इस्लाम में वो शादी जो केवल यौन सुख के लिए, कहते हैं मुता विवाह
इतिहास में अगर देखें तो इस बात का जिक्र कई बार मिलता है कि मुगल विवाह जब किसी महिला पर रीझ जाते थे लेकिन उसे अपनी बेगम या रानी बनाने में किसी तरह की दिक्कत महसूस करते थे तो उससे मुता विवाह कर लेते थे. अक्सर ये विवाह अक्सर तब भी होता था जब मुगल परिवारों में कोई शहजादा या बादशाह दूसरे धर्म की महिला से विवाह करने का लालायित होता था. मोटे तौर पर पर इस विवाह को यौन सुख या आनंद के लिए किसी गया अस्थायी विवाह माना जाता था. विवाहिता को कभी पूर्ण बीवी का दर्जा नहीं मिलता था
मुस्लिम कानून के मुताबिक, विवाह चार तरह के होते हैं: साहिह, बातिल, फ़ासिद, मुता. इसमें मुता विवाह हमेशा से बहुत विवादास्पद रहा है. मुस्लिम समुदाय की बहुत सी ब्रांचेज इसको मान्यता भी नहीं देतीं. मसलन सु्न्नी इस शादी को नहीं मानते.
इसी विवाह से जुड़ा एक किस्सा. बादशाह शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोह का दिल दरबार में नाचने वाली एक हिंदू नर्तकी राना-ए-दिल पर आ गया. इस कदर आ गया कि वो केवल उसी के बारे में दिन रात सोचता रहता था. उसके प्यार में पागल हो गया था. हालांकि शुरू में राना ने उसके प्यार को कोई तवज्जो नहीं दी.
लेकिन धीरे धीरे ये लगने लगा कि दारा शिकोह उसे पाने और आलिंगन में कैद करने के लिए बेतरह बेचैन है. शाहजहां किसी भी हालत में इन दोनों के मिलन के पक्ष में नहीं था. उसने सारे जतन कर लिये कि दारा अपनी इस माशूका को भूल जाए. वहीं राना की कड़ी शर्त थी वो तभी उसके साथ किसी भी तरह के शारीरिक बंधन में बंधेगी, जब वो उससे शादी करे.