Chhath Puja 2020: प्रकृति से सामंजस्य व समभाव का संदेश देता छठ, ऊर्जा का प्रज्ज्वलन है सूर्य देव को अर्घ्य
चहि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकति जाय’। छठ ऊष्मा का आंतरिक व बाह्य परिपाक है। स्वयं का निरंतर ऊर्जामय परिष्करण। सूर्य जितना बाहर है, उतना ही हमारे भीतर। मनुष्य के समस्त रंग, खिलखिलाहट, आलोक व आयाम छठ में हैं। तेजस भाव की प्राप्ति व अर्पण इसमें है। सारी प्रार्थनाएं मनुष्यता की हेतु हैं। सूर्य इसी को प्रतिबिंबित करते हैं। शास्त्र व लोक, दोनों में। यह केवल हमारे समय का आख्यान नहीं, अपितु पर्यावरण व पारिस्थितिकी का मंगल घोष भी है। सूर्य स्वास्थ्य के आधार हैं। वे विश्व में प्रकाश के प्रथम आधार भी हैं। ज्योति की जितनी रंगमयता बाहर है, उतनी ही भीतर भी।
हम में सूर्य है, हम में चंद्रमा भी। यह अनुभूति छठ पर्व से और भी गहरी होती है। यह निकटता की उपस्थिति है। सूर्य से तथा स्वयं से। सूर्य शास्त्र में देव हैं, लोक में मित्रवत। ‘सुरुज सुरुज घाम करे, सुगवा सलाम करे। तोहरे बलकवा के जड़वत बा’। पूर्वी समाज में यह लोकप्रिय प्रार्थना है। सूर्य की मित्रता एक दिन की नहीं, यह सुख-दु:ख के लगावों की रंजना है। सूर्य ऊष्मा के स्रोत हैं। वे ही जीवन व मनुष्यता के सहज परावर्तन के हेतु हैं। वे प्रकृति की अर्थवत्ता को मंगल देते हैं। उनकी किरणों हमारे भीतर की रोशनी का उत्सव हैं। वे सबके हैं, हर तबके के। हर भाषा, क्षेत्र, जाति, धर्म, संप्रदाय के। जो अर्घ्य हम छठी मैया को देते हैं, वह वस्तुत: अपने को ही देते हैं। सूर्य-पत्नी उषा हमारे घर की आज सौभाग्यवती मांगलिकता हैं। छठी मैया का रूपांतरण हमने अपने समाज के लोक स्वीकृति के रूपाकार में किया है। ये लोक की मां हैं, लोकात्मकता की देवी हैं।
सूर्य को अर्घ्य अर्थात् अपनी ऊर्जा का प्रज्ज्वलन। अपनी श्रद्धा का परम निवेदन। चढ़ते व उतरते सूर्य के प्रति समान भाव। अर्थात जीवन की समानुपातिक समग्रता। एकनिष्ठ जीवन की विराटता का आवाहन। जल में खड़े रहकर सूर्य को अघ्र्य देते हैं। जल की पवित्रता अंतरमन में उतरती है। जल, जीवन और प्रगति के बारे में एक आख्या है। पानी से अधिक कुछ भी नरम या लचीला नहीं है। पानी की एक बूंद, अगर यह अपना इतिहास लिख सके तो ब्रह्मांड की व्याख्या करेगी। गिरते हुए पानी के गिरने से पत्थर भी टूट जाते हैं। पानी की आवाज जीवन की आवाज है। हमारे होने की आवाज है। जब कुआं सूख जाता है, तो हम पानी की कीमत जानते हैं। यह जीवन एक तरणताल की तरह है। आप पानी में डुबकी लगाते हैं, लेकिन आप यह नहीं देख सकते कि यह कितना गहरा है। जीवन को देखना, पानी को देखना है। उससे एक आदमी बहुत-सी चीजें सीख सकता है। जब जीवन आपके रास्ते में पत्थर रखे तो पानी बनो। पानी की एक सतत बूंद भी सबसे कठिन पत्थर को अनुकूलित कर लेगी।
जब आप अपनी आत्मा से कोई कार्य करते हैं तो आपको लगता है कि आपमें एक नदी बह रही है, खुशी की। हम सभी अलग-अलग पात्रों में पानी ही हैं। हमारे जल का स्वास्थ्य इस बात का प्रमुख पैमाना है कि हम जमीन पर कैसे रहते हैं। न्याय पानी की तरह तरल है, एक शक्तिशाली धारा की तरह। इसलिए अपने आंसुओं से दु:खी मत होना, क्योंकि चट्टानें कभी झरने पर पछताती नहीं हैं। प्रेम, एक नदी की तरह है, जब भी एक बाधा से उसकी भेंट होती है, एक नया रास्ता निर्मित कर लेती है। जीवन वन्य विस्तीर्णता और झरने की तरह मुक्त हो, यह कल्पना हमारे समाजों की रही है।
