जैव उर्वरक मूलतः जीवाणुओं का संग्रह है : डॉ. दूबे



कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. एस. डी. दुबे ने बताया कि जैव उर्वरकों का प्रयोग करना पौधों के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराने का एक अच्छा स्रोत है। डॉक्टर दुबे ने बताया कि जैव उर्वरक मूलतः जीवाणुओं का संग्रह है।जो पौधों के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं। उन्होंने कहा कि जैव उर्वरक प्रयोग करने से मृदा एवं जल दूषित नहीं होते हैं क्योंकि यह मृदा के ऊपरी हिस्से में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैव उर्वरकों को एक बार उपयोग में लाने से यह कई वर्षों तक मृदा में बने रहते हैं तथा पौधों को पोषक तत्व उपलब्ध कराते रहते हैं।जिसके कारण फसलों की उत्पादकता में दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है अपितु उत्पादकता में वृद्धि होती है। उन्होंने कहा कि जैव उर्वरक फसलों को पोषक तत्व उपलब्ध कराने के साथ-साथ कई मृदा जनित बीमारियों की रोकथाम में भी सहायक हैं। डॉक्टर दुबे ने बताया की जैव उर्वरकों में एजोटोबेक्टर एक वायुजीवी जीवाणु है जो वायुमंडलीय नाइट्रोजन को संग्रहित करने में सक्षम है यह जीवाणु उन मृदा में प्रभावी ढंग से कार्य करते हैं जिन मृदा में जैविक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होता है।उन्होंने बताया कि एजोटोबेक्टर अदलहनी फसलें जैसे गेहूं, सरसों, एवं सब्जियों में प्रयोग किया जाता है। एजोटोबेक्टर औसतन प्रति हेक्टेयर 15 से 35 किलोग्राम नाइट्रोजन मिट्टी में संचय कर देता है। उन्होंने यह भी बताया कि इसी प्रकार राइजोबियम जीवाणु को दलहनी फसलों जैसे चना, मटर,मसूर आदि में प्रयोग किया जाता है जो 50 से 100 किलोग्राम नत्रजन संचय कर देता है। विश्व विद्यालय के सहायक निदेशक शोध डॉ मनोज मिश्रा ने बताया कि पीएसवी जीवाणु जो मृदा में स्थिर एवं अघुलनशील फास्फोरस को घुलनशील बनाने का कार्य करता है। डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि 30 से 50 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर पौधों को उपलब्ध हो जाता है इसके साथ ही उन्होंने बताया कि फास्फोरस की उपलब्धता में 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की वृद्धि हो जाती है डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि जैव उर्वरकों से बीज मृदा एवं जड़ शोधन किया जाता है। बीज उपचार हेतु उन्होंने बताया कि 200 ग्राम का जैव उर्वरक 10 किलोग्राम बीज के लिए पर्याप्त होता है। इसको आधा लीटर पानी में 100 ग्राम गुड या चीनी का शीरा बनाकर उसे ठंडा होने पर जैव उर्वरक मिला देते हैं। तत्पश्चात बीजों को शोधित करते हैं तथा छाया में सुखा लेते हैं ।इसके बाद बीजों की बुवाई कर देते हैं इसी प्रकार जड़ उपचार के लिए बताया कि 20 पैकेट जैव उर्वरक को 20 से 25 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्टेयर की जड़ों हेतु 30 मिनट तक जड़ों को डुबोकर उपचारित करते हैं मृदा उपचार के लिए डॉक्टर मिश्रा ने बताया कि 5 किलोग्राम जैव उर्वरक को 50 किलोग्राम गोबर में मिलाकर 24 घंटे रखने के बाद एक हेक्टेयर खेत में समान मात्रा में बिखर देते हैं उन्होंने कहा कि जैव उर्वरक प्रयोग से सभी फसलों को लाभ होता है। जिससे कि फसल उत्पादन लागत में कमी आती है।