बाबू बजरंगी, माया कोडनानी का क्या होगा? ‘नरोदा गाम’ में हुई हत्याओं पर फैसला सुनाएगा कोर्ट
अहमदाबाद: गुजरात में अहमदाबाद की एक विशेष अदालत गुरुवार को 2002 के ‘नरोदा गाम’ सांप्रदायिक दंगे के मामले में अपना फैसला सुनाएगी। नरोदा गाम में हुई उस भयावह घटना में मुस्लिम समुदाय के 11 लोग मारे गए थे। गुजरात की पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी की नेता माया कोडनानी, बजरंग दल के नेता बाबू बजरंगी और प्रदेश वीएचपी के पूर्व अध्यक्ष जयदीप पटेल उन 86 आरोपियों में शामिल हैं जिन पर इस मामले में मुकदमा चल रहा है। मुकदमें के 86 अभियुक्तों में से 18 की इस बीच मौत हो चुकी है।
कोर्ट में गवाह के रूप में पेश हुए थे अमित शाह
सितंबर 2017 में बीजेपी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष (अब केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह पूर्व मंत्री माया कोडनानी के पक्ष में, बचाव पक्ष के गवाह के रूप में पेश हुए थे। वर्ष 2002 के गुजरात दंगों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित SIT का यह 9वां मामला है। इस मामले में कुल 86 आरोपी थे, लेकिन उनमें से 18 आरोपियों की सुनवाई के दौरान मौत हो गई। इन आरोपियों के खिलाफ कई धाराओं में केस दर्ज किए गए थे।
गोधरा कांड के बाद की है घटना, 11 लोगों की हुई थी मौत
गोधरा में ट्रेन आगजनी की घटना में अयोध्या से लौट रहे 58 यात्रियों की मौत के एक दिन बाद 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद शहर के नरोडा गाम इलाके में दंगों के दौरान 11 लोग मारे गए थे। आरोपियों के खिलाफ IPC की धारा 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 143 (गैरकानूनी जमावड़ा), 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों से लैस होकर दंगा करना), 129 बी (आपराधिक साजिश) के तहत मुकदमा चला। अभियोजन पक्ष ने इस मामले में 187 जबकि बचाव पक्ष ने 57 गवाहों का परीक्षण किया। जुलाई 2009 में शुरू हुए इस मुकदमे में करीब 14 साल बाद अब फैसला आने जा रहा है।
यूं सामने आया था बाबू बजरंगी का नाम
इस मामले में एक स्टिंग ऑपरेशन से बजरंग दल के बाबूभाई पटेल उर्फ बाबू बजरंगी का नाम सामने आया था। बजरंगी बाद में VHP और शिवसेना में शामिल हो गया था। स्टिंग ऑपरेशन में बाबू बजरंगी महाराणा प्रताप जैसा कुछ काम करने की बात कहता नजर आया था और उसने माना था कि दंगे के वक्त वह नरोडा में मौजूद था। उसे मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी। गुजरात की मोदी सरकार में मंत्री रहीं माया कोडनानी को 2013 में नरोदा पाटिया, जहां 97 लोगों की हत्या की गई थी, मामले में दोषी ठहराते हुए 28 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। बाद में गुजरात हाई कोर्ट ने छुट्टी दे दी थी।