शनिश्चरी अमावस्या पर बन रहे है खास संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि
वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिवार पड़ने के कारण इसे शनिश्चरी अमावस्या के नाम से जाना जाएगा। इस बार शनिश्चरी अमावस्या के दिन साल का पहला सूर्य ग्रहण भी लग रहा है। जिसके कारण इस दिन का महत्व और भी अधिक बढ़ जा रहा है। ज्योतिष के अनुसार, इस बार शनिश्चरी अमावस्या पर काफी अच्छा योग और नक्षत्र बन रहा है। जिसके कारण इस दिन शनिदेव की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही इस खास संयोग में स्नान और दान करने का भी अधिक महत्व है। जानिए शनिश्चरी अमावस्या का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि।
शनिश्चरी अमावस्या का शुभ मुहूर्त
वैशाख अमावस्या तिथि प्रारंभ- 30 अप्रैल तड़के 12 बजकर 59 मिनट से शुरू
अमावस्या तिथि समाप्त– 1 मई तड़के 1 बजकर 59 मिनट तक
आयुष्मान योग- 30 अप्रैल दोपहर 03:19 बजे से 1 मई दोपहर 03:18 बजे तक
प्रीति योग- 29 अप्रैल दोपहर 03:43 बजे से 30 अप्रैल दोपहर 03:19 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त – 30 अप्रैल सुबह 11:58 से दोपहर 12:49 बजे तक
अश्विनी नक्षत्र- 29 अप्रैल शाम 06:43 बजे से 30 अप्रैल रात 08:13 बजे तक।
शनिश्चरी अमावस्या का महत्व
शनिश्चरी अमावस्या को दर्श अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन शनिदेव की विधि-विधान से पूजा करना शुभ माना जाता हैं। इसके साथ ही अमावस्या के दिन स्नान, दान करना शुभ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, शनिश्चरी अमावस्या के दिन कुछ उपायों को करके काल सर्प दोष के साथ शनि साढ़े साती और ढैय्या से भी छुटकारा पा सकते हैं।
ज्योतिष के अनुसार, अमावस्या के दिन पितृ दोष से मुक्ति पाने और पितरों का आशीर्वाद पाने का खास महत्व है। इस दिन दूध और खीर की बनाकर पितरों को भोग लगाया जाता है।
शनिश्चरी अमावस्या पूजा विधि
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि कर लें। इस दिन नदी में स्नान करने का काफी अधिक महत्व है। अगर आप किसी नदी में स्नान करने नहीं जा सकते हैं तो घर में नहाने के पानी में थोड़ा सा गंगाजल स्नान कर लें। साफ-सुथरे कपड़े धारण कर लें। इसके बाद शनिदेव का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान शनि की विधि-विधान से पूजा कर लें। इसके साथ ही शाम के समय शनिदेव को सरसों का तेल अर्पित करने के साथ दीपक जलाएं। इससे लाभ मिलेगा।
डिसक्लेमर
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