क्षेत्रीय छत्रपों के सपा को समर्थन में छिपी है भविष्य की विपक्षी सियासत, कांग्रेस की चुनौतियां बढ़ने के आसार
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अलग-अलग प्रदेशों के सियासी दिग्गजों के अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के समर्थन में उतरने की घोषणा क्षेत्रीय दलों के बीच भविष्य की गोलबंदी के संकेत देने लगी है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर), राकांपा प्रमुख शरद पवार और माकपा महासचिव सीताराम येचुरी अब तक उत्तर प्रदेश के मौजूदा चुनाव में अखिलेश के लिए चुनाव प्रचार करने का एलान कर चुके हैं। इस सूची में जल्द ही राजद के तेजस्वी यादव के भी शामिल होने के पुख्ता संकेत हैं।
अखिलेश को विपक्ष की बैकिंग
विपक्षी राजनीति के अहम चेहरों में शामिल इन क्षेत्रीय पार्टियों के दिग्गजों के निर्णय से साफ है कि वे उत्तर प्रदेश के मौजूदा चुनाव में भाजपा के खिलाफ कांग्रेस और बसपा दोनों को ज्यादा प्रासंगिक नहीं आंक रहे। इसीलिए वे अपनी साझी ताकत से अखिलेश के चुनावी अभियान को उड़ान देना चाहते हैं। ममता ने अखिलेश से हुई चर्चा के दौरान सपा के लिए प्रचार करने की बात कह दी थी।
साइकिल को सियासी रफ्तार देंगी ममता
मंगलवार को सपा नेता किरणमयी नंदा से कोलकाता में हुई बातचीत से साफ है कि तृणमूल प्रमुख उत्तर प्रदेश में अभी कुछ वर्चुअल रैली करेंगी। चुनाव आयोग की पाबंदी हटी तो दीदी मैदान में भी सपा की साइकिल को सियासी रफ्तार देने के लिए उतरेंगी। बताते हैं कि दीदी के समर्थन का आभार जताने के लिए सपा मीरजापुर की एक सीट तृणमूल कांग्रेस के ललितेशपति त्रिपाठी के लिए छोड़ने को तैयार है।
राकांपा को भी लिया साथ
पवार ने तो खुद अखिलेश के साथ बातचीत होने और उनके समर्थन में प्रचार करने का एलान कर दिया है। राकांपा का उत्तर प्रदेश में सपा से गठबंधन भी हो गया है। बुलंदशहर की एक सीट अनूपशहर सपा ने राकांपा उम्मीदवार के लिए छोड़ दी है जबकि सीताराम येचुरी और केसीआर भाजपा के खिलाफ क्षेत्रीय दलों को मजबूत करने के अपने एजेंडे के लिए अखिलेश का प्रचार करेंगे।
राजद को भी साधा
तेलंगाना में केसीआर के सहयोगी असद्दुदीन ओवैसी की एआइएमआइएम भी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ रही है, मगर वह यहां उन्हें तवज्जो नहीं देंगे। राजद सामाजिक न्याय की सियासत के हिसाब से सपा के साथ खड़ी रहेगी। वैसे मुलायम और लालू परिवार के निकट पारिवारिक रिश्ते भी इसकी एक वजह है। बंगाल के पिछले चुनाव में भाजपा के खिलाफ ममता की सियासी जंग में भी कई क्षेत्रीय नेताओं ने तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया था।
कांग्रेस के लिए चिंता की बात
तेजस्वी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने तो बंगाल जाकर ममता के लिए चुनाव प्रचार भी किया था। क्षेत्रीय दलों की अखिलेश के प्रचार के लिए दिख रही यह गोलबंदी जाहिर तौर पर राष्ट्रीय विपक्ष की अगुआई कर रही कांग्रेस के लिए ज्यादा चिंता की बात है। खासकर यह देखते हुए कि पवार, ममता, तेजस्वी और येचुरी की पार्टियां लंबे समय से विपक्षी सियासत की गोलबंदी में कांग्रेस के साथ खड़ी रही हैं।
नए मोर्चे के उभार से बढ़ेगी कांग्रेस की परेशानी
राकांपा जहां महाराष्ट्र में उसकी दो दशक से गठबंधन की साथी है तो माकपा से बंगाल चुनाव में कांग्रेस का गठबंधन था। राजद से कांग्रेस का पुराना नाता रहा है। ऐसे में विपक्षी राजनीति में क्षेत्रीय दलों के संभावित मजबूत मोर्चे का उभार कांग्रेस की परेशानी ही बढ़ाएगा। इसी तरह बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए भी अखिलेश के साथ क्षेत्रीय छत्रपों का खड़ा होना चिंताजनक है क्योंकि उनकी पूरी सियासत की धुरी ही उत्तर प्रदेश है।
नाकाम हो गई थी तीसरे मोर्चे की कसरत
पवार और केसीआर का बसपा से निरपेक्ष भाव तो समझा जा सकता है, मगर दीदी और येचुरी भी अब मायावती के साथ सियासी निवेश में भविष्य की संभावना नहीं देख रहे। दिलचस्प यह है कि 2009 के लोकसभा चुनाव से पूर्व तीसरे मोर्चे की कसरत करने वाली माकपा ने तब मायावती को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने तक के लिए जोर लगाया था। हालांकि तीसरे मोर्चे की यह कसरत सिरे नहीं चढ़ पाई थी।
ममता की मायावती से बेरुखी
भाजपा के खिलाफ विपक्ष को मजबूती देने की अपनी पहल के तहत ममता बनर्जी ने मायावती से कुछ अरसा पहले संवाद भी किया था और बसपा के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्र ने दीदी से मुलाकत भी थी। मगर उत्तर प्रदेश की चुनावी सियासत के मौजूदा मुकाबले में दीदी भी बहनजी से बेरुखी दिखाती नजर आ रही हैं।