23 November, 2024 (Saturday)

पंजाब और यूपी के विधानसभा चुनाव में बसपा का हाथी हुआ धड़ाम, जानें इसके बड़े कारण

पांच राज्‍यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे अब काफी हद तक साफ होते दिखाई दे रहे हैं। इस चुनाव में जहां कुछ सीटों पर प्रमुख दो पार्टियों भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच में जबरदस्‍त टक्‍कर देखने को मिली वहीं नेशनल पार्टी का दर्जा हासिल की हुई बहुजन समाज पार्टी को पिछली बार की ही तरह जबरदस्‍त निराशा हाथ लगती दिखाई दे रही है। बसपा का हाल पंजाब और यूपी में एक सा ही रहा है। पंजाब में जहां उसको मिले मत दो फीसद से भी कम रहे हैं वहीं यूपी में 12.7 फीसद वोट पार्टी को मिले हैं।

एक नजर पार्टी पर

बता दें कि वर्ष 2017 के उत्‍तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को जहां 312 सीटें हासिल हुई थीं वहीं समाजवादी दूसरे नंबर पर रहते हुए 47 सीटों पर काबिज हुई थी और बसपा के हाथों में केवल 19 सीट ही लगी थीं। बसपा की ही बात करें तो वर्ष 2012 में ये पार्टी सूबे में दूसरे नंबर पर तीसरे नंबर पर पहुंच गई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा को 22.2 फीसद वोट मिले थे जबकि इस बार रुझानों में करीब दस फीसद वोट शे‍यरिंग रह गई है। इस बार जो तस्‍वीर यूपी में बनती हुई दिखाई दे रही है उसमें बसपा काफी हद तक साफ होती दिखाई दे रही है। इसका अर्थ बेहद साफ है कि यूपी की जनता ने बसपा को खारिज कर दिया है।

बसपा की इस स्थिति के पीछे के कारणों की यदि बात करें तो इसके चार कारण प्रमुख हैं:-

चुनाव की देर से शुरुआत

बहुजन समाज पार्टी ने यूपी में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए शुरुआत काफी देर से की। एक तरफ जहां भाजपा ने इस चुनाव को लेकर अपनी तैयारियां एक वर्ष पहले ही शुरू कर दी थीं वहीं बसपा इसमें बुरी तरह से चूक गई। इसकी एक वजह ये भी हो सकती है कि वो अपनी स्थिति काफी कुछ वाकिफ थी इसलिए ही इस चुनाव में बसपा सुप्रिमो मायावती खुद चुनाव में नहीं उतरी थीं।

कैंपेन रहा फीका

बहुजन समाज पार्टी का चुनावी कैंपेन भी काफी हद तक फीका रहा। इसमें कहीं भी वो बात दिखाई नहीं दी जो होनी चाहिए। खुद मायावती ने काफी कम रैलियां की और इसमें भी वो सभी चरणों के चुनाव में अपनी उपस्थिति लोगों के सामने दर्ज नहीं करवा सकीं।

कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटा

पिछली बार मिली हार की वजह से कमजोर पड़ी बसपा के जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी टूट चुका था। ऐसे में इस बार पार्टी सुप्रिमो की कमजोर नीतियों ने उसको पार्टी से विमुख कर दिया। इसलिए ही उसका कार्यकर्ता दूसरी पार्टी से जुड़ गया।

परंपरागत वोट बैंंक भी हुआ दूर 

पार्टी कार्यकर्ताओं की बेरुखी और शीर्ष नेतृत्‍व का चुनाव पर ध्‍यान ने से पार्टी का जो एक वर्ग उसका भरोसेमंद वोटर हुआ करता था वो उससे कट गया। उसने इस बार बसपा का साथ छोड़कर अन्‍य पार्टियों का हाथ थाम लिया। ये इस बात का साफ संकेत है कि यूपी में बसपा की राजनीतिक जमीन अब कमजोर पड़ गई है। वर्ष 2007 में जब यूपी में बसपा ने सरकार बनाई थी तब उसको 30-31 फीसद वोट मिले थे। इसके बाद के चुनाव में उसको 25 फीसद वोट मिले थे।

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