरिएंट बी.1.351 को डब्ल्यूएचओ ने बीटा का नाम दिया है, जबकि ब्राजील में मिले पी.1 स्ट्रेन को गामा कहा गया है। ये स्ट्रेन पहली बार नवंबर 2020 में मिला था। अमेरिका में मिले स्ट्रेन को एप्सीलोन और आइओटा बताया गया है।
संगठन के मुताबिक ये स्ट्रेन अब तक मिले दूसरे स्ट्रेन से कहीं ज्यादा घातक और संक्रामक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की तरफ से इन वैरिएंट को ऐसे समय में नाम दिया गया है जब भारत में पहली बार मिले वैरिएंट को लेकर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताई थी क्योंकि इसको रिपोर्ट में भारतीय वैरिएंट बताया जा रहा था। भारत की आपत्ति के बाद डब्ल्यूएचओ ने साफ किया था कि वो किसी देश के नाम पर किसी भी वैरिएंट का नाम नहीं रखता है। संगठन की तकनीकी प्रमुख डॉक्टर मारिया वेन करखोव का कहना है कि वैरिएंट का नामकरण होने के बाद भी इसका वैज्ञानिक नाम नहीं बदला जाएगा। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस नाम में ही इनकी खासियत छिपी होती है और वायरस की प्रमुख जानकारियां इससे ही पता चल जाती हैं। रिसर्च के दौरान भी इन्हीं नाम का उपयोग किया जाएगा।