06 May, 2024 (Monday)

यहां नहीं होती बेटियों की विदाई, शादी के बाद बेटे होते हैं पराये

दुनिया भर में ऐसी कई जनजातियां हैं, जिनके अनूठे रीति रिवाज हैं. ऐसी ही एक जनजाति भारत में मेघालय, असम और बांग्‍लादेश के कुछ इलाकों में रहने वाली खासी है. आमतौर पर ज्यादा जगह बेटों को बेटियों के मुकाबले ज्यादा अहमियत दी जाती है. बेटियों को पराया धन कहा जाता है और शादी के बाद दुल्‍हन की विदाई की जाती है. कमोबेश यही परंपरा दुनियाभर के ज्‍यादातर देशों और धर्मों में प्रचलित है. लेकिन, खासी जनजाति में इसके उलट बेटियों को ज्‍यादा तरजीह दी जाती है. इस जनजाति में घर परिवार के सदस्यों का बोझ पुरुषों की जगह महिलाओं के कंधे पर होता है. इस जनजाति में बेटियों के जन्‍म पर जश्‍न मनाया जाता है. आप को यह जानकर भले ही हैरत हो, लेकिन ये सच है.

खासी जनजाति में बेटों को पराया धन माना जाता है. वहीं, बेटियों और माताओं को भगवान के बराबर मानकर परिवार में सबसे ऊंचा दर्जा दिया जाता है. यह जनजाति पूरी तरह से बेटियों के प्रति समर्पित है. यह जनजाति उन तमाम समुदायों और क्षेत्रों के लिए मिसाल है, जो बेटियों के जन्‍म पर दुखी हो जाते हैं. आज भी बड़ी आबादी ऐसी है, जो बेटियों को बोझ मानती है. हालांकि, अब धीरे-धीरे ही सही लोगों की धारणा में बदलाव हो रहा है. खासी जनजाति में लड़कियों को लेकर कई ऐसी परंपराएं और प्रथाएं हैं, जो बाकी भारत के उलट हैं.

सबसे छोटी बेटी को मिलती है ज्‍यादा संपत्ति
खासी जनजाति में शादी के बाद लड़के लड़कियों के साथ ससुराल जाते हैं. दूसरे शब्‍दों में कहें तो लड़कियां जीवनभर अपने माता-पिता के साथ रहती है, जबकि लड़के अपना घर छोड़कर ससुराल में घर जमाई बन जाते हैं. इसे खासी जनजाति में अपमान की बात नहीं माना जाता है. इसके अलावा खासी जनजाति में बाप-दादा की जायदाद लड़कों के बजाय लड़कियों को मिलती है. एक से ज्‍यादा बेटियां होने पर सबसे छोटी बेटी को जायदाद का सबसे ज्‍यादा हिस्‍सा मिलता है. खासी समुदाय में सबसे छोटी बेटी को विरासत का सबसे ज्यादा हिस्सा मिलने के कारण उसे ही माता-पिता, अविवाहित भाई-बहनों और संपत्ति की देखभाल करनी पड़ती है.

महिलाओं को एक से ज्‍यादा शादी की छूट
खासी जनजाति में महिलाओं को कई शादियां करने की छूट मिली हुई है. यहां के पुरुषों ने कई बार इस प्रथा को बदलने की मांग की है. उनका कहना है कि वे महिलाओं को नीचा नहीं दिखाना चाहते और ना ही उनके अधिकार कम करना चाहते हैं, बल्कि वे अपने लिए बराबरी का अधिकार चाहते हैं. खासी जनजाति में परिवार के सभी छोटे-बड़े फैसलों में महिलाओं की ही चलती है. यहां महिलाएं ही बाजार और दुकान चलाती हैं. इस समुदाय में छोटी बेटी का घर हर रिश्तेदार के लिए हमेशा खुला रहता है. छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है. मेघालय की गारो, खासी, जयंतिया जनजातियों में मातृसत्तात्मक व्‍यवस्‍था होती है. इसलिए इन सभी जनजातियों में एक जैसी व्‍यवस्‍था होती है.

तलाक के बाद संतान पर पिता नहीं रहता अधिकार
खासी समुदाय में विवाह के लिए कोई खास रस्म नहीं होती है. लड़की और माता पिता की सहमति होने पर लड़का ससुराल में आना-जाना तथा रुकना शुरू कर देता है. इसके बाद संतान होते ही लड़का स्थायी तौर पर अपनी ससुराल में रहना शुरू कर देता है. कुछ खासी लोग शादी करने के बाद विदा होकर लड़की के घर रहना शुरू कर देते हैं. शादी से पहले बेटे की कमाई पर माता-पिता का और शादी के बाद ससुराल पक्ष का अधिकार रहता है. शादी तोड़ना भी यहां काफी आसान होता है. तलाक के बाद संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं रहता है.

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