02 November, 2024 (Saturday)

कब है सावन माह का पहला प्रदोष व्रत? जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और अन्य जरूरी बातें

 15 जुलाई को श्रावण कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि और शनिवार का दिन है। त्रयोदशी तिथि 15 जुलाई को रात 8 बजकर 33 मिनट तक रहेगी, उसके बाद चतुर्दशी तिथि लग जाएगी। इस दिन सुबह 8 बजकर 21 मिनट वृद्धि योग रहेगा, उसके बाद ध्रुव योग लग जाएगा। इसके अलावा 15 जुलाई को प्रदोष व्रत भी किया जाएगा। पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो पक्ष होते हैं, एक कृष्ण पक्ष और दूसरा शुक्ल पक्ष। इन दोनों ही पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाता है। प्रदोष का ये व्रत सुबह से लेकर रात के प्रथम प्रहर तक किया जाता है। आइए जानते हैं सावन प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और अन्य जरूरी बातें।

सावन माह का पहला प्रदोष व्रत कब (Sawan Pradosh Vrat 2023 Date)

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार, सावन माह का पहला प्रदोष 15 जुलाई दिन शनिवार को किया जाएगा। बता दें कि शनिवार का दिन होने के कारण यह शनि प्रदोष व्रत कहलाएगा।

सावन 2023 प्रदोष व्रत शुभ मुहूर्त ( Sawan Pradosh Vrat Shubh Muhurat)

पंचांग के अनुसार 15 जुलाई को शनि प्रदोष की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 30 मिनट से रात 07 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।

सावन प्रदोष व्रत की पूजा विधि (Sawan Pradosh Vrat Puja Vidhi)

इस दिन स्नान आदि से निवृत होकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले शिवलिंग पर शुद्ध जल चढ़ाएं। फिर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराके दोबारा शुद्ध जल चढ़ाएं। इसके बाद बेल पत्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची आदि से भगवान का पूजन करें और हर बार एक चीज चढ़ाते हुए ‘ऊं नमः शिवाय’ मंत्र का जप करें। सुबह पूजा आदि के बाद संध्या में, यानी प्रदोष काल के समय भी पुनः इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए।  शाम में आरती अर्चना के बाद फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा संपन्न कर व्रत खोल पहले ब्राह्मणों और गरीबों को दान दें। इसके बाद भोजन करें।

इस दिन शनिदेव की भी करें पूजा (Shani Dev Puja Vidhi)

इस प्रकार शिव पूजा के बाद शनिदेव की उपासना करें। इसके लिए पीपल के पेड़ में सरसों के तेल का दीपक जलाएं और गुड़ अर्पित करें। इस प्रकार सुबह की पूजा के बाद प्रदोष काल में पुनः स्नान कर या हाथ पैर धोकर साफ कपड़े पहनें और घर में ही पूजा के लिए एक स्थान निर्धारित करके उस जगह को साफ जल से शुद्ध करके गाय के गोबर से लीपकर मंडप तैयार कर लें और फिर उस मंडप में पांच रंगों से रंगोली बनाएं और उसी के पास पूजा के लिए भगवान शिव की तस्वीर रखें और सुबह की तरह ही पूरे विधि-विधान से पूजन करें। बता दें कि सूर्यास्त के ठीक बाद वाले समय और रात्रि के प्रथम प्रहर को प्रदोष काल कहा जाता है।

प्रदोष व्रत का महत्व (Sawan Pradosh Vrat Importance)

ऐसा कहा जाता है कि त्रयोदशी तिथि की रात के पहले प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा के दर्शन करता है उसे जीवन में सुख ही सुख मिलता है। लिहाजा इस दिन शिव प्रतिमा के दर्शन अवश्य ही करने चाहिए।

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