कौन बनेगा ओडिशा का मुख्यमंत्री, 12 जून को किसके सिर सजेगा ताज?
ओडिशा में नए मुख्यमंत्री की तलाश में बीजेपी हाई कमांन लग गया है. आलाकमान ने ओडिशा में बीजेपी विधायक दल की बैठक बुलाई है जिसमें उसके नए नेता का चुनाव होगा. राजनाथ सिंह और भूपेन्द्र यादव को केन्द्रीय पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है जो भुवनेश्वर में विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री चुनने का काम करेंगे. 12 जून को आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू का शपथ ग्रहण समारोह है और 13 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इटली की विदेश यात्रा पर निकलने वाले हैं. इसलिए ऐसा लग रहा है कि 11 जून तक ओडिशा में भी बीजेपी सरकार का शपथ ग्रहण पूरा हो जाएगा. 147 सदस्यीय ओडिशा विधानसभा में बीजेपी ने 78 सीट जीतकर बहुमत हासिल किया है. राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से 20 पर भी भाजपा ने जीत हासिल की है.
ओडिशा में पहली बार बीजेपी को अपने दम पर जीत मिली है. इस ऐतिहासिक जीत के पीछे पीएम मोदी की लोकप्रियता तो थी ही, साथ ही ओडिशा में संगठन को पिछले दो दशकों से लगातार सक्रिय रखना भी था. नवीन पटनायक की लोकप्रियता भी ऐसी थी कि आंखें मूंद कर भी ओडिशा की जनता उन्हें वोट करती आ रही थी. लेकिन छठी बार नवीब बाबू थोड़ी चूक कर गए. अपने आईएएस पीए वीके पांड्यन को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. यहीं से केन्द्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने मोर्चा खोल दिया. न सिर्फ ओडिशा अस्मिता की बात उठाई बल्कि भूमिपुत्र की बात कर ओडिशा के वोटरों को झकझोर कर रख दिया. उधर नवीन बाबू, जो अब तक हर मौके पर पीएम मोदी का साथ देते रहे थे, ने थोड़ा पैंतरा बदला और अपने दूत वीके पांड्यन को दिल्ली भेजा.
नवीन पटनायक चाहते थे कि ओडिशा में बीजेपी-बीजेडी का गठबंधन हो जाए. पांड्यन दिल्ली पहुंचे तो जरुर लेकिन इस बार धर्मेन्द्र प्रधान अपने तर्कों के साथ मौजुद थे. उन्होंने गृहमंत्री अमित शाह को जमीनी हकीकत बतायी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आश्वस्त किया गया कि उनका नाम और संगठन इस बार जीत के लिए तैयार है. पीएम मोदी के ओडिशा में कड़े तेवरों से साफ था कि उन्हें भरोसा हो चला था जीत का. नवीन बाबू अपना रिकॉर्ड छठा टर्म नहीं जीत पाए लेकिन इस जनादेश के बाद अब लगता नहीं प्रयोग की जरुरत है. जरुरत इस बात की है कि ऐसा मुख्यमंत्री बने जो अनुभवी हो और पार्टी ओडिशा में अपने भरोसेमंद पर ही भरोसा करे, ताकि इस ऐतिहासिक जीत के बाद बीजेपी को लंबे समय तक आगे ले जाया जा सके.
अनुभव और ओडिशा के लिए प्रतिबद्धता की बात हो तो धर्मेन्द्र प्रधान का नाम सबसे आगे आता है. 2004 में पहली बार ओडिशा से लोकसभा सांसद चुने जाने के बाद धर्मेन्द्र प्रधान ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. कर्नाटक, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के प्रभारी रह कर चुनाव भी लड़वाए और 2014 में केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद धर्मेंद्र प्रधान के नेतृत्व में शुरू हुए आक्रामक अभियान ने 2014 से 2019 के बीच ओडिशा में पार्टी के लिए मजबूत नींव रखी.
2017 में ओडिशा बीजेपी की ऐतिहासिक राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने राज्य में बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया और पीएम मोदी की कल्याणकारी योजनाओं के साथ “पूर्वोदय पूर्वी भारत” का सन्देश मजबूती से कार्यकर्ता और ओडिशा के लोगों तक पहुंचा. यही मेहनत थी जिसके कारण 2019 में ओडिशा में बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत भी बढ़ा. चाहे चक्रवात फानी हो या फिर कोई प्राकृतिक आपदा, बाढ़ हो या राहत के काम, धर्मेंद्र प्रधान हर मुद्दे पर ओडिशा के लोगों के साथ हमेशा चट्टान की तरह खड़े रहे. खास बात ये कि संगठन के सिपाही की तरह पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के निर्देश पर वह संगठन को वह लगातार सींचते रहे.
लेकिन पीएम मोदी ने भी ऐलान किया था कि कोई विधायक ही राज्य का मुख्यमंत्री बनेगा. इसलिए ओडिशा के विधायकों को लग रहा है कि कोई विधायक ही बाजी मारेगा. 2-3 नाम संगठन के सामने आ रहे हैं. इन नामों में राज्य के वरिष्ठ नेता सुरेश पुजारी, जयनारायण मिश्रा, लक्ष्मण बाग और प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल हैं. लक्ष्मण बाग ने नवीन पटनायक को विधानसभा चुनाव में एक सीट पर हराया था.