अमेरिका अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए यूक्रेन-रूस युद्ध को एक मौके की तरह देख रहा, एक्सपर्ट व्यू
कुछ लोग कहने लगे हैं कि यूक्रेन-रूस युद्ध असल में कृत्रिम तरीके से फैलाया गया संकट है। इसके पीछे दुनिया की बड़ी हथियार निर्माता कंपनियां हैं, जो दुनिया में अपने नवीनतम हथियार बेचना चाहती हैं। इस भू-राजनीतिक संकट की तुलना गांव के किसी हाट से करना इसका सामान्यीकरण है, जहां हर नाटक और उठापटक का अंतिम उद्देश्य बस कारोबार को बढ़ाना होता है। यूक्रेन के मामले में हमें ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। असल में रूस-अमेरिका दोनों के हित यूक्रेन से जुड़े हैं। यह संकट दुनिया में नए तरह का धु्रवीकरण पैदा करेगा, जिसकी झलक अगले कुछ वर्षों में दिखने लगेगी।
पहले ऐतिहासिक दृष्टि से देखते हैं। आधुनिक इतिहास में यूक्रेन राजनीतिक और सांस्कृतिक रूप से रूस के खेमे में रहा है। कभी सीधे तौर पर उसका हिस्सा रहा, तो कभी स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में। रूसी क्रांति के बाद यूक्रेन सोवियत संघ का हिस्सा बन गया था। करीब आठ दशक तक एक देश की तरह रहने के दौरान रक्षा शोध एवं विनिर्माण के क्षेत्र में रूस और यूक्रेन में व्यापक गठजोड़ रहा। सोवियत संघ के विघटन के बाद कई अहम रक्षा संस्थान यूक्रेन में बने रहे, जिससे उस समय उसकी अर्थव्यवस्था को गति मिली। भारत ने भी सोवियत के समय के कई रक्षा उपकरण यूक्रेन से खरीदे थे।
सोवियत के विघटन के बाद कुछ वर्ष रूस के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण रहे थे और उस समय यूक्रेन में अमेरिका या पश्चिमी देशों के बढ़ते प्रभाव के खिलाफ वह कुछ भी करने की स्थिति में नहीं था। हालांकि व्लादिमीर पुतिन के सत्ता में आने के बाद उन्होंने ऐतिहासिक और भौगोलिक दोनों स्थितियों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि नाटो को यूक्रेन तक नहीं आना चाहिए। मौजूदा संकट की जड़ इसी में है। समस्या मात्र यह नहीं है कि यूक्रेन नाटो से जुड़ जाएगा, बल्कि नाटो का सैन्य बेस यूक्रेन में बन जाएगा और उसकी मिसाइलें यहां तैनात होंगी। निश्चित तौर पर यह रूस के लिए खतरा होगा क्योंकि वहां तैनात मिसाइलों की जद में रूस का बड़ा हिस्सा आ जाएगा।
इसमें भी समझने की बात है कि यूक्रेन से बड़ा मसला अमेरिका और दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति के रूप में इसका उभार है। चीन ने मौजूदा समय में अमेरिका को बड़ी चुनौती दी है। ऐसे में अमेरिका यूक्रेन में अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है। रूस चीन का करीबी है। ऐसे में अमेरिका का मानना है कि वह मौजूदा संकट के दौर में खुद को पश्चिमी देशों के बीच बड़े रक्षक के रूप में स्थापित कर सकता है। इससे वह चीन को भी संदेश भेजेगा कि बात चाहे यूरोप की हो या दक्षिण पूर्व एशिया की, अमेरिका अपने सहयोगियों के साथ खड़ा होने में हिचकेगा नहीं। इसके अलावा यूक्रेन मामले में अपने रुख से अमेरिका मरणासन्न नाटो में भी नई जान फूंक सकता है। इससे न केवल पश्चिमी देश फिर अमेरिका के प्रभाव में आएंगे, बल्कि वह रूस और जर्मनी जैसे पश्चिमी देशों के बीच आर्थिक एवं ऊर्जा गठजोड़ को भी प्रभावित करने में सक्षम होगा।
इससे रूस को फिर से यूरोप के शत्रु के रूप में पेश किया जा सकेगा और अमेरिका की श्रेष्ठता सिद्ध होगी, कम से पश्चिमी दुनिया में। चीन की ताकत और प्रभाव को परखने के लिए अमेरिका रूस से जोर आजमाइश कर रहा है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि यूक्रेन मामले में अमेरिका और रूस के टकराव में चीन की भी भूमिका रहेगी। फिलहाल रूस के लिए यह मसला उसकी संप्रभुता से जुड़ा है।