पेंगुइन को मिला अम्बेडकर की पत्नी की आत्मकथा काे अंग्रेजी में अनुवाद करने का अधिकार
देशभर में भारतीय संविधान निर्माता एवं भारत रत्न बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की गुरुवार को 131वीं जयंती मनायी जा रही है। पेंगुइन रैंडम हाऊस इंडिया को डॉ. अम्बेडकर की पत्नी एवं सामाजिक कार्यकर्ता सविता अंबेडकर की मराठी में लिखी गई आत्मकथा को अंग्रेजी में अनुवाद करने का अधिकार मिला है।
यह पुस्तक मूल रूप से मराठी में लिखी गई। इसका शीर्षक ‘डॉ अम्बेडकरआंच्य सहवासत’ है जो पहली बार 1990 में मराठी में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद समीक्षकों द्वारा प्रशंसित और पुरस्कार विजेता अनुवादक नदीम खान ने किया है। जिसका शीर्ष “बाबासाहेब: माई लाइफ विद डॉ. बी. आर अम्बेडकर’ रखा गया। यह पुस्तक वर्ष के अंत तक उपलब्ध होगी।
डॉ. अम्बेडकर भारतीय बहुज्ञ, विधिवेत्ता, अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, और समाजसुधारक थे। उनके व्यक्तित्व के कई अनछुए पहलू हैं। इस पुस्तक में उनकी पत्नी सविता ने उन पहलुओं के बारे में लिखा है। अपनी पत्नी को प्रेम पत्र लिखने से लेकर उनके पहनावे तक पर ध्यान रखने वाले डॉ अम्बेडकर को मटन करी का भी लुफ्त उठाना काफी पसंद था। वह वायलिन बजाने के भी शौकीन थे। इसके अलावा, वह मूर्तिकला में भी अपने हाथ आजमा चुके हैं। इस पुस्तक में डॉ अम्बेडकर की जिन छोटी-छोटी बातों का जिक्र किया गया है, वैसा पहले कभी कहीं और नहीं किया गया है।
एक मध्यमवर्गीय सारस्वत ब्राह्मण परिवार में जन्मीं डॉ. शारदा कबीर की डॉ भीमराव अंबेडकर से मुलाकात तब हुई थी, जब वह किसी बीमारी से पीड़ित थे और उन्होंने डॉ. शारदा से चिकित्सकीय सलाह ली थी। आखिरकार दोनों ने 15 अप्रैल 1948 को शादी कर ली और इसके बाद उन्होंने अपना नाम बदलकर सविता रख लिया। उनकी शादी के दिन से लेकर 6 दिसंबर, 1956 डॉ अम्बेडकर के निधन होने तक डॉ. शारदा ने जीवन की कई बड़ी उपलब्धियों में डॉ अम्बेडकर का साथ दिया जैसे कि बुद्ध और उनका धम्म, लाखों दलितों को बौद्ध धर्म सहित भारत के संविधान का मसौदा तैयार करना, हिंदू कोड बिल तैयार करने के बारे में उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तकों को लिखने में उनकी सहायता करना शामिल था।
डॉ अम्बेडकर के निधन के बाद कुछ लोगों ने डॉ शारदा को उनके राजनीतिक करियर के एक खतरे के रूप में देखा। इसलिए उन्हें कुछ अर्से तक के लिए दबाकर रखा गया। हालांकि 1970 में डॉ शारदा फिर से लोगों के सामने आईं और उस मिशन पर काम करने लगीं जिसके लिए उनके पति ने अपने जीवन को समर्पित कर दिया था और वह है दलिताें की सेवा। सविता अंबेडकर का 29 मई 2003 को निधन होने पर उनका राजकीय अंतिम संस्कार किया गया।
बाबा साहेब की आत्मकथा के अनुवादक नदीम खान कहते हैं, ”चूंकि यह डॉ बीआर अम्बेडकर की जिंदगी की कुछ अनकही बातों को उजागर करती है इसलिए यह एक महत्वपूर्ण किताब है, जिसका मैंने अनुवाद किया है।”