2024 में राष्ट्रीय फलक पर PM मोदी के लिए कोई चुनौती दूर दूर तक नहीं दिखाई देती
एक समय जो कांग्रेस अखिल भारतीय स्तर पर वर्चस्व बनाए थी, वह पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब केवल दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सिमट गई है। राजनीतिक अस्थिरता व गलत निर्णयों के चलते पंजाब जैसा महत्वपूर्ण राज्य उसके हाथ से खिसक गया। कांग्रेस की भविष्य की संभावनाओं पर पूरी तरह पानी फिर गया है। उसके तीनों मोहरों सोनिया गांधी, राहुल और प्रियंका को जनता ने पूरी तरह नकार दिया है। यही हश्र बसपा और मायावती का हुआ है।
एक समय समझा जाता था कि बसपा देशभर में कांग्रेस का विकल्प बन सकती है। इसी पंजाब से निकलकर बसपा उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में तीन बार सत्तारूढ़ होने के बाद इस बार केवल एक सीट जीत पाई है। कांग्रेस का विकल्प बनती आम आदमी पार्टी दिख जरूर रही है, लेकिन अन्य क्षेत्रीय दलों से अरविंद केजरीवाल कितना तालमेल बिठा पाते हैं, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। वैसे भी हरेक क्षेत्रीय दल का प्रमुख प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में हैं। इसी वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव में किसी भी दल का कोई भी नेता नरेन्द्र मोदी के पासंग भी खड़ा नहीं दिखता।
पारिवारिक कलह और वंशवादी राजनीति के कारण हाशिए पर पहुंचे मुलायम सिंह और लालू यादव तथा उनके दल सपा व राजद ऐसे ही हालात की गिरफ्त में हैं। अखिलेश यादव ने अपने यादव और मुस्लिम वोट बैंक के चलते करीब सवा सौ सीटें जरूर जीत ली हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव में वे कोई करिश्मा कर दिखाएंगे, इसकी संभावना लगभग नगण्य है। उधर, तेजप्रताप और तेजस्वी यादव भी आपस में लड़कर लालू की विरासत को पलीता लगा रहे हैं।