आरक्षण पर कानून बनाने का राज्यों का अधिकार खत्म नहीं हुआ, महाराष्ट्र का मराठा आरक्षण कानून संवैधानिक
केंद्र सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में आरक्षण के बारे मे कानून बनाने की राज्य सरकारों की विधायी शक्ति को मानते हुए कहा कि संविधान के 102वें संशोधन से राज्यों का अधिकार समाप्त नहीं होता। केंद्र ने यह भी कहा कि महाराष्ट्र का मराठा आरक्षण कानून संवैधानिक है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- महाराष्ट्र का एसईबीसी एक्ट संवैधानिक है.
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ मराठा आरक्षण पर सुनवाई कर रही है। पीठ के सामने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि महाराष्ट्र का एसईबीसी एक्ट (मराठों को आरक्षण देने का कानून) संवैधानिक है। कोर्ट ने केंद्र से संविधान संशोधन और उसके मुताबिक पिछड़ों की सूची जारी न करने को लेकर कई सवाल किए और जवाब भी मांगा है। इस पर मेहता ने लिखित जवाब दाखिल करने की बात कही।
राज्यों ने आरक्षण पर उठाए सवाल, मामले को 11 सदस्यीय पीठ में भेजने का किया आग्रह
पीठ के समक्ष कई राज्यों की ओर से भी बहस की गई। राज्यों ने आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद की सीमा का विरोध किया। राज्यो ने कहा कि 50 फीसद की सीमा लक्ष्मण रेखा नहीं है। सीमा तय करने वाले इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए।
मराठा आरक्षण पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ ने तय किए छह कानूनी सवाल
इस मामले पर सुनवाई कर रही संविधान पीठ छह कानूनी सवालों को भी विचार के लिए तय किया है। इसमें आरक्षण की 50 फीसद की सीमा और संविधान के 102वें संशोधन के बाद पिछड़ों की पहचान और उन्हें आरक्षण देने का कानून बनाने के राज्यों के अधिकार का मुद्दा शामिल है।
102वें संशोधन से अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया
मेहता ने कहा कि अटार्नी जनरल संविधान के 102वें संशोधन पर विस्तार से सरकार का पक्ष रख चुके हैं। उन्होंने कहा कि इस संशोधन से राज्यों के अधिकार खतम नहीं हुए हैं। बल्कि इस संशोधन से केंद्र सरकार की शक्तियां बढ़ी है। मालूम हो कि 102वें संशोधन के जरिये संविधान में अनुच्छेद 342ए जोड़ा गया है जो कि राष्ट्रपति द्वारा ओबीसी की सूची जारी करने की बात कहता है।
सूची जारी नहीं होने पर उठाए सवाल
पीठ ने सवाल किया कि यह संशोधन 2018 में हुआ था लेकिन आजतक लिस्ट क्यों नहीं जारी नहीं? पीठ ने अगला सवाल किया कि अनुच्छेद 342ए कहता है कि राष्ट्रपति राज्यपाल से परामर्श कर पिछड़ों की सूची जारी करेंगे। क्या आप सूची जारी न करके इसे एक डेड लेटर बनाए रखना चाहते हैं। इस पर मेहता ने कहा कि पुरानी सूची अभी लागू है। पीठ ने कहा कि मौजूदा सूची को भी संविधान संशोधन के मुताबिक शामिल होना चाहिए।
अनुच्छेद 342ए की व्याख्या स्पष्ट नहीं
शीर्ष अदालत ने मेहता पर सवालों की बौछार करते हुए कहा कि अनुच्छेद 342ए की व्याख्या स्पष्ट नहीं है और 342ए में सूची जारी न होने का क्या प्रभाव होगा। मेहता ने कहा कि इस मामले में कोर्ट मराठा आरक्षण कानून पर विचार कर रहा है। जब कोर्ट 102वें संशोधन पर सुनवाई करेगा तब इन सवालों का जवाब देंगे। पीठ ने कहा कि 102वें संशोधन को भी कोर्ट मे चुनौती दी गई है और उस पर केंद्र को नोटिस जारी हुआ है। वे इस पर सरकार का पक्ष सुनना चाहते हैं। मेहता ने कहा कि वह लिखित में जवाब दाखिल करेंगे। मेहता ने कहा कि अनुच्छेद 342ए के प्रावधान केंद्र की भूमिका से संबंधित हैं। महाराष्ट्र का एसईबीसी एक्ट (मराठों को आरक्षण देने का कानून) संवैधानिक है।
102वें संविधान संशोधन से खत्म नहीं हुआ है राज्यों का अधिकार
राज्यों की ओर से भी दलीलें रखीं गईं जिसमे कहा गया कि 102वें संशोधन से राज्यों का कानून बनाने का अधिकार समाप्त नहीं होता है। राज्यों ने 50 फीसद की सीमा भी हटाने की बात कही। झारखंड, बिहार, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु की ओर से बहस की गई। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था क्योंकि मामला उनके अधिकार से जुड़ा हुआ है।