सुप्रीम कोर्ट की कड़ी टिप्पणी, पत्रकारों को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि पत्रकारों या राजनीतिक विचारों को दबाने के लिए सरकारी तंत्र का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं ट्विटर युग में पत्रकारों को भी अधिक जिम्मेदारी और सजगता से काम करना चाहिए। साथ ही साथ विचारों के स्तर पर राजनीतिक वर्ग को आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। इन टिप्पणियों के साथ ही जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने पश्चिम बंगाल में प्रकाशित लेखों के संबंध में एक समाचार वेब पोर्टल के संपादकों के खिलाफ मामले को रद कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे देश में जो अपनी विविधता पर गर्व करता है। वहां अलग-अलग धारणाएं और राजनीतिक विचार होने स्वाभाविक हैं। यही तो लोकतंत्र का सार है। ऐसे में किसी भी पत्रकारों और मुख्तलिफ राजनीतिक राय को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने पत्रकारों को सलाह दी कि ट्विटर के युग में उनकी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती है। पत्रकारों को मामलों की रिपोर्ट करते समय इसके तरीके पर बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि ऐसे देश में जो अपनी विविधता पर गर्व करता है। वहां अलग-अलग धारणाएं और राजनीतिक विचार होने स्वाभाविक हैं। यही तो लोकतंत्र का सार है। ऐसे में किसी भी पत्रकारों और मुख्तलिफ राजनीतिक राय को दबाने के लिए राज्य बल का इस्तेमाल कभी नहीं किया जाना चाहिए। इसके साथ ही अदालत ने पत्रकारों को सलाह दी कि ट्विटर के युग में उनकी जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती है। पत्रकारों को मामलों की रिपोर्ट करते समय इसके तरीके पर बेहद सावधानी बरतने की जरूरत है।
मालूम हो कि अदालत ने पिछले साल 26 जून को पश्चिम बंगाल में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज तीन प्राथमिकी पर रोक लगा दी थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया था कि बंगाल सरकार उनका लगातार पीछा कर रही है। यही नहीं उनका उत्पीड़न किया जा रहा है जिससे वे शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए विवश हैं। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनकी मीडिया रिपोर्टों को रोकने के लिए उनके खिलाफ कई प्राथमिकी दर्ज की गईं।