23 November, 2024 (Saturday)

कृषि को लाभकारी बना सकते हैं उद्यमी किसान, खेती की वास्तविक समस्याओं का हो समाधान

देश का बुनियादी ढांचा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए पूरक का काम करने के साथ ही विकास को पूर्ण संतुलित करता है। संपन्न और पिछड़ों का आपसी संयोजन करने के साथ ही यह उत्पादकता को समग्रता में बढ़ाने के अलावा समानता तथा अवसर की स्थिति, विशेष रूप से स्वास्थ्य देखभाल व रोजगार एवं आजीविका के अवसरों तक सभी की पहुंच को सुनिश्चित करता है। ग्रामीण अवसंरचना से जुड़ी परियोजनाओं का लक्ष्य भले ही अब तक बिखरा हो, लेकिन नीति निर्माताओं को यह नहीं भूलना चाहिए कि ये गांव केंद्रित छोटी और बिखरी हुई परियोजनाएं नीतिगत हैं, क्योंकि वे विकास की गति को तेजी प्रदान कर सकती हैं।

गति शक्ति योजना के माध्यम से प्रधानमंत्री को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि संपन्नता के लिए सरकारें न केवल ग्रामीण परियोजनाओं को उन्नत बनाएं, बल्कि उसके लिए पर्याप्त माहौल भी तैयार करें। हमारे देश में कृषि-प्रणाली अब तक एक पारिस्थितिक, सामाजिक और वित्तीय विफलता साबित ही हुई है। खेती अभी भी कमजोर दशा में है। हमारा प्रतिस्पर्धात्मक लाभ कृषि में निहित है और अगर कृषि केंद्रित समाधान किया जाए तो खेती को हर हाल में आकर्षक बनाया जा सकता है।

jagran

सिंचाई समेत खेती के अन्य बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाते हुए बदली जा सकती है कृषि क्षेत्र की तस्वीर। फाइल

सब्सिडी और छूट : कृषि क्षेत्र की जितनी उपेक्षा हो रही है किसानों की परेशानी उतनी बढ़ती जा रही है। किसानों के दरिद्रता की कीमत पर सभी राजनीतिक दल अपनी शक्ति का हल जोतते हैं, बीज बोते हैं और फिर फसल काटते हैं। अब तक की प्रवृत्ति यही दर्शाती है कि हमने उन्हीं नीतियों में निवेश किया है जिनके असफल होने की आशंका पहले से ही अधिक थी। सरकारी मदद किसानों को केवल जीवित रखती है, उससे विकास को प्रोत्साहन नहीं मिल पाता है। लिहाजा एक सक्षम व्यवस्था के अभाव में किसानों की दुर्दशा निरंतर बढ़ती ही गई। इसमें कोई संदेह नहीं कि राज्य और बाजार दोनों उनका शोषण करते हैं। अधिकांश किसानों ने तो बेहतरी की उम्मीद ही छोड़ दी है। बहुतों का तंत्र पर कोई भरोसा नहीं रह गया है। यही कारण है कि देश में खेती करने वालों की संख्या कम होती जा रही है। हमारे किसान एक अच्छे उद्यमी बन सकते हैं। वे बहादुर हैं तथा जीवनभर कड़ी मेहनत करते हैं, परंतु शायद ही कभी उन्हें अच्छे दिन नसीब होते हैं। हमारे नीति निर्माताओं को यह समझने की जरूरत है कि छोटे और सीमांत किसान तब तक बेहतर जीवन नहीं जी सकते, जब तक इस व्यवस्था में प्रासंगिक बदलाव को नए सिरे से तैयार नहीं किया जाता है।

jagran

हाल ही में 16 राज्यों के 18 हजार से अधिक किसानों को शामिल करते हुए किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट में यह तथ्य सामने आया कि व्यावहारिक कृषि सुधार उपायों को लागू करने पर क्या हो सकता है। समग्रता में देखा जाए तो किसान यथार्थवादी होते हैं और 80 प्रतिशत से अधिक किसान मानते हैं कि खेती कई लोगों के लिए व्यवहार्य हो सकती है, लेकिन सभी के लिए नहीं। इस संबंध में एक तथ्य यह भी है कि करीब तीन हेक्टेयर भूमि पर खेती से सालाना पौने दो लाख से ढाई लाख रुपये के बीच कमाई की जा सकती है। हालांकि यह खेती योग्य भूमि, मिट्टी की गुणवत्ता, सिंचाई सुविधा और बाजारों से दूरी के आधार पर कम या ज्यादा हो सकती है। वैसे हमारे देश में 85 प्रतिशत से अधिक सीमांत किसान सालाना एक लाख रुपये से भी कम कमाते हैं जिसे बढ़ाने की जरूरत है।

