25 November, 2024 (Monday)

तिब्बत को किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहता चीन, जानें इसके पीछे क्या है प्रमुख कारण

चीन विस्तारवादी प्रवृत्ति का आदी है और वो अपनी सीमा को लगातार बढ़ा रहा है। तिब्बत पर उसने इसी के चलते कब्जा किया और अब वो किसी भी कीमत पर तिब्बत को छोड़ने के लिए राजी नहीं है।

प्राकृतिक रुप से समृद्ध  

दरअसल तिब्बत प्राकृतिक रूप से काफी समृद्ध है। यहां काफी संख्या में खनिज पाए जाते हैं। इनमें लिथियम, यूरेनियम सबसे अहम है। इसके अलावा यहां भरपूर मात्रा में पानी पाया जाता है। इसके अलावा तिब्बत दुनिया का सबसे ऊंचा और लंबा पठार है। एक और खास बात ये भी है कि एशिया में बहने वाली कई बड़ी नदियों का उद्गम भी तिब्बत से ही होता है। यदि किन्हीं वजहों से भविष्य में चीन में पानी की किल्लत होगी तो तिब्बत से उसकी पूर्ति की जा सकेगी।

40 साल रहा आजाद

वैसे तो लगभग 40 सालों तक तिब्बत आजाद रहा, इसी आजादी को वास्तविक आजादी कहा जाता लेकिन 1949 में चीन में कम्युनिस्टों की जीत के बाद हिमालय के इस इलाके के हालात बदले और विवाद शुरू हो गया। 7 अक्टूबर, 1950 को हजारों की संख्या में माओत्से तुंग की सेना तिब्बत में दाखिल हुई, 19 अक्टूबर को सेना ने चामडू शहर के बाहरी इलाके पर कब्जा कर लिया, जब सेना तिब्बत में दाखिल हुई तो ये सब देखकर तिब्बत प्रशासन से जुड़े लोग परेशान हो गए।

तिब्बत पर चीन का आठ महीने तक कब्जा रहा, चीन अन्य इलाकों पर भी कब्जा करता जा रहा था। चीन की ओर से बढ़ते दबाव की वजह से तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने उस दौरान चीन की ओर से दिए गए 17 बिंदुओं वाले एक विवादित समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया जिससे तिब्बत आधिकारिक तौर पर चीन का हिस्सा बन गया। मगर धार्मिक गुरु दलाई लामा इस संधि को ‘अमान्य’ बताते हैं उनका कहना है कि ये हस्ताक्षर एक असहाय सरकार पर जबरन दबाव बना कर कराया गया जबकि सरकार ये नहीं चाहती थी। एक बात और कही जाती है कि जब उनसे इस समझौते पर हस्ताक्षर करवाए गए उस समय वो 15 साल के थे।

विवाद की शुरुआत

हिमालय के उत्तर में स्थित तिब्बत 12 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ। इसका इतिहास कई तरह की परेशानियों से भरा हुआ है। 23 मई, 1951 को तिब्बत ने चीन के साथ एक विवादित समझौते पर हस्ताक्षर किया था। इस दिन को तिब्बत में एक दुखद दिन माना जाता है। इस दिन तिब्बत ने अपनी आजादी आधिकारिक तौर पर खो दी। चीन के कब्जे से तिब्बत में माहौल बिगड़ने लगा।

1956 से लेकर 10 मार्च 1959 तक तिब्बत के लोगों का ग़ुस्सा अपने उफान पर था। इस दौरान पहला विद्रोह हुआ और तिब्बत के लोगों ने चीन के राज को मानने से इनकार कर दिया, विद्रोह बढ़ता जा रहा था और इसमें हजारों लोगों की जान भी गई। चीन की पीपुल्स लिब्रेशन आर्मी के दखल और दो सप्ताह तक चली हिंसा के बाद इस विद्रोह को चीन दबाने में कामयाब रहा। चीन की सेना काफी मजबूत थी, ऐसे में दलाई लामा को देश छोड़ कर भारत में शरण लेनी पड़ी। तब से चीन की कहीं न कहीं भारत की तरफ भी नजर टेढ़ी रहती है।

तिब्बती संस्कृति की बर्बादी

दुनिया में इतने सालों में कई तरीके से बदलाव हुए मगर तिब्बत की संस्कृति में कोई खास बदलाव नहीं दिखा। तिब्बत आधुनिकता के मामलों में राष्ट्र नहीं है लेकिन तिब्बत के पास दुनिया में सबसे अलग तरह की संस्कृति है, वहां की भाषा, धर्म और राजनीतिक प्रणाली बेहद अनोखी है। धर्म गुरू दलाई लामा ने अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर किए, अपने पड़ोसी देशों से कूटनीतिक संबंध बनाए, 1912 में 13वें दलाई लामा ने घोषणा की कि तिब्बत एक स्वतंत्र देश है। इस देश का अपना राष्ट्रीय झंडा भी है, अपनी मुद्रा है, अपना पासपोर्ट,अपनी आर्मी है।

मारे जा चुके लाखों लोग

कई सालों तक जब भी तिब्बत में कोई प्रदर्शन होता तो उसे बड़ी बेदर्दी से कुचल दिया जाता। दलाई लामा कहते हैं कि ‘चीन के शासन में 12 लाख लोग मारे जा चुके हैं। हालांकि चीन अपने पुराने तरीके की तरह इन सब चीजों से इनकार करता है। कई एजेंसियां इस आंकड़े को नहीं मानती है फिर भी ये कहा जा रहा है कि ये संख्या दो लाख से आठ लाख तक के बीच हो सकती है।

चीन के खिलाफ मुखर हो रहे विरोध प्रदर्शन

ये भी देखने में आया है कि हालिया सालों में तिब्बत में विरोध प्रदर्शन बढ़े हैं। स्थानीय लोग अपनी संस्कृति को बर्बाद करने के खिलाफ आवाजें उठा रहे हैं। साथ ही चीन की सेना जिस तरह तिब्बत के लोगों से पेश आती है उस पर भी विरोधों के स्वर तेज हुए हैं। 1960 और 70 से दौर में जब चीन की सांस्कृतिक क्रांति चल रही थी तो उस दौरान कई स्थानीय मॉनेस्ट्रीज को तहस-नहस कर दिया गया। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि 1980 से तिब्बत के कल्चर को दोबारा समृद्ध बनाने में जुटी है और कई तोड़ी गई मॉनेस्ट्रीज को दोबारा बनवाया गया है।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *