एक्सपर्ट की जुुबानी जानें- भारत और बांग्लादेश के लिए क्यों खास होने वाला है दिसंबर का महीना
भारत और बांग्लादेश के आपसी संबंधों के लिए दिसंबर का महीना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि अगले माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना डिजिटल माध्यम से द्विपक्षीय बैठक करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी इसी वर्ष मार्च में बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की जन्म शताब्दी समारोह में शामिल होने ढाका जाने वाले थे, लेकिन वैश्विक महामारी की वजह से उनका दौरा रद हो गया था। साल 2020 बांग्लादेश के लिए काफी अहम है। एक तो यह वर्ष शेख मुजीबुर रहमान का शताब्दी वर्ष है और दूसरा 16 दिसंबर से बांग्लादेश विजय दिवस की 50वीं वर्षगांठ शुरू हो जाएगी। दोनों महत्वपूर्ण दिवसों को बांग्लादेश और भारत संयुक्त रूप से यादगार बनाना चाहते हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर जिस तरह बांग्लादेश में बापू की स्मृति में डाक टिकट जारी किया गया, उसी प्रकार भारत भी शेख मुजीबुर रहमान की जन्मशती एवं बांग्लादेश विजय पर्व की अर्धशती समारोह मनाना चाहता है।
इसी वर्ष सितंबर में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर और बांग्लादेश के विदेश मंत्री एके अब्दुल मोमिन की अध्यक्षता में संयुक्त सलाहकार आयोग की छठी बैठक संपन्न हुई थी। इस बैठक में आपसी द्विपक्षीय रिश्तों को लेकर सहमति व्यक्त की गई थी। बैठक में भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक, सीमा सुरक्षा, नागरिक सुविधाओं अन्य विवादित मुद्दों को सुलझाने समेत भारत द्वारा बांग्लादेश को कोविड वैक्सीन की आपूर्ति संबंधी विषयों पर चर्चा हुई। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि नेबरहुड फर्स्ट भारत की प्राथमिकता में है। प्रधानमंत्री मोदी भी कई मौकों पर पड़ोस पहले की नीति को अपनी प्रतिबद्धता दोहरा चुके हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के जल बंटवारे का मुद्दा भी शीघ्र सुलझ जाने की उम्मीद है। नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में दोनों देशों के आपसी संबंधों में काफी मजबूती आई है, जबकि बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बीएनपी यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के साथ भारत के रिश्ते उतने प्रभावी कभी नहीं रहे।
बांग्लादेश की राजनीति में दो बेगमों शेख हसीना और खालिदा जिया की सियासी अदावत काफी पुरानी है। इसकी शुरुआत खालिदा जिया के पति जियाउर रहमान और शेख मुजीबुर रहमान के समय ही शुरू हो गई थी। इस राजनीतिक शत्रुता की बड़ी कीमत शेख मुजीब के परिवार को चुकानी पड़ी। बीएनपी और अवामी लीग दो अलग-अलग धुव्र हैं। उनके बीच कई मुद्दों पर गहरे मतभेद हैं। बीएनपी जहां बांग्लादेश को इस्लामिक राष्ट्र का समर्थन करती है, वहीं अवामी लीग का रवैया इस मामले में उदार है। बेगम खालिदा जिया जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री थीं, उस दौरान ईश निंदा कानून बनाने की मांग को लेकर कई इलाकों में भीषण हिंसा हुई थी।
बीएनपी का आरोप है कि अवामी लीग बांग्लादेश में हिंदू तुष्टिकरण की राजनीति करती है। साल 2014 के आम चुनाव में 18 हिंदू सांसद चुने गए थे। पिछले कई वर्षो के मुकाबले यह संख्या अधिक थी। बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी करीब दस फीसद है। हिंदुओं को अवामी लीग का समर्थक माना जाता है। बांग्लादेशी हिंदू स्वयं को इस सरकार में अधिक सुरक्षित महसूस करते हैं। बांग्लादेशी हिंदू 1971 के मुक्ति युद्ध के समय हुए अत्याचार को आज तक नहीं भुला पाए हैं। बांग्लादेश में पहली जनगणना यानी जब यह पाकिस्तान का हिस्सा था, उस समय यहां मुसलमानों की कुल आबादी सवा तीन करोड़ थी, जबकि हिंदुओं की संख्या 92.4 लाख थी। वर्तमान में यहां हिंदुओं की संख्या 1.4 करोड़ है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 12.63 करोड़ है। साल 2013 में अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता दिलावर हुसैन को 1971 के युद्ध अपराधों के लिए मौत की सजा सुनाई गई थी। इस फैसले के बाद जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों ने हिंदुओं को निशाना बनाया था।
दिसंबर 2018 में बांग्लादेश में 11वीं नेशनल असेंबली के चुनाव हुए थे। देश के चुनावी इतिहास में यह दूसरा मौका था, जब अवामी लीग भारी बहुमत से सरकार बनाने में सफल हुई। वर्ष 1973 में बांग्लादेश में पहला संसदीय चुनाव हुआ था। शेख मुजीबुर रहमान की अगुवाई में 293 सीटें जीतकर अवामी लीग की पहली सरकार बनी थी। साल 2018 में अवामी लीग प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व में 257 सीटें जीतकर लगातार तीसरी बार सरकार बनाने में कामयाब हुई। चुनाव में अवामी लीग की सहयोगी पार्टयिां 31 सीटों पर विजयी हुई थीं, जबकि 300 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में बीएनपी की अगुवाई वाली नेशनल यूनिटी फ्रंट महज सात सीटों पर कामयाब हुई थी। वहीं युद्ध अपराध में दोषी करार दिए जाने के बाद और जमात-ए-इस्लामी की मान्यता रद किए जाने के बाद उसके 22 उम्मीदवारों ने बीएनपी के निशान पर चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली।
