ईवीएम हैकिंग का बहाना है पुराना, चुनाव आयोग के खुले चैलेंज में फुस्स हो चुके हैं राजनीतिक दलों के दावे
देश में जब-जब चुनाव (Assembly Election 2022) के नतीजों का दिन नजदीक होता है, तभी ईवीएम (EVM) पर भी सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। पिछले कई चुनावों में देखा गया है कि विभिन्न दल ईवीएम हैकिंग का रोना रोते रहे हैं। यूपी और उत्तराखंड में साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला था। नतीजे आने के बाद बसपा प्रमुख मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के अलावा कई नेताओं ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। इन नेताओं ने बैलेट पेपर से चुनाव कराए जाने की मांग भी कर डाली थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कई बार ईवीएम हैक होने का दावा कर चुके हैं।
चुनाव आयोग ने दिया था हैकिंग का चैलेंज
इन दावों के बीच ऐसा भी हुआ है जब चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को ईवीएम को हैक करने का खुला चैलेंज दे चुका है। दरअसल, साल 2017 में तीन जून को चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को ईवीएम को हैक करने का चैलेंज दिया था। चुनाव आयोग ने कहा था कि कोई भी राजनीतिक दल इलेक्शन कमीशन के दफ्तर आकर ईवीएम को हैक करने की कोशिश कर सकता है।
फुस्स हुए राजनीतिक दलों के दावे
चुनाव आयोग के चैलेंज को ज्यादातर दलों ने स्वीकार नहीं किया। ईवीएम पर सवाल तो कई दलों ने उठाए, लेकिन चुनाव आयोग की तरफ से हैकिंग का चैलेंज दिए जाने के बाद दो ही दल सामने आए थे। एनसीपी और सीपीएम के नेता चुनाव आयोग के दफ्तर तो पहुंचे, लेकिन उन्होंने भी चैलेंज में हिस्सा लेने से हाथ खड़े कर दिए। दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने वाली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने भी चैलेंज में हिस्सा लेने से मना कर दिया था।
हैकिंग चैलेंज में चुनाव आयोग ने बनाए थे नियम
चुनाव आयोग की तरफ से हैकिंग चैलेंज में कुछ नियम भी बनाए गए थे। इन नियमों के मुताबिक, ईवीएम के मदरबोर्ड से बदलाव करने की इजाजत नहीं थी। ईवीएम को चुनाव आयोग के दफ्तर से बाहर ले जाने की भी इजाजत नहीं थी। हैकिंग के लिए फोन या ब्लूटूथ का इस्तेमाल करने की इजाजत दी गई थी।