भारत की बेबाक कूटनीति, अमेरिका को भी अपने ‘गिरेबान में झांकने’ की दी नसीहत
भारत भी अमेरिका समेत अन्य देशों के मानवाधिकारों के हालात पर नजर रखता है’, विदेश मंत्री एस. जयशंकर द्वारा कहा गया ये वाक्य से विश्व पटल पर बढ़ती हिंदुस्तान की महत्ता और ताकत को दर्शाता है। भारत अब एक मुखर राष्ट्र के रूप में अपनी अलग पहचान बनाता जा रहा है। अब हम खुलकर अपनी बात रखते हैं, फिर चाहे सामने अमेरिका हो या फिर कोई अन्य विकसित देश। पिछले दिनों रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर भी भारत ने अमेरिकी लाबी को खरी-खरी सुना दी थी। अगर हम कुछ दशक पहले ही बात करें, तो भारत इतनी मुखरता से अपने विचार अन्य देशों के सामने नहीं रख पाता था, इसके पीछे कई कारण थे। लेकिन आज भारत, अमेरिका जैसे देशों को जो दो टूक जवाब दे पा रहा है, उसके पीछे एक वजह मजबूत राजनीतिक स्थिति भी है।
भारत को शक्ति की नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे पीएम मोदी
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. अंशु जोशी कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और संबंधों में किसी भी राष्ट्र की शक्ति और स्थान उसकी आर्थिक, सैन्य, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर निर्भर करती है। इसके अलावा एक और अत्यंत महत्वपूर्ण बिंदु है, उस देश के शासक या नेता का स्वरूप और स्वभाव। किसी भी राष्ट्र के साथ संबंध किस दिशा में ले जाने हैं, अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपने राष्ट्र की छवि निर्माण से लेकर कौन से मुद्दे रखने हैं, द्वि-पक्षीय तथा बहु-पक्षीय संबंधों को कैसी दिशा देनी है, यह सब नेता या राजनीतिक प्रतिनिधि से ही निश्चित होता है। वैश्विक पटल पर भारतीय प्रतिनिधियों के हिसाब से देखें तो वर्ष 2014 के बाद का समय भारत को शक्ति की नई ऊंचाइयों पर ले जाता दिखाई देता है और नरेंद्र मोदी इसका एक महत्वपूर्ण कारण कहे जा सकते हैं।
गठबंधन की मजबूरी
दरअसल, साल 2014 से पहले भारत में गठबंधन की सरकारें बनती और गिरती रहीं। अलग-अलग विचारधाराओं के दलों को साथ लेकर चलने पर कोई बड़ा निर्णय लेना या किसी मुद्दे पर सख्ती से विचार रखना बेहद मुश्किल होता है। इस दबाव का असर हमारी विदेश नीति में भी दिखाई देता है। डॉ. अंशु जोशी बताती हैं कि साल 2014 के बाद जिस तरह से भारत की छवि वैश्विक पटल पर एक तीसरी दुनिया के देश से बदलकर एक तेजी से विकसित होते देश के रूप में बनी है, इसमें कोई दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इसमें बड़ा योगदान रहा है। भाजपा को साल 2014 में पूर्ण बहुमत मिला और उसके बाद लगातार बदलाव देखने को मिला, जिससे भारत की छवि मजबूत होती गई।
भारत का अमेरिका को करारा जवाब
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने जब अमेरिका जैसे देश को अपने ‘गिरेबान में झांकने’ की नसीहत दी, तो एक भारतीय के रूप में सभी को गर्व जरूर महसूस हुआ होगा। इससे पता चलता है कि अब भारत बदल रहा है। जब भारत में मानवाधिकारों के हालत पर सवाल उठा, तो विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को दो टूक जवाब देते हुए कहा कि अमेरिका समेत अन्य देशों के मानवाधिकारों के हालात पर भारत भी नजर रखता है। भारत भी अन्य देशों में मानवाधिकारों के हनन के मुद्दे उठाता है, जब वे खासकर भारतीय समुदाय से संबंधित होते हैं। कल (मंगलवार) ही हमारे सामने एक मामला (न्यूयार्क में दो सिखों पर हमले का) आया था। बता दें कि टू प्लस टू वार्ता के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि अमेरिका, भारत में हो रहे कुछ हालिया चिंताजनक घटनाक्रम पर नजर बनाए है जिनमें कुछ सरकारी, पुलिस और जेल अधिकारियों की मानवाधिकार उल्लंघन की बढ़ती हुई घटनाएं शामिल हैं।
रूस से तेल खरीदने के मुद्दे पर भी किया मुंह बंद
भारत की छवि अब विश्व पटल पर पहले जैसी नहीं रही। आज हर देश यह समझ रहा है कि भारत एक उभरती हुई शक्ति है और उससे सहयोग-संपर्क आवश्यक है। भारत की इस अंतरराष्ट्रीय अहमियत के पीछे भारतीय प्रधानमंत्री की वह कूटनीतिक सक्रियता है, जो उन्होंने बीते सात-आठ वर्षों में और यहां तक कि कोरोना काल में भी दिखाई। अब भारत मुखर हो गया है। हाल ही में जब रूस से ईंधन खरीदने की भारत की तैयारियों को लेकर अमेरिकी लाबी ने दबाव बनाया, तो भारत ने इसका मुंहतोड़ जवाब दिया। जयशंकर ने कहा है कि भारत रूस से जितना कच्चा तेल एक महीना में खरीदता है, रूस से उतना तेल यूरोपीय देश सिर्फ एक दिन में खरीद लेते हैं। भारत के विदेश मंत्री के ये तेवर पहले देखने को शायद ही कभी मिले हों।