अब तक के चुनावों में जमात-ए-इस्लामी बीएनपी की सबसे बड़ी मददगार रही है, लेकिन चुनाव से पहले जमात को प्रतिबंधित किए जाने से बीएनपी की उम्मीदों को तगड़ा झटका लगा था। वैसे तो अवामी लीग की सरकार में अल्पसंख्यक हिंदू स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं, लेकिन वेस्टेड प्रॉपर्टी एक्ट वहां रहने वाले हिंदुओं के लिए मुसीबत का सबब बन चुका है। बीएनपी और जमात के शासन में अल्पसंख्यकों की जमीनों पर कब्जे हुए। वर्ष 1996 में अवामी लीग के सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री शेख हसीना ने 2001 में इस कानून में बदलाव कर इसका नाम वेस्टेड प्रॉपर्टी रिटर्न एक्ट कर दिया, ताकि बांग्लादेश में रहने वाले अल्पसंख्यकों को उनकी अचल संपत्तियों का लाभ मिले। कानून के तहत अल्पसंख्यकों की जब्त की गई जमीनों को 180 दिनों के भीतर वापस करने की मियाद तय की गई थी, लेकिन 2001 में बीएनपी की सरकार में अल्पसंख्यकों पर जुल्म और बढ़ गए। वर्ष 2008 में अवामी लीग सत्ता में आई और उसने इसे प्रभावी बनाने का फैसला किया, लेकिन सरकार के उस फैसले का लाभ अभी तक वहां के अल्पसंख्यकों को नहीं मिल सका है।
आर्थिक तरक्की : बीते 12 वर्षो में अवामी लीग सरकार में बांग्लादेश ने जिस तरह आíथक तरक्की की, उसकी प्रशंसा दुनिया भर में हो रही है। रेडीमेड गार्मेंट्स उद्योग के क्षेत्र में बांग्लादेश विश्व में दूसरे स्थान पर है, जबकि वस्त्रोद्योग के लिए जरूरी कच्चा माल वह आयात करता है। कृषि और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में बांग्लादेश ने काफी तरक्की की है। यही वजह है कि खाद्यान्न के मामले में वह आत्मनिर्भर बन चुका है। भारत, अमेरिका, यूरोप और अफ्रीकी देशों के साथ उसके बेहतर कारोबारी रिश्ते हैं। हालांकि हाल के वर्षो में चीन के साथ भी उसके व्यापारिक रिश्ते मजबूत हुए हैं, जो भारत के लिए अवश्य चिंता का विषय है। बांग्लादेश की आधारभूत संरचना के विकास के लिए चीन वहां भारी आíथक निवेश कर रहा है। खासकर पद्मा नदी पर बनने वाले महासेतु का निर्माण चीन की एक कंपनी कर रही है। इस परियोजना में चीन द्वारा 3.6 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया है। वर्ष 2014 में शुरू हुई यह परियोजना वर्ष 2022 में पूरी होगी।
इसके अलावा, बांग्लादेश में बनने वाले कई विशेष आíथक क्षेत्रों में भी चीन बड़े पैमाने पर निवेश कर रहा है। हालांकि बांग्लादेश का कहना है कि इससे भारत के साथ उसके द्विपक्षीय रिश्ते पर फर्क नहीं पड़ेगा। अवामी लीग की सरकार में बांग्लादेश भारत के बीच व्यापारिक और वाणिज्यिक क्षेत्रों में काफी प्रगति हुई है।
दोनों देशों के बीच यातायात सेवा सुगम होने की उम्मीद
रतला और कोलकाता का सफर महज 10 घंटे में पूरा होगा। इससे 21 घंटे समय की बचत होगी। इस तरह अगरतला और कोलकाता के बीच की दूरी 1,600 किमी से घटकर करीब 550 किमी रह जाएगी।
सुलझा भूमि सीमा का दशकों पुराना विवाद
वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद दोनों देशों के बीच बहुप्रतीक्षित भूमि सीमा समझौता किया गया था, जिसके तहत दोनों देशों ने अपने भू-भाग का आदान-प्रदान किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने बांग्लादेश के साथ दशकों पुराना भूमि सीमा विवाद सुलझाकर ऐतिहासिक कार्य किया। दरअसल 31 जुलाई 2015 की मध्य रात्रि से प्रभावी हुए भारत और बांग्लादेश के बीच 162 जगहों पर जमीन की अदला-बदली होने के साथ ही पिछले छह दशकों से लंबित दोनों देशों के करीब 50 हजार लोगों को नागरिकता मिल गई। निश्चित रूप से भारत और बांग्लादेश के बीच हुए इस भूमि सीमा समझौते से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सहयोग का नया दौर शुरू हुआ। यह भूमि सीमा समझौता वर्ष 1974 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान के बीच हुआ था। 1975 में मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद लंबे समय तक इस समझौते पर प्रगति ठप रही। बाद की सरकारें इस समस्या के प्रति उदासीन बनी रहीं। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस समस्या के समाधान का सवाल फिर से उठा। भारत ने पूर्व की ओर देखो विदेश नीति अपनाई और सात मई 2015 को देश की संसद ने एक संविधान संशोधन पारित किया। यह समझौता इस बात का प्रमाण है कि अगर दो देश चाहें तो वर्षो पुरानी सीमा संबंधी समस्या और अविश्वास को आपसी बातचीत के जरिये सुलझा सकते हैं।