महाशिवरात्रि आते ही ब्रज में छाने लगी भंग की मस्ती, यमुना घाटों पर घुट रहा भाेले का प्रसाद
गंग से ऊंची जल तरंगें उठें, जब अंग में आवत भंग भवानी, ऐसी गाढ़ी छानिए, जैसी गाढ़ी खीज, घर के जाने मर गए, आप नशे के बीच, हो-हो सबेरे फिर छनेगी। महाशिवरात्रि आते ही ब्रज में अखाड़ों से लेकर घाटों तक भंग की मस्ती छाने लगी है। अखाड़े भंग के नशे में डूब रहे हैं। घाटों पर सिल-बट्टे पर भांग की घुटाई हाेने लगी है। ब्रज में होली की मस्ती की बात ही कुछ निराली है। महाशिवरात्रि से और मस्ती बढ़ जाती है। ब्रज में होली का उल्लास भी सातवें आसमान पर पहुंच जाता है। शायद ही कोई इससे दूर रह पाता है। भांग के शौकीन अपने को नशेड़ी नहीं मनाते, बल्कि मदमस्तों की टोली मानते हैं। भंग को छानने से पहले भगवान बलराम को भोग लगाते हैं।
धार्मिक मान्यता है, चतुर्वेदी समाज के लोगों ने कंस वध के बाद विश्राम घाट पर भगवान श्रीकृष्ण और बलराम का स्वागत भांग से ही किया था। श्रद्धालु भी अपने को इस आनंद से दूर नहीं रख पाते हैं। भंग की मस्ती के बिना होली का आनंद ही अधूरा रह जाता है। अखाड़ा कंस टीला पर डब्बू, विष्णुकांत, श्यामू मेंबर, सुनील कुमार, कलुआ भंग घोटने में मस्त हैं। छान-छान किसी की मत मान, जब निकल जाएगी जान, तो कौन कहेगा छान जैसे फाग पर मदमस्त हो रहे थे। न कोई चिंता न कोई फ्रिक बस भंग की घोटाई की मस्ती में सराबोर थे। प्रयागघाट, विश्रामघाट, श्मशान बगीची, कंकाली, भूतेश्वर बगीची, पीपल अखाड़ा पर जमकर भांग की घुटाई हो रही है। जैसे-जैसे होली नजदीक आ रही है, भंग की मस्ती सिर चढ़कर बोल रही है।
भांग के बिना मजा अधूरा
डब्बू भाई कहते हैं, भांग के बिना ब्रज की होली का मजा अधूरा है। भांग की पत्तियां लाकर सुखाते हैं। काली मिर्च, पिस्ता, बादाम, मुनक्का आदि मिलाते हैं। भांग न गर्मी का एहसास होने देती है और न प्यास का। भांग का नशा सात्विक है। भांग तो प्रसाद है। यहां की यही मस्ती है।