भाजपा को छोड़ किसी दूसरी पार्टी की न कोई विचारधारा और न ही उनमें लोकतंत्र, विपक्ष नहीं कर सकेगा मुकाबला
यूपी चुनाव में भाजपा की जीत और विपक्ष की करारी हार का चर्चा हर तरफ है। इस चुनाव ने जहां कई मिथक तोड़े हैं वहीं ये भी साफ कर दिया है कि भाजपा के सामने फिलहाल दूसरा कोई और नहीं है। ऐसे में विपक्ष के होश फाख्ता होना स्वाभाविक ही है। विपक्ष इस चुनाव के बाद और कमजोर हुआ है क्योंकि कांग्रेस समेत बसपा की भी राजनीतिक जमीन खत्म होने के कगार पर पहुंच चुकी है। इनका वोट अब पूरी तरह से इनसे कट चुका है। इतना ही नहीं इन दोनों ही पार्टियों का परंपरागत वोट अब भाजपा के खाते में जा रहा है।
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों ने विपक्ष को और कमजोर बना दिया है। ऐसे में भाजपा की स्थिति आने वाले वर्षों में और अधिक मजबूत होनी तय है। राजनीतिक विश्लेषक कमर आगा का कहना है कि आने वाले समय में विपक्ष के सामने कोई एक चेहरा ऐसा नहीं है जो दूसरों को साथ लेकर आगे बढ़ सके और भाजपा के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष दे सके। ऐसे में विपक्ष का और कमजोर होना तय है।
विपक्षी पार्टियों में नहीं कोई लोकतंत्र, न कोई विचारधारा
आगा का ये भी कहना है कि मौजूदा समय में देश की तमाम विपक्षी पार्टियों के अंदर न तो कोई लोकतंत्र बचा है और न ही उनकी कोई विचारधार है। वो केवल परिवारवादी और अवसरवादी पार्टियों तक ही सीमित हैं। लेकिन भाजपा इससे उलट है। उसके अंदर एक डेमोक्रेसी और विचारधारा साफतौर पर देखने को मिलती है। कांग्रेस की ही बात करें तो उसकी राजनीतिक जमीन पूरी तरह से खिसक चुकी है और वो धीरे-धीरे एक क्षेत्रीय पार्टियों की जमात में शामिल होती जा रही है। वहीं कुछ क्षेत्रीय पार्टियों का कद उससे भी बड़ा हो गया है।
लंबे समय तक नहीं होगा मजबूत विपक्ष
आगा के मुताबिक एक मजबूत विपक्ष की बात करें तो फिलहाल लंबे समय तक ये नहीं होने वाला है। टीएमसी जो बंगाल तक सीमित है अब दूसरे राज्यों में अपनी किस्मत आजमा रही है लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी है। वहीं कांग्रेस और टीएमसी की एकजुटता की बात करें तो कांग्रेस कभी ये नहीं चाहेगी कि उसको कोई लीड करे। वहीं कांग्रेस के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं बचा है जिसकी बात दूसरा सुने और मान लें।
सपा में भी नहीं लोकतंत्र
वहीं यूपी के विधानसभा चुनाव में दूसरी नंबर की समाजवादी पार्टी की बात करें तो वो केवल नाम मात्र की समाजवादी है। अंदरखाने वो भी कांग्रेस की ही तर्ज पर आगे बढ़ रही है। कांग्रेस जहां अपना चेहरा नहीं बदलना चाहती है वहीं समाजवादी पार्टी भी एक ही चेहरे के साथ आगे बढ़ना चाहती है।
AAP को नेगेटिव वोटिंग का फायदा
आम आदमी पार्टी की यदि बात करें तो वो पूर्व सरकार के खिलाफ उभरी आवाज या नेगेटिव वोटिंग के आधार पर अपनी जीत हासिल कर रही है। दिल्ली में पहले ऐसा हुआ था अब पंजाब में भी यही हुआ है। पंजाब में कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल से वहां की जनता नाराज थी इसलिए आम आदमी पार्टी को इसका फायदा मिला। लेकिन ये इस पार्टी में भी एक ही चेहरा है। बसपा में भी यही बात है।
दूसरों पर विश्वास नहीं
आगा कहते हैं कि इन सभी पार्टियों की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि वो किसी दूसरे चेहरे पर न तो विश्वास करना चाहती हैं और न ही उनको आजमाना चाहती, भले ही इससे कितना ही नुकसान उन्हें उठाना पड़े। ऐसे में भविष्य में एक मजबूत विपक्ष का होना भी काफी हद तक नामुमकिन लगता है।