08 April, 2025 (Tuesday)

9 वर्ष बाद पाकिस्‍तान जेल से रिहा हुए बाबा जान, गिलगिट बाल्टिस्‍तान को नहीं मानते पाकिस्‍तान का हिस्‍सा

गिलगिट बाल्टिस्‍तान को पाकिस्‍तान का हिस्‍सा न मानने वाले और सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाले बाबा जान को नौ वर्ष के बाद आखिरकार जेल से रिहाई मिल ही गई। उनकी रिहाई को लेकर काफी समय से गिलगिट बाल्टिस्‍तान के लोग सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। बाबा जान ने गिलगिट-बाल्टिस्‍तान पर पाकिस्‍तान की सरकार को खुली चुनौती दी थी। उन्‍होंने कहा था कि इस पर पाकिस्‍तान का अवैध कब्‍जा है। उन्‍होंने यहां पर पाकिस्‍तान का कानून लागू होने के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। सरकार के खिलाफ उठती इस आवाज को दबाने के लिए उन्‍हें वर्ष 2011 में जेल में डाल दिया गया था। उनके ऊपर मुकदमा चलाया गया और आतंकवाद विरोधी कोर्ट ने उन्‍हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी।

अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उठी आवाज

वर्ष 2017 में दुनिया के नौ देशों के 18 सांसदों ने भी उनकी रिहाई को लेकर आवाज उठाई थी। इसमें स्‍पेन, मलेशिया, स्विटजरलैंड, आयरलैंड, फ्रांस, ट्यूनिस, जर्मनी और डेनमार्क शामिल है। इन सभी की मांग थी कि बाबा जान पर चल रहे मामलों को वापस लिया जाए और उन्‍हें और उनके साथियों को रिहा किया जाए। अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर उनकी रिहाई को लेकर की गई अपील में 49 देशों की 426 हस्तियों ने हस्‍ताक्षर किए थे।अक्‍टूबर की शुरुआत में भी उनकी रिहाई को लेकर प्रदर्शन हुए थे। इनमें उनकी बहन नाजनीन नियाज समेत आवामी वर्कर्स पार्टी, हकूक ए खल्‍क मूवमेंट, मजदूर किसान पार्टी, कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी, किसान रबिता कमेटी के सदस्‍य शामिल हुए थे।

सरकार के खिलाफ उठाई आवाज

बाबा जान ने सरकार और सेना की मिलीभगत से गिलगिट-बाल्टिस्‍तान के लोगों पर हो रहे अत्‍याचारों के खिलाफ पूरी दुनिया का ध्‍यान खींचा था। उनका कहना था कि सरकार सेना के साथ मिलकर यहां पर उनके खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचल रही है। युवाओं और महिलाओं समेत बुजुर्गों को भी अवैध रूप से जेलों में ठूंसा जा रहा है और उन्‍हें यातनाएं दी जा रही हैं। गौरतलब है कि बाबा आवामी वर्कर्स पार्टी की फेडरल कमेटी के सदस्‍य होने के साथ-साथ इसके पूर्व उपाध्‍यक्ष भी रह चुके हैं।

ऐसे सुर्खियों में आए थे बाबा जान

वर्ष 2010 में हुंजा वैली में आए जबरदस्‍त भूस्‍ख्‍लन की वजह से हुंजा नदी का पानी रुक गया था। इसकी वजह से आई बाढ़ की वजह से आसपास के करीब 23 गांव डूब गए थे। यहां के करीब 1000 लोगो को इसका मुआवजा दिलाने के लिए बाबा जान के नेतृत्‍व में आंदोलन किया गया। इसका नतीजा ये हुआ की कई लोगों को मुआवजा मिल गया लेकिन कुछ बच गए। इन बचे हुए लोगों के साथ बाबा जान ने फिर स्‍थानीय सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और मुआवजे की मांग की। मुख्‍यमंत्री के काफिले को रोककर उन्‍होंने अपनी मांग को दोहराने की कोशिश की।

प्रदर्शनकारियों की भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल प्रयोग किया गया और गोलियां तक चलाई गईं। इसमें एक व्‍यक्ति की मौत हो गई थी। इससे गुस्‍साए प्रदर्शनकारियों ने कई जगहों पर तोड़फोड की और पुलिसथाने को आग के हवाले कर दिया था। इस घटना के बाद बाबा जान को गिरफ्तार कर लिया गया। उनके ऊपर संगीन धाराओं में मुकदमा चलाया गया। 2014 में कोर्ट ने उन्‍हें दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि 2015 में गिलगिट-बाल्टिस्‍तान की कोर्ट, जिसको हाईकोर्ट का दर्जा हासिल है, ने उन्‍हें और उनके साथियों को बरी कर दिया था। इसके बाद भी उन्‍हें रिहा नहीं किया गया। इतना ही नहीं सरकार के आदेश पर उन्‍हें रातोंरात दूसरी जेल में शिफ्ट कर दिया गया था।

2015 का चुनाव

वर्ष 2015 में बाबा जान ने यहां की विधानसभा के चुनाव में जेल से ही हिस्‍सा लिया। हालांकि इस चुनाव में उन्‍हें मीर गजनफर अली खान के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। इसके कुछ समय बाद ही अली को गिलगिट-बाल्टिस्‍तान का गवर्नर बना दिया गया जिसके चलते यहां की सीट रिक्‍त हो गई थी। वर्ष 2016 में रिक्‍त हुई GBLA-6 सीट पर उपचुनाव करवाया गया। बाबा जान दोबारा आवामी वर्कर्स पार्टी के प्रत्‍याशी के तौर पर किस्‍मत आजमाने के लिए चुनावी मैदान में उतरे। इस बार उनका नामांकन रद कर दिया गया। चुनाव अधिकारी का कहना था कि उन्‍हें कोर्ट से सजा मिली हुई है इसलिए वो चुनाव में उतरने के अधिकारी नहीं हैं। इस आदेश के खिलाफ उन्‍होंने यहां के हाईकोर्ट में अपील की जिसके बाद चुनाव अधिकारी के आदेश पर रोक लगाते हुए यहां के चुनावों को टाल दिया गया था। हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट ने भी बाबा जान के खिलाफ ही फैसला सुनाया था।

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