SC ने एनजीओ प्रमुख को भेजा अवमानना नोटिस, कहा- जुर्माना जमा कराने के बजाय अदालत को बदनाम करने की कोशिश
सुप्रीम कोर्ट ने एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख को अवमानना का नोटिस जारी कर पूछा है कि अदालत को बदनाम करने के लिए क्यों न उनके खिलाफ कार्रवाई की जाए और उन्हें सजा सुनाई जाए।
शीर्ष अदालत ने फरवरी में एनजीओ सुराज इंडिया ट्रस्ट के चेयरपर्सन राजीव दहिया के खिलाफ जमानती वारंट जारी किया था। उनके खिलाफ बिना किसी वर्षों तक 64 जनहित याचिकाएं दायर करने और शीर्ष न्यायालय के न्यायाधिकार का ‘लगातार दुरुपयोग’ करने के लिए लगाए गए 25 लाख रुपये के जुर्माने की रकम जमा नहीं कराने पर वारंट जारी किया गया था। किसी भी जनहित याचिका में कोई फैसला नहीं आया।
जस्टिस एसके कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने नौ जुलाई को दिए आदेश में कहा कि दहिया द्वारा दी गई तमाम तरह की दलीलें और लिखे गए पत्र अदालत को बदनाम करने के लिए थे।
पीठ ने कहा, ‘रिकार्ड पर गौर करने पर हमें पता चला कि यह मामला इस अदालत के फैसले के अनुसार ट्रस्ट/दहिया से केवल राशि बरामद करने का है, लेकिन जो दलीलें दी गईं, पत्र लिखे गए वे केवल अदालत को बदनाम करने और अदालत को जुर्माने की रकम वसूल करने के लिए कार्रवाई करने से रोकने के लिए थे। यह स्पष्ट रूप से अदालत को डराने-धमकाने का प्रयास है और अदालत इसे बर्दाश्त नहीं करेगी।’ दहिया को चार अगस्त तक नोटिस का जवाब देना है।
दहेज प्रताड़ना के आरोपित पति पर चलेगा हत्या का मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को कहा कि दहेज प्रताड़ना के आरोपित पति पर हत्या का भी मुकदमा चलेगा। शीर्ष ने लड़की के पिता की याचिका पर हत्या का मुकदमा रद करने का उच्च न्यायालय का आदेश खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि हाई कोर्ट को पुनरीक्षण शक्ति का इस्तेमाल उन मामलों में नहीं करना चाहिए जिसमें आइपीसी की धारा 302 में लगे अतिरिक्त आरोपों पर ट्रायल चल रहा हो और अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों का परीक्षण हो चुका हो। बता दें कि राजस्थान के भरतपुर के इस मामले में लड़की का शव फांसी पर लटका पाया गया था। पति पर दहेज प्रताड़ना, लड़की को चोट पहुंचाने और आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चल रहा था।