सरकारी समर्थन : सरकार को अब ‘समर्थन’ से आगे बढ़ना चाहिए। किसान उद्यमी हैं और वे विकास चाहते हैं, सहारा नहीं। पिछले 70 वर्षो में हर सरकार ने केवल अपने फायदे के लिए किसानों को याद किया है। जब विकास उन्मुख नीतियों और परितंत्र को सक्षम बनाने में समग्र निवेश की आवश्यकता थी, तब केवल कर्ज माफी, सब्सिडी और अन्य महत्वहीन बातों पर ध्यान केंद्रित किया गया।

jagran

समग्र कृषि केंद्रित नीतियों और प्रभावी कार्यान्वयन के परिणामस्वरूप पारिस्थितिकी तंत्र सक्षम होता है, आर्थिक अवसरों को बढ़ाता है, विकास में तेजी लाता है, एक अनुकूल चक्र को प्रेरित करता है और ग्रामीण विकास के लिए एक प्रेरक का काम करता है। कृषि अर्थव्यवस्था में निवेश किया गया प्रत्येक रुपया 15 गुना फायदा देता है और सामाजिक लाभ इससे कई गुना अधिक होता है। लिहाजा कृषि को उद्यम का स्वरूप देने से व्यापक आर्थिक सुधार संभव है। इसके लिए बुनियादी ढांचे, सिंचाई तथा भंडारण, उपयोगिताओं आदि के क्षेत्रों में ‘मजबूत एवं फायदेमंद’ सार्वजनिक तथा निजी निवेश को प्रोत्साहित और समान रूप से सुविधा प्रदान कर परितंत्र को बेहतर करने की आवश्यकता है। बेहतर उपज और उच्च उत्पादकता के लिए किसानों को मशीनीकरण विशेष रूप से ट्रैक्टर, कटाई मशीन, परिवहन आदि की जरूरत है। इसी प्रकार किसानों के पास सिंचाई तकनीकों, हाईब्रिड फसलों को अपनाने की इच्छाशक्ति एवं कुशलता की कमी है। इसके अलावा, वित्तीय संस्थान न तो किसानों के हित में काम कर रहे हैं और न ही कृषि परितंत्र में ऋणदाताओं पर किसी भी तरह के भरोसे को सही ठहराता है। ऐसे में सरकार को कई माइक्रो-फाइनेंस क्रेडिट कार्यक्रमों में सार्वजनिक निवेश को खोल देना चाहिए। निजी निवेश को बढ़ावा देने वाली सामूहिक फंडिंग भी करनी चाहिए।

अपने क्रेडिट के लिए सरकार एफपीओ यानी किसान उत्पादक संगठनों को आगे बढ़ाती है। यह एक ऐसी अवधारणा है, जो कई मायनों में अपनी प्रारंभिक अवस्था में स्वयं सहायता समूह और एक संयुक्त स्टाक कंपनी बनाना है। यह लक्ष्य किसानों को अपने साथियों के बीच तथा अन्य कृषि हितधारकों के साथ सहयोग करने के लिए प्रोत्साहित करता है और एक स्थायी, मजबूत आर्थिक और कानूनी इकाई के रूप में सामने आता है।

एफपीओ माडल : एफपीओ माडल यानी फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन किसानों को कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के मूल के रूप में स्थापित करता है। आज वह अलग-थलग है। कृषि बाजार को इतनी बारीकी से डिजाइन किया गया है कि उत्पादक यानी किसान की मूल्य निर्धारण, विपणन या फसल बोने में कोई भूमिका नहीं होती है। निहित स्वार्थ और राज्य तंत्र कृत्रिम रूप से उच्च एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करते हैं जो मध्यम, बड़े और प्रभावशाली किसानों को लाभ पहुंचाने के साथ सीमांत किसानों तथा उपभोक्ताओं का खून चूसने का काम करता है। ऐसे में इस व्यवस्था की खामियों को समझना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि यह कम जोत वाले किसानों के लिए लाभदायक नहीं है, जबकि आम उपभोक्ताओं के लिए तो यह नुकसानदायक ही है। ऐसे में एफपीओ गेम चेंजर के रूप में साबित हो सकता है। लेकिन उसे पर्याप्त समर्थन की आवश्यकता है। इसे नीति निर्माताओं के विश्वास और आस्था दोनों की आवश्यकता है। इस तरह अनुबंधित खेती से हमारे कृषि परिदृश्य को व्यापक रूप से प्रोत्साहन प्राप्त हो सकता है। एफपीओ माडल अगली पीढ़ी और निवेश को आकर्षति करने में सक्षम होगा। कृषि क्षेत्र उन्नति की राह पर ले जाने में सक्षम हो सकता है।

