हाथरस कांड : पीड़िता की फारेंसिक रिपोर्ट पर सवाल उठाने वाले अलीगढ़ के डॉक्टरों की बर्खास्तगी सरकार की बदले की कार्रवाई, माले ने कड़ी निंदा की
लखनऊ, 21 अक्टूबर। भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने हाथरस पीड़िता की फारेंसिक रिपोर्ट पर सवाल उठाने वाले एएमयू स्थित जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के दो डॉक्टरों की बर्खास्तगी को योगी सरकार की बदले की कार्रवाई बताया है और इसकी कड़ी निंदा की है। पार्टी ने कहा है कि सरकार हाथरस कांड के सच को छुपाना और जांच को प्रभावित करना चाहती है।
पार्टी के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने यह बात बुधवार को बिहार विधानसभा चुनाव प्रचार के सिलसिले में बिहार रवाना होने के मौके पर कही। उन्होंने कहा कि यह सरकार की हां में हां न मिलाने और यूपी पुलिस की मामले पर लीपापोती करने के प्रयासों का समर्थन न करने की सजा है।
जेएनयू अस्पताल के तब ड्यूटी पर मौजूद और अब बर्खास्त इन दोनों डॉक्टरों – डॉ. मलिक व डॉ. ओबेद – ने हाथरस पीड़िता की मेडिकल जांच की थी और अपनी मेडिको-लीगल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि की थी। लेकिन यूपी पुलिस के लखनऊ में बैठे आला अधिकारी ने एफएसएल रिपोर्ट का हवाला देते हुए रेप नहीं होने की बात कही थी। इसपर इन डॉक्टरों ने कहा था कि फोरेंसिक जांच के लिए पीड़िता का सैम्पल घटना के 14 दिनों बाद ली गयी थी, जबकि मेडिकल साइंस के अनुसार रेप के 96 घंटे के अंदर सैम्पल की जांच होने पर ही इसकी पुष्टि हो सकती है। लिहाजा इस मामले में फोरेंसिक रिपोर्ट बेमानी है।
माले नेता ने कहा कि हाथरस कांड में योगी सरकार शुरू से ही अभियुक्तों का बचाव कर रही है, क्योंकि वे एक खास जाति से हैं। घटना की एफआईआर दर्ज करने, पीड़िता को तत्काल चिकित्सा मुहैय्या कराने से लेकर परिजनों की बिना सहमति के तुरत-फुरत रात के अंधेरे में शव को जला देने और सबूतों को नष्ट कर देने का काम किया गया। अब सच बोलने वालों का मुंह भी बंद किया जा रहा है। अपराधियों का बचाव और सच बोलने वालों को सजा दी जा रही है। यह बेशर्मी की हद है। इससे हाथरस कांड में न्याय होने की उम्मीद धूमिल होती जा रही है। माले नेता ने कहा कि यदि योगी सरकार में जरा भी लिहाज बाकी है, तो अलीगढ़ के डॉक्टरों की बर्खास्तगी तत्काल प्रभाव से रद्द करे और हाथरस कांड की जांच में पर्दे के पीछे से टांग अड़ाना बंद करे।