सीओपी-26 में पर्यावरण हितैषी निर्णय और क्रियान्वयन के प्रति पीएम मोदी ने जताई चिंता
सीओपी 26 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सिर्फ चिंताएं ही व्यक्त नहीं की, बल्कि पर्यावरण हितैषी निर्णय एवं उनके क्रियान्वयन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता भी जाहिर की। इस दिशा में देश ने नीतिगत निर्णय लिए हैं और जमीनी स्तर पर कार्य हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण हित में काम करने के लिए सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के मंत्र पर चलना होगा। यहां अकेले चलने से लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी।
हमें समझना होगा कि विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल से मिल रही सुविधाएं पर्यावरण को नुकसान भी पहुंचा सकती हैं। इस समस्या को नियंत्रित करने का एक ही तरीका है कि विज्ञान को संस्कृति के लेंस से देखा जाए।
विकसित और पिछड़े देशों के बीच बढ़ती खाई
विज्ञान के नवीन उपहारों को मानवता की कसौटी पर परखा जाए, अन्यथा हम एक ऐसी दुनिया बना लेंगे जिसमें विकसित और पिछड़े देशों के बीच खाई बढ़ती जाएगी और विकसित दुनिया के लोगों की विलासिता की कीमत अन्य देश चुकाएंगे। इसलिए मोदी का यह कहना बहुत महत्वपूर्ण है कि सभी के मन मिले रहें। किसी भी परिवार में सबके मन मिलना जरूरी है और पूरा विश्व परिवार ही है।
मोदी ने इस दिशा में पांच लक्ष्यों को पंचामृत कहा है। इनमें गैर जीवाश्म ईंधन क्षमता बढ़ाने व अक्षय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने जैसे लक्ष्य हैं। ये केवल घोषणाएं नहीं हैं, बल्कि व्यावहारिक तौर पर की गई गणनाओं के संभावित परिणाम हैं। ये सभी आंकड़े बहुत विश्लेषण के बाद वैश्विक मंच पर रखे गए हैं। इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए नीतियां, योजनाएं और फ्रेमवर्क हमारे पास हैं। अर्थगंगा और वोकल फार लोकल जैसी संकल्पनाएं उन रास्तों की तरह हैं, जिन पर चलकर उपरोक्त लक्ष्यों को पाना संभव है।
हमारे यहां नदी संरक्षण की दिशा में जिस तरह से काम हो रहा है वह भी भविष्य में इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक साबित होगा। आज हम भारत की भूमि पर प्रवाहित होने वाली हजारों जल-धाराओं को सहेजने के लिए कार्ययोजना बना रहे हैं। नदियां महज बहता पानी नहीं हैं, बल्कि उनके किनारों पर रोजगार और व्यापार की असीम संभावनाएं हैं। जब नदियों के स्वास्थ्य को केंद्र में रखकर अर्थ, व्यापार, निर्माण और विकास होंगे तो नदियां हमारी अर्थव्यवस्था की सक्रिय भागीदार हो जाएंगी। स्वस्थ नदियां, स्वस्थ पर्यावरण की नींव बनेंगी। नदी के बेसिन प्रबंधन की दिशा में जो काम हो रहा है, वह सिर्फ नदी नहीं बल्कि समूचे क्षेत्र के पर्यावरण के लिए हितकारी होगा।
हाइड्रोजन ऊर्जा के एक बेहतर विकल्प के रूप में उभर रहा है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार ऊर्जा के स्नोत के रूप में हाइड्रोजन का इस्तेमाल कार्बन उत्सर्जन को कम करने में बहुत मददगार साबित हो सकता है। भारत इस संकल्पना पर गंभीरता से आगे बढ़ रहा है और इस दिशा में काम कर रहा है।
भारत में दूरगामी लक्ष्यों को पाने के लिए जरूरी है कि स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ाया जाए। यह तरीका छोटे शहरों और गांवों को आर्थिक आत्मनिर्भरता देने के साथ पर्यावरण के लिए भी लाभप्रद है। वोकल फार लोकल इसी दिशा में बढ़ाया गया कदम है। इसी तरह, भारत के संदर्भ में जब हम व्यापार को सुगम बनाने की बात करते हैं तो इसे सिर्फ बड़ी कंपनियों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। भारत में असंगठित क्षेत्र में लाखों छोटे-छोटे व्यापारी सक्रिय हैं, यह सुगमता उनके जीवन को आसान बनाती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने एक और अहम बात कही है, वह है लाइफ स्टाइल फार एनवायरमेंट। पर्यावरण से संबंधित जानकारियां हासिल करने में विज्ञान अपना योगदान दे सकता है। उसे किन तत्वों से कितना खतरा है? इन्हें कैसे कम किया जा सकता है? इनके समाधान विज्ञान बता सकता है लेकिन विज्ञान द्वारा बताए गए समाधानों को जनसामान्य को अमल में लाना पड़ेगा। एक ऐसी जीवनशैली अपनाकर जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान पहुंचे। कोरोना महामारी के इस दौर में हमने योग को तेजी से अपनाया है। उसी तरह जीवनशैली में कुछ परिवर्तन कर हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में अपना योगदान दे सकते हैं। इससे हमें व्यक्तिगत लाभ तो मिलेगा ही साथ ही साथ सामूहिक लक्ष्यों की प्राप्ति संभव हो सकेगी।
पर्यावरण संरक्षण हमारे संस्कारों में है। इनका आधार ऋषि-मुनियों के द्वारा अर्जित ज्ञान है। आज हमारे लिए जरूरी है कि हम विकास और संरक्षण के लिए पुरातन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान के हाइब्रिड माडल पर काम करें। इस संयोजन में सफलता ही हमें सीओपी26 में घोषित लक्ष्यों को पाने में मदद करेगी।