सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, क्या हम विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में भी दखल दे सकते हैं
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में बुधवार को कोरोना वैक्सीन के टेस्टिंग से जुड़े आकड़ों की मांग वाली याचिका पर सुनवाई की गई। कोर्ट ने जानना चाहा कि क्या वह कोरोना रोधी वैक्सीन (Anti Corona Vaccine) के क्लीनिकल परीक्षण के मुद्दे में दखल दे सकता है, क्योंकि यह विशेषज्ञों का क्षेत्र है। जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस बीआर गवई की खंडपीठ ने कहा कि वैक्सीनेशन से संबंधित फैसला विशेषज्ञों द्वारा दिए गए आंकड़ों के आधार पर लिया गया है। पीठ ने कहा, ‘क्या हम विशेषज्ञता वाले क्षेत्र में दखल दे सकते हैं? भारत सरकार ने कुछ डाटा के आधार पर फैसला लिया है। क्या हम विशेषज्ञों की रिपोर्ट की प्रमाणिकता के बारे में दखल दे सकते हैं?’
कोरोना वैक्सीन के क्लीनिकल परीक्षण के डाटा की मांग
शीर्ष न्यायालय की यह टिप्पणी याचिकाकर्ता डा. जैकब पुलियल की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलीलों के जवाब में आई। याचिकाकर्ता ने कोरोना रोधी टीकों के क्लीनिकल परीक्षण से संबंधित डाटा के खुलासे की मांग की है। डा. पुलियल टीकाकरण को लेकर राष्ट्रीय तकनीकी परामर्श समूह के पूर्व सदस्य हैं। पीठ ने कहा, ‘विज्ञान मंतव्यों से जुड़ा मामला है। क्या हम उस क्षेत्र में दखल दे सकते हैं जिसे हम नहीं समझते हैं? अलग-अलग मंतव्य हो सकते हैं। हम विशेषज्ञ नहीं हैं। हमें इसकी गहराई में जाने को न कहें।’ मामले की सुनवाई अधूरी रही। अब इस मामले में आठ मार्च को सुनवाई होगी।
वैक्सीन लेना न लेना व्यक्तिगत फैसला
भूषण ने अपनी दलील में कहा कि टीका लेना या नहीं लेना यह व्यक्तिगत निर्णय है और सहमति के बिना अनिवार्य टीकाकरण असंवैधानिक था। उन्होंने आगे कहा कि टीके से पूर्ण संरक्षण नहीं मिलता है। ऐसे अनेक मामले हैं जिनमें पूर्ण टीकाकरण वाले लोग भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आए हैं। इसलिए टीकाकरण के लिए दबाव डालना सार्वजनिक स्वास्थ्य के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं करता है।