स्वाति मालीवाल को लेकर क्या दिल्ली पुलिस है कन्फ्यूज… कब तक करेगी इंतजार?
आम आदमी पार्टी की राज्यसभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ कथित मारपीट मामले में सभी को दिल्ली पुलिस के अगले कदम का इंतजार है. लोग बड़ी बेसब्री से इस घटना का पटाक्षेप होते देखना चाहते हैं. कैसे मारपीट हुई? किसके कहने पर मारपीट हुई? मारपीट की नौबत क्यों आई? इन सारे सवालों से पर्दा नहीं उठ रहा है. बता दें कि दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के निजी सचिव विभव कुमार के द्वारा मालीवाल के साथ कथित मारपीट होने की बात सामने आने के बाद से ही दिल्ली की राजनीतिक तापमान में अचानक गर्माहट महसूस होने लगी थी. लेकिन, स्वाति मालीवाल के पीछे हटने के कारण अब यह मामला ठंडा पड़ता दिख रहा है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि दिल्ली पुलिस के पास अब क्या-क्या विकल्प बचे हैं? क्या इस मामले को खत्म कर दिया जाएगा या फिर पुलिस किसी दूसरे विकल्पों पर विचार करेगी? पुलिस कब तक रख सकती है पीसीआर कॉल पेंडिंग?
नॉर्थ दिल्ली के डीसीपी मनोज मीणा ‘देखिए मैडम (स्वाति मालीवाल) ने अभी तक शिकायत दर्ज नहीं कराई है. हमलोग लगातार संपर्क करने की कोशिश में लगे हुए हैं. जब तक मामले की शिकायत हमारे एसएचओ को नहीं मिलती है, तब तक हमलोग आगे नहीं बढ़ेंगे. दिल्ली की सिविल लाइंस थाना पुलिस ने कॉल को दूसरे दिन भी फाइल नहीं किया है. अभी भी हमलोग पीसीआर कॉल को पेंडिंग में रखे हुए हैं.’
इस मसले पर दिल्ली पुलिस के विशेष पुलिस आयुक्त रविंद्र कुमार यादव भी यही कहते हैं. दि्ल्ली पुलिस के पूर्व ज्वाइंट सीपी एसबीएस त्यागी ‘देखिए पीसीआर कॉल ही नहीं मौखिक, लिखित या टेलिफोनिक कॉल के जरिए भी कोई भी पीड़िता शिकायत दर्ज करा सकती हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने को लेकर सख्त निर्देश दे रखे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने ललिता कुमारी वर्सेज यूपी स्टेट मामले में जजमेंट दिया था कि किसी भी गंभीर अपराध की शिकायत मिलने के बाद पुलिस अधिकारी को बिना किसी देरी के एफआईआर दर्ज करनी होगी. ऐसे मामले में पुलिस को एफआईआर दर्ज करने के लिए जांच करने की भी जरूरत नहीं होती है. लेकिन, अगर पुलिस को मामला संदिग्ध लगता है तो वह अपने विवेक का भी इस्तेमाल कर सकती है. पुलिस को अगर लगता है कि अपराध हुआ है तो पुलिस शुरुआती जांच कर सकती है. इसके लिए सात दिनों के अंदर पुलिस को कार्रवाई करनी होती है.’
त्यागी आगे कहते हैं, ‘स्वाति मालीवाल के मामले में अगर पीसीआर कॉल हुआ है और उन्होंने मारपीट का आरोप लगाया है तो उनको लिखित शिकायत देनी चाहिए. थाने में एसएचओ ने कहा कि आप बयान दीजिए, लेकिन वह चली गईं. पीड़िता उपलब्ध हैं और बिना बयान दिए चली गई हैं तो पुलिस इस केस को संदिग्ध मामला मान सकती है. क्योंकि, क्या हुआ नहीं हुआ पीड़िता आई और बिना बताए चली गई. इसके बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है, लेकिन पुलिस को पता नहीं चलेगा कि किस तरह जुर्म हुआ या नहीं हुआ? मारपीट का आरोप लगाने पर पीड़िता का मेडिकल जांच जरूरी है. साथ ही सीसीटीवी फुटेज भी जरूरी है. इन द हिट ऑफ मोमेंट कहासुनी हुई और किसी ने कुछ कहा और धक्का दे दिया. इससे महिला के साथ किस तरह का दुर्व्यवहार हुआ यह साफ पता नहीं चल पाएगा.
एक्सपर्ट
त्यागी आगे कहते हैं, ‘देखिए दिल्ली में कुछ साल पहले भी एक बार ऐसी ही स्थिति बन गई थीं, जब मैं नई दिल्ली का डीसीपी था. पब्लिक प्लेटफॉर्म पर सुप्रीम कोर्ट के एक जज के खिलाफ एक महिला का उत्पीड़न की बात हो रही थी. सोशल मीडिया पर खूब चल रहा था. ऐसे में उस समय की सुप्रीम कोर्ट की एक बहुत बड़ी सीनियर महिला वकील के ऑफिस से नई दिल्ली डीसीपी को मेल आया. इसमें जिक्र था कि फलां महिला के साथ फलां जज ने उत्पीड़न किया है. आप मुकदमा दर्ज कर कार्रवाई कीजिए. हमने भी लीगल ऑपिनियन लिया और इसके बाद पीड़िता को मेल किया. पीड़िता ने हमको बताया कि मैं अभी ट्रेवल कर रही हूं और दो-तीन दिनों के बाद आपको उसे पेंडिंग इंक्वायरी रख ली. दो-तीन दिन तक जवाब नहीं आया. लेकिन, दो-तीन दिनों के बाद उसी सीनियर एडवोकेट ने फोन किया कि मेरी शिकायत वापस कर दो. मैंने उनसे कहा कि मैडम मैं किसी दुकान पर थोड़े बैठा हूं कि आपने सामान लिया और अब बिना लिखत पढ़त सामान वापस ले लिया. अगर आपको अपनी शिकायत वापस लेनी है तो आपको दोबारा से आवेदन देना होगा कि हमने जो शिकायत की थी उस पर हम अब कोई कार्रवाई नहीं चाहते हैं. हालांकि, उन्होंने लिख कर दिया और हमने उसे स्वीकार कर उनको एकनॉलेज दे दिया. क्योंकि, हमारे पास न पीडि़ता आई और शिकायत भी वापस ले ली गई. ऐसे में इस केस को हमलोगों को बंद करने कि सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं था. हमलोगों ने इस केस को पुलिस के रिकॉर्ड में रख कर क्लोज कर दिया. स्वाति मामले में भी पुलिस नीति और न्याय संगत ही काम कर रही है.