जोशीमठ में भू-धंसाव को लेकर मोदी सरकार ने लोकसभा में दिया जवाब, जानिए क्या कहा
जोशीमठ में भू-धसाव को लेकर लोकसभा में भारत सरकार ने अपना जवाब दिया है। केंद्र सरकार ने कहा कि जोशीमठ में भू-धसाव से पहले तपोवन में हिमस्खलन और बाढ़ की घटनाएं हुई थीं। इसकी वजह से बिजली परियोजना का काम रोकना पड़ा था। मोदी सरकार ने कहा कि जोशीमठ और उसके आस पास कोई जल विद्युत परियोजना नहीं है। लोकसभा में AIMIM के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के सवाल के लिखित जवाब में विद्युत और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री आर के सिंह ने यह जानकारी दी।
जोशीमठ भू-धंसाव से तपोवन विद्युत परियोजना पर कोई असर नहीं
मोदी सरकार के मंत्री आर के सिंह ने कहा, “जोशीमठ क्षेत्र में जमीन धंसने की घटना से तपोवन विष्णुगाड जल विद्युत परियोजना अप्रभावित है। फिर भी जिला प्रशासन ने परियोजना स्थल पर निर्माण गतिविधियों को अगले आदेश तक स्थगित रखने के लिए पांच जनवरी 2023 को एक आदेश जारी किया है।” उन्होंने कहा कि तपोवन का विद्युत परियोजना जोशीमठ से काफी दूर है और जोशीमठ में जमीन धसने से तपोवन विद्युत परियोजना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। फिर भी एहतियातन जिला प्रशासन ने किसी भी तरह के निर्माण पर जोशीमठ में रोक लगा दी है। सरकार ने माना की उत्तराखंड की दो बिजली परियोजना फाटा और तपोवन में बाढ़ और स्खलन के कारण काम रोकना पड़ा था।
जल विद्युत परियोजनाओं को लेकर दिया ये हिसाब
मंत्री ने कहा कि वर्तमान में देश में विभिन्न राज्यों के हिमालयी क्षेत्र में कुल 11,137.50 मेगावाट की स्थापित क्षमता की 30 बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं विकसित की जा रही हैं जो 25 मेगावाट स्थापित क्षमता से अधिक हैं। इन परियोजनाओं में से कुल 10,381.50 मेगावाट की 23 जल विद्युत परियोजनाएं सक्रिय रूप से निर्माणाधीन हैं और कुल 756 मेगावाट की 7 जल विद्युत परियोजनाएं रुकी हुई हैं। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही देश में विभिन्न राज्यों के हिमालयी क्षेत्र में कुल 22,982 मेगावाट की स्थापित क्षमता वाली 87 जल विद्युत परियोजनाएं परिचालित हैं। सिंह ने कहा कि 25 मेगावाट से अधिक की कोई भी जल विद्युत परियोजना पर्यावरणीय स्वीकृति प्राप्त करने से पहले शुरू नहीं की जाती है।
परियोजना निर्माण से पहले सभी सहमतियां ली गईं
आर के सिंह ने कहा कि इसे पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा किसी विशेष मूल्यांकन समिति द्वारा व्यापक जांच परख के बाद ही मंजूरी दी जाती है। विद्युत, नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री ने कहा कि परियोजना प्रस्ताव का केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) द्वारा सुरक्षा दृष्टिकोण से भी मूल्यांकन किया जाता है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, वैधानिक सहमति देने से पूर्व, भारतीय भू वैज्ञानिक सर्वेक्षण और केंद्रीय मृदा और सामग्री अनुसंधानशाला सहित अन्य मूल्यांकन एजेंसियों के साथ परियोजना प्रस्ताव की जांच करता है। उन्होंने बताया कि इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि जल विद्युत परियोजना का निर्माण आरंभ होने से पहले सभी आवश्यक स्वीकृतियां प्राप्त की जा चुकी हैं।