चीन को साधने के लिए बाइडन को पड़ेगी भारत की जरूरत, ट्रंप की तरह नहीं होंगी आक्रामक पॉलिसी
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के सत्ता संभालने के बाद उनकी चीन और ईरान को लेकर कैसी पॉलिसी होगी इसको लेकर फिलहाल विशेषज्ञ कयास ही लगा रहे हैं। हालांकि ये कयासबाजी भी बाइडन के पुराने बयानों को ध्यान में रखते हुए लगाई जा रही है। आपको बता दें कि ओबामा प्रशासन में बाइडन उपराष्ट्रपति के रूप में काम कर चुके हैं। चीन और ईरान दोनों ही पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में अमेरिका से तनाव की बड़ी वजह बनी थीं। इस दोनों देशों के बारे में जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर एके पाशा का मानना है कि अमेरिका चीन को साधने के लिए भारत को तवज्जो देगा।
दैनिक जागरण से बात करते हुए उन्होंने कहा कि अमेरिका मौजूदा समय में आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है और ऐसे में वो भारत को एक बड़े बाजार के तौर पर देखता है। बाइडन अपने कार्यकाल में चाहेंगे कि उनकी कंपनियों की पहुंच भारतीय बाजारों तक आसानी से हो सके। इसके अलावा वो भारत की रूस पर हथियारों को लेकर जो निर्भरता है उसको भी कम करना चाहेंगे। वो चाहेंगे कि भारत हथियारों की खरीद के लिए अमेरिका की तरफ अधिक झुकाव रखे। यही वजह है कि भारत को बाइडन के कार्यकाल में पूरी तवज्जो मिलेगी।
जहां तक चीन का सवाल है तो प्रोफेसर पाशा का कहना है कि ड्रैगन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए बाइडन काफी कुछ उसी दिशा में काम करेंगे जिस तरह से पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे थे। हालांकि उनकी नीतियों में पूर्व की तरह आक्रामकता नहीं दिखाई देगी। उनके मुताबिक अमेरिका के नए राष्ट्रपति चीन को रोकने के लिए क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्वॉड) को आगे बढ़ाने का काम करेंगे। इसमें भारत, अमेरिका, जापान और आस्ट्रेलिया शामिल हैं। उनका ये भी कहना है कि बाइडन मुमकिन है कि चीन के ऊपर लगे प्रतिबंधों को भी कम कर दें। हालांकि चीन के प्रति नीति बनाते समय और इसको लागू करते समय वो भारत का भी ध्यान जरूर रखेंगे। चीन की बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताकत को रोकने के लिए वो भारत का सहयोग भी करेंगे और इसमें भारत की मदद भी करेंगे।
प्रोफेसर पाशा का मानना है कि ईरान को लेकर बाइडन की पॉलिसी काफी पॉजीटिव होगी। वो पहले ही साफ कर चुके हैं कि वो ईरान के साथ परमाणु डील पर वापस आना चाहते हैं। पाशा का मानना है कि इजरायल ने जो मुद्दे ईरान को लेकर उठाए हैं उसको भी बाइडन बातचीत के जरिए सुलझाना चाहते हैं। इसके अलावा वो चाहते हैं कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करे जिसके एवज में उनपर लगे प्रतिबंधों को कम किया जा सके। इसके साथ ही वो ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि ईरान भविष्य में उनके जवानों के लिए खतरा न बने और उन पर हमला न करे।