कृषि क्षेत्र में व्यावहारिक और प्रासंगिक सुधारों से बाजार का विस्तार होगा, जिसके परिणामस्वरूप किसानों को बेहतर कीमतें हासिल होंगी। यह कार्य किसानों को सहयोग करने, संसाधनों को साझा करने, प्रयास और विशेषज्ञता बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा। आपसी सहयोग उन्हें उच्च मूल्य वाली फसलों में विविधता लाने की ताकत और साहस देता है जिससे वे अधिक कमाई वाले फसलों की ओर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे। इससे उन्हें जोखिम को कम करने और प्रकृति की अनिश्चितताओं को सहने की ताकत मिलती है। वे कृषि क्षेत्र की मांग एवं आपूíत की अनिश्चितताओं को नियंत्रित करने के लिए विपणन और क्रय शक्ति दोनों को प्राप्त करते हैं। वे कृषि लागत चक्र में स्थिरता हासिल करते हैं। लेकिन दुख की बात यह है कि आज उनके पास इनमें से कुछ भी नहीं है। ऐसे में निश्चित तौर पर यह कहा जा सकता है कि कृषि और किसानों की बेहतरी की दिशा में अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। संबंधित आंकड़ों तक पहुंच से उन्हें बेहतर योजना बनाने, सही फसल का चयन करने और कीमत निर्धारित करने में मदद मिलेगी। उल्लेखनीय है कि तकनीक मजबूत वित्तीय ढांचे का मुख्य आधार है और प्रभावी संयोजन पूंजी तक पहुंच प्रदान करने में सक्षम है। लागत कम होने और बेहतर उपज सुनिश्चित होने से किसानों की आमदनी बढ़ेगी जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।

डिजिटलीकरण का काम इस क्षेत्र में भी हो रहा है, लेकिन किसानों को इसका लाभ तब मिलेगा जब पूरे कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को डिजिटल कर दिया जाएगा। अभी केवल पांच प्रतिशत किसान कृषि विस्तार प्रणाली के माध्यम से सूचना प्राप्त करते हैं। यदि इस कार्य को प्रभावी तरीके से लागू किया जाएगा तो यह एक ऐसा सक्षम परिवेश तैयार कर सकता है जो नवाचार में तेजी लाने के साथ ही कृषि-तकनीकी कंपनियों को आकर्षति करेगा और स्टार्ट-अप समेत तमाम कृषि-उद्यमियों को प्रोत्साहित करेगा। हमें किसानों की उद्यमशीलता की भावना को स्पष्ट रूप से पहचानने की जरूरत है। खेती के लिए खास बुनियादी ढांचे के अभाव में किसानों को अक्षम पारिस्थितिक तंत्र और अप्रभावी नीतिगत संरचना का सामना करना पड़ता है। दशकों से नीति निर्माताओं ने खेती की चुनौतियों पर बहुत ही कम ध्यान दिया है, जिसका परिणाम यह सामने आया है कि अन्य क्षेत्रों की तुलना में यह बहुत पिछड़ चुका है। सीमांत किसानों के लिए भी खेती फायदे का व्यवसाय हो सकता है, अगर सरकारें उन्हें पर्याप्त एवं स्थायी मंच, विशेषकर मार्केटिंग और लाजिस्टिक के क्षेत्र में प्रदान करती हैं तो उनकी आय को बढ़ाया जा सकता है।

किसानों को जिस चीज की जरूरत है, वह है एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र। कृषि क्षेत्र का अस्तित्व और विकास काफी हद तक एक समग्र नीतिगत रूपरेखा बनाने और कठिन तथा नरम बुनियादी ढांचा दोनों के निर्माण पर निर्भर करेगा। लिहाजा नीतियों को समग्र कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के साथ-साथ किसानों के आसपास केंद्रित करना चाहिए।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *