26 November, 2024 (Tuesday)

मनीष गुप्‍ता हत्याकांड: मनमानी और क्षणिक आवेश की सजा भुगतेंगे सात परिवार

मनीष हत्याकांड में पुलिस कर्मियों की मनमानी, क्षणिक आवेश से सात परिवारों का जीवन तबाह हो गया। मनीष के पिता नंदकिशोर को जीवन भर मलाल रहेगा कि गोरखपुर के छह पुलिस कर्मियों ने उनसे उनका इकलौता बेटा छीन लिया तो हत्यारोपित पुलिस कर्मियों के स्वजन भी वर्षों हत्यारे के परिवार कहे जाने का दंश झेलेंगे।

एइआर, सीइआर जैसे प्रशिक्षणों को भूल चुका है पुलिस विभाग

हाल के वर्षों में देखा जाए तो वर्दीधारियों के क्षणिक आवेश का शिकार होने वालों की संख्या तेजी से बढ़ी है। वर्ष भर पूर्व लखनऊ में ही एक सिपाही ने एक इंजीनियर से बाताकही को लेकर गोली मार दी थी। हरपुर बुदहट के एक योग प्रशिक्षक को तीन माह पूर्व भी पुलिस ने जवाब देने के आरोप में पीट दिया था। पुलिस विभाग के जानकार इसके लिए सिर्फ पुलिस कर्मचारियों को दोषी नहीं मानते हैं। वह इसके लिए अधिकारियों को भी जिम्मेदार बताते हैं। इसकी वजह है प्रशिक्षण की कमी। प्रशिक्षण समुचित रूप से न होना, इसकी प्रमुख वजह है। पुलिस विभाग के कई

पुलिस अफसर अब दारोगा, इंस्पेक्टरों के समुचित प्रशिक्षण पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, मनीष हत्याकांड भी इसी की देन है। ट्रेनिंग, सम्मेलन में यह बताए जाने की खास जरूरत है कि उनकी हरकतों से न सिर्फ सामने वाले का परिवार तबाह होता है, बल्कि उनका अपना परिवार भी तबाह होता है। क्षणिक आवेश भी भ्रष्टाचार से जुड़ा है। हालांकि सरकार ने इसे लेकर कई कार्रवाइयां भी कीहैं। कई आईपीएस को बर्खास्त किया गया है। अपराध को किसी भी हाल में वर्दी वाले के मनोबल से नहीं जोड़ा जाना चाहिए, बल्कि वर्दी वाला यदि अपराध करे तो उस पर और गंभीर कार्रवाई करने की जरूरत है। ताकि यह अन्य लोगों के लिए सबक हो।

पुलिस कर्मियों ने संयम पर ध्यान नहीं दिया। उन्हें इसकी सजा भी मिलेगी। ऐसे में मनीष हत्याकांड सभी पुलिस कर्मियों के लिए एक सबक है कि वह लापरवाही करेंगे तो उन्हें ऐसे ही सजा भुगतनी होगी। लोगों में प्रशिक्षण का अभाव है। इसकी देन है कि लोग पुलिसिंग में कम और अपनी गलत लालसा को पालने में अधिक ध्यान दे रहे हैं। पुलिस कर्मी समाज में सर्वाधिक दिखने वाला व्यक्ति है, ऐसे में उसका जीवन दूसरे के लिए सबक होना चाहिए। यह तभी हो सकेगा, जब समय-समय पर उन्हें समुचित प्रशिक्षण मिलेगा।

इसे सिर्फ क्षणिक आवेश का मामला नहीं कहा जा सकता है। यह विशुद्ध रूप से मनमानी और यूनीफार्म का अहं है। यह सबकुछ एक दिन में व्यक्ति के भीतर नहीं आता है। लगातार व्यक्ति के व्यक्तित्व की काउंसलिंग करने की जरूरत है। इसी लिए पुलिस कर्मियों व अधिकारियों के प्रशिक्षण के दौरान मनोचिकित्सक या मनोवैज्ञानिकों को भी शामिल किया जाता है। ताकि इसका मूल्यांकन किया जा सके, जिसे शस्त्र सौंपा जा रहा है, वह उसके योग्य है भी या नहीं। इतना ही नहीं है यह प्रशिक्षण सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि बार-बार दिये जाने की जरूरत है और पुलिस में मनमानी करने वाले लोगों की हरकतों पर नजर रखकर नजरंदाज नहीं, बल्कि कार्रवाई की जाए। ताकि इस तरह के मामले सामने न आएं।

गलत व्यक्ति को जब गलत जिम्मेदारी दी जाएगी तो इस तरह के मामले सामने आएंगे। पुलिस विभाग में इस तरह की बातें तो होती हैं, लेकिन कार्रवाइयां कम होती हैं। ऐसे में जिम्मेदारों को किसी भावना में बहने की जरूरत नहीं, बल्कि समय-समय पर अपनी टीम का मूल्यांकन करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि अधिकारी जानते नहीं हैं कि विभाग में किस व्यक्ति की क्षमता व स्वभाव कैसा है, लेकिन वह उसे नजरंदाज करते हैं। छोटे मामलों पर ही उचित दंड मिल जाए तो इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी।

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