हमेशा पानी की तरह रहें। पानी नरम और विनम्र है, लेकिन यह सबसे शक्तिशाली और सबसे अधिक टिकाऊ भी है। हमें मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए। मानवता एक महासागर है। अगर समुद्र की कुछ बूंदें गंदी हैं तो भी समुद्र गंदा नहीं होता। इसीलिए जल में खड़े होकर हम सूर्य भगवान को अर्घ्य देते हैं। यह हमारे जीवन के चक्रों व पारिस्थितिकी को दर्शाता है। तरलता को भी। छठ स्वच्छता की सोच की महासृष्टि है। उसको लोक में ढाल दिया गया है। पर्यावरणीय चिंता के इस युग में व्यक्तियों को अपने परिवेश के स्वास्थ्य में रुचि होती है। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती है, हम वैश्विक संचार, वाणिज्य और परिवहन के माध्यम से अपने पर्यावरण और एक-दूसरे के साथ अधिक जुड़ते जाते हैं। स्वच्छ वातावरण के लिए हमारी इच्छा भविष्य के लिए भाग्य और आशा की एक शक्तिशाली भावना का प्रतिनिधित्व करती है। छठ इसका प्रतिबिंबन है।
छठ बताती है कि हम खुद को पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाओं और अपने तात्कालिक वातावरण से अलग नहीं कर सकते। हमारे अस्तित्व का प्रत्येक तत्व हमारे परिवेश से प्राप्त होता है। पर्यावरण मनुष्य को पोषण और ऊर्जा प्रदान करता है। सूर्य से उत्सर्जित ऊर्जा लाखों मील पृथ्वी तक आती है, जहां इसे प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से पौधों में इकट्ठा किया जाता है। अन्य आवश्यक तत्वों के साथ खाद्य श्रृंखला के माध्यम से मनुष्य में इस ऊर्जा को स्थानांतरित किया जाता है। छठ पर्यावरण की शुद्धि की जागरूकता देती है। सूर्य के प्रकाश से ताजा होने व स्वच्छ हवा के संपर्क में होने से हम अधिक सकारात्मक होते हैं।
छठ हमारी कलाओं का अनुरंजन भी करती है। हमारे लोकगीतों को हमारे जीवन से आधारित करती है। छठ लोक का पर्व इसलिए है, क्योंकि इसमें हमारी लय, हमारी संस्कृति, हमारे लोक गीत, हमारे संदर्भ, हमारी सभ्यता जुड़ी है। यह हमारी अस्मिता और सुंदरता का पर्व भी बन गया है। हमारी सुंदरता हमारी भीतरी तेजस्विता से आती है, इसीलिए छठ पर अघ्र्य हम बाहर व भीतर, दोनों तरह से देते हैं। अपने भीतर के चंद्रमा व सूर्य को बचाना हमें छठ सिखाती है। यह भीतर के ज्योति पुंज को धारण करना सिखाती है। छठ वस्तुत: वृक्ष, जल, पारिस्थितिकी, श्रद्धा, मनुष्यता, लोक, संगीत, साहित्य, तेज, स्नेह, ऊर्जा, ऊष्मा के संबंधों को नया रूपाकार देती है।
समभाव का उदात्त संदेश : सूर्य देव हमें ऊष्मा देते हैं, रंग देते हैं। इसीलिए उन्हें देवता की प्रतिष्ठा प्राप्त है। वे हमारे जीवन को रहने योग्य बनाते हैं। सूर्य की रोशनी हमारे भीतर की संज्ञा है। सूर्य देव सबके हैं। उनकी दृष्टि में धरती पर सब समान हैं। प्रकृति को अर्थ देने का कार्य सूर्य का है। सूर्य षष्ठी को दिया जाने वाला अर्घ्य लोकमन में छठी मैया को दिया जाता है। विशेष किस्म की बांस से बनी दउरियों में विभिन्न प्रकार के फल नदी के तट पर ले जाए जाते हैं तथा चढ़ते व उतरते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। नदी या तालाब या समुद्र में घुटने पानी तक खड़े होकर साधनापूर्वक उन्हें नमन करते हैं और श्रद्धा अर्पित करते हैं। चढ़ते व उतरते सूर्य दोनों को प्रणाम करने का अर्थ है कि हम सम भाव से किसी के उत्कर्ष व अपकर्ष में साथ बने रहते हैं।