मराठा आरक्षण: महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा- आरक्षण की 50 फीसद की सीमा पर हो पुनर्विचार
आरक्षण की तय अधिकतम 50 फीसद की सीमा को पारकर महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण देने वाली वाली राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से आरक्षण की 50 फीसद सीमा हटाए जाने की मांग की है।
इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेजने का किया आग्रह
महाराष्ट्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि 50 फीसद की सीमा तय करने वाला इंदिरा साहनी मामले में दिया गया फैसला अब व्यवहारिक नहीं रहा है, उस फैसले को पुनर्विचार के लिए 11 न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाना चाहिए।
संसद ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण देकर पार की 50 फीसद की सीमा
महाराष्ट्र सरकार ने यह भी कहा कि संसद ने भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण देने का कानून बनाते वक्त आरक्षण की 50 फीसद की सीमा को पार किया है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 फीसद आरक्षण देते वक्त संसद को पता था कि ज्यादातर राज्यों में पहले से ही 50 फीसद से अधिक आरक्षण लागू है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से ये दलीलें वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने रखीं।
मराठा आरक्षण मामले में कोर्ट ने छह कानूनी सवाल विचार के लिए तय किए
सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ आजकल मराठा आरक्षण की वैधानिकता पर सुनवाई कर रही है। इस मामले में कोर्ट ने आरक्षण से जुड़े छह कानूनी सवाल भी विचार के लिए तय किए हैं जिसमें एक सवाल है कि क्या इंदिरा साहनी फैसले में तय की गई आरक्षण की अधिकतम 50 फीसद की सीमा पर पुनर्विचार की जरूरत है। इसके अलावा कोर्ट यह भी विचार कर रहा है कि क्या संविधान के 102वें संशोधन से राज्यों का पिछड़ों की पहचान करने और उन्हें आरक्षण देने का अधिकार समाप्त हो गया है। सुप्रीम कोर्ट की नौ न्यायाधीशों की पीठ ने 1992 में इंदिरा साहनी मामले में फैसला दिया था जिसे मंडल जजमेंट भी कहा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 102वें संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र को जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 102वें संशोधन को चुनौती देने वाली एक याचिका पर केंद्र सरकार और अटार्नी जनरल को नोटिस भी जारी किया है। इसके अलावा शुक्रवार को कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार की ओर से दलीलें रखी गईं जिसमें मराठों को पिछड़ा मानते हुए दिए गए आरक्षण को जायज ठहराया गया।
30 साल पहले इंदिरा साहनी फैसले में तय की गई यह सीमा अब हो चुकी है अव्यवहारिक
मुकुल रोहतगी ने कहा कि इंदिरा साहनी के फैसले को 30 साल बीत चुके हैं, परिस्थितियों में बहुत बदलाव हो गया है। यहां तक कि कई बातें उस फैसले की ऐसी हैं जिनके बारे में कानून बन चुके हैं और स्थितियां बदल चुकी हैं। इन सब चीजों को देखा जाए तो आज के समय में इंदिरा साहनी का फैसला अव्यवहारिक हो चुका है। ज्यादातर राज्यों में आरक्षण 50 फीसद से ज्यादा है। इसका कारण है कि आरक्षण के द्वारा जो लक्ष्य प्राप्त करना था वह अभी भी प्राप्त नहीं हुआ है, ऐसे में आरक्षण की 50 फीसद अधिकतम सीमा तय करना ठीक नहीं है। इसलिए इंदिरा साहनी फैसले को पुनर्विचार के लिए बड़ी पीठ को भेजा जाना चाहिए।
महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया
महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने भी बहस की और कहा कि राज्य में मराठों को आरक्षण पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट के आधार पर दिया गया है। आयोग की रिपोर्ट बहुत विस्तृत और समग्र है, रिपोर्ट की न्यायिक समीक्षा नहीं होनी चाहिए। मामले में सोमवार को भी बहस जारी रहेगी।