10 April, 2025 (Thursday)

पराली जलाने से मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं :  डॉ. खलील

कानपुर। कृषि विज्ञान केंद्र अनोगी के मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने जनपद के समस्त किसान भाइयों से अपील की है कि वे अपने खेतों में धान की फसल के अवशेषों (पराली) आदि को न जलाएं क्योंकि फसलों के अवशेषों को जलाने में उनके जड़ तना,पत्तियां आदि के पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। मृदा वैज्ञानिक डॉ. खान ने यह बात ग्राम हिम्मतपुर ब्लॉक  उमर्दा में किसानों को प्रशिक्षण के दौरान कही उन्होंने यह भी बताया कि अवशेषों को जलाने से मृदा के तापमान में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण मृदा के भौतिक, रासायनिक एवं जैविक दशा पर विपरीत असर पड़ता है।मृदा में उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु नष्ट हो जाते हैं जिसके कारण मृदा में उपस्थित जीवांश अच्छी प्रकार से सड़ नहीं पाते जिससे पौधे पोषक तत्व प्राप्त नहीं कर पाते हैं।परिणाम स्वरूप उत्पादन में गिरावट आती है। इसके अतिरिक्त वातावरण के साथ-साथ पशुओं के चारे के लिए भी व्यवस्था करने हेतु समस्या आती है।उन्होंने कहा कि फसल अवशेषों में आग लगाने से अन्य फसलों तथा घरों में भी आग लगने की संभावना बनी रहती है। वायु प्रदूषण से अस्थमा और एलर्जी जैसी कई प्रकार की घातक बीमारियों को बढ़ावा मिलता है एवं दुर्घटनाएं होने की संभावनाएं बनी रहती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि किसान भाई फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन कर कंपोस्ट या वर्मी कंपोस्ट खाद बनाकर प्रयोग करें। इससे खेत की उर्वरा शक्ति के साथ ही भूमि में लाभदायक जीवाणु की संख्या में भी वृद्धि होगी। तथा मृदा के भौतिक एवं रासायनिक संरचना में सुधार होगा।जिससे भूमि जल धारण क्षमता एवं वायु संचार में वृद्धि होती है।फसल अवशेषों के  प्रबंधन  करने से खरपतवार कम होते हैं तथा जल वाष्प उत्सर्जन भी कम होता है। जिससे सिंचाई जल की उपयोगिता बढ़ती है उन्होंने कहा कि फसल अवशेष को जलाने से होने वाली हानियों को दृष्टिगत रखते हुए माननीय राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा फसल अवशेष जलाना दंडनीय अपराध है इसमें अर्थदंड के रूप में 2 एकड़ से कम भूमि में फसल अवशेष जलाने पर रुपया 2500 तथा 5 एकड़ होने की दशा में रूपया 5000 एवं 5 एकड़ से अधिक होने की दशा में रुपया 15000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है कुलपति ने कहा कि फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन करते हुए लाभ प्राप्त कर किसान लाभान्वित हो भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हुए वातावरण को स्वच्छ बनाएं। जिससे कि किसान भाई अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करते हुए अपनी आय में वृद्धि कर सकें। उन्होंने बताया कि इकोनामिक टाइम्स के एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार देश एवं प्रदेश सरकार के प्रयासों के फलस्वरूप उत्तर प्रदेश में गेहूं एवं धान के फसल अवशेषों को जलाने में कुल 36.8% की कमी आई है। डॉ खलील खान  प्रशिक्षण के दौरान  किसान भाइयों से अपील की है  कि वह  धान की फसल कटाई के उपरांत फसल अवशेष प्रबंधन हेतु आधुनिक प्रमुख कृषि यंत्र जैसे मल्चर,सुपर सीडर,पैडी स्ट्रा आदि से धान के फसल अवशेषों को खेत में दबा दें जिससे मृदा में जीवांश कार्बन की बढ़ोतरी होगी। और फसल अवशेष खाद का कार्य करेगी। इसके अतिरिक्त धान के पुआल को खेत में फैला कर डी कंपोजर का प्रयोग करते हुए 8 से 10 दिन में  सड़ जाएगी व खेत में खाद का काम करेगी। जिससे मृदा में सारे पोषक तत्व मिल जाते हैं और अगली फसल गुणवत्ता युक्त प्राप्त होती है। इस अवसर पर गांव मधुर के जय चंद्र सिंह एवं इंद्रनारायण सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।

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