अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा तंत्र दुरुस्त करने में जुटी मोदी सरकार
अफगानिस्तान की सत्ता पर आतंकी संगठन तालिबान के कब्जे के बाद जम्मू-कश्मीर में खतरे की आशंका बढ़ गई है। राज्य में आतंकियों और उनके आकाओं की रीढ़ तोड़ चुकी सरकार सुरक्षा तंत्र को दुरुस्त करने में जुटी ताकि देश के दुश्मन दोबारा फन नहीं उठा सकें। इसी सिलसिले में गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के बीच लंबी बैठक हुई, जिसमें वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। बैठक में सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के साथ ही विकास योजनाओं को गति देने और कट्टरपंथी ताकतों पर लगाम लगाने पर विस्तार से चर्चा हुई।
कश्मीर में आतंकी गतिविधियां बढ़ने की आशंका
हालांकि, मामले से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि अफगानिस्तान में तालिबान के आने से जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा हालात पर फिलहाल कोई असर पड़ने की आशंका नहीं है, लेकिन भविष्य को लेकर पहले से तैयारी जरूरी है। उनके अनुसार जम्मू-कश्मीर में तालिबान या अफगानी आतंकियों का हस्तक्षेप कभी नहीं रहा। परंतु, अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद सीमा पार बैठे आतंकी आकाओं और घाटी में मौजूद उनके समर्थकों का दुस्साहस बढ़ने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
पिछले दो सालों में ध्वस्त आतंकी इको सिस्टम के दोबारा पनपने से रोकने पर होगा जोर
तालिबान पाकिस्तानी सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ की कठपुतली है। पाकिस्तान उसके सहारे कश्मीर में आतंकी गतिविधियों को हवा देने की कोशिश कर सकता है। इसके लिए सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय पुलिस तंत्र को अत्यधिक चौकन्ना रहने और खुफिया सूचनाओं के तत्काल आदान-प्रदान और उसपर कार्रवाई सुनिश्चित करने को कहा गया है। सुरक्षा एजेंसियों को सीमा पार की एक-एक हलचल पर पैनी रखने को भी कहा गया है।
विकास योजना को गति देने पर बल
शाह और सिन्हा की बैठक को लेकर कोई स्पष्ट जानकारी तो नहीं दी गई है, लेकिन बताया जाता है कि बैठक में जम्मू-कश्मीर की विकास योजनाओं को गति देने पर विस्तार से चर्चा हुई। सरकार का मानना है कि विकास योजनाओं के सहारे युवाओं को पाकिस्तानी दुष्प्रचार से बचाया जा सकता है। पंचायत व स्थानीय निकाय, बीडीसी और डीडीसी चुनावों से आम लोगों की विकास प्रक्रिया में भागीदारी सुनिश्चित हुई है और इसका सकारात्मक प्रभाव भी देखने को मिल रहा है।
दो साल में बदली तस्वीर
अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद के दो साल में आतंकी फंडिंग से जुड़े लोगों, आतंकियों के लिए काम करने वालों और उनके समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई से आतंक का इको सिस्टम ध्वस्त हुआ है। अब आतंकी गतिविधियों के बारे में जमीनी स्तर से ठोस सूचना मिलने लगी है, जिसका परिणाम है कि बड़ी संख्या में आतंकी मारे जा रहे हैं।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यदि आतंकियों को दोबारा जड़े जमाने से रोकने में सफल रहे तो अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद कश्मीर पर पड़ने वाले प्रभाव को काफी हद रोकने में सफलता मिल सकती है। सरकार को पूरा फोकस इसी पर